अब तक कहां थे भाग्य वांचने वाले
प्रसंगवश
स्तम्भ: अभी कई ज्योतिष ज्ञानी हमें बता रहे हैं कि अगले कुछ महीनों में कोरोना माई की क्या दशा-दिशा होगी, तमाम गृहों की अवस्थापना के चलते वह किस हाल में होगी और हम उससे कैसे निपट रहे होंगे। पर जरा गौर करिए…
सवाल यह उठता है कि हमारा ज्ञान-विज्ञान, आसमान को भेद सकने की क्षमता रखनेे वाले दूरबीन, चाॅद पर पैर जमा देने वाले यान और मौसम की पल-पल की खबर रखने वाले विद्वानों की पारखी नजरें पिछले साल के अंत में यानी समय रहते यह पता क्यों नहीं लगा पाई कि कोरोना नाम की महामारी हम में से कईओं की श्वांस नली दबाने के लिए जल्दी ही पूरे भूमण्डल में दर—दर पहुॅचने वाली है।
और बात केवल इन्हीें की क्यों? पूरी देश-दुनिया का भाग्य वांचने वाले ज्योतिष ज्ञानी तब तक अपना पोथा पत्रा लेकर प्रस्तुत क्यों नहीं हुए जब तक कि तमाम अस्पतालों के शूरवीर योद्धा अदृश्य कोरोना से आमने-सामने की लड़ाई के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर मोर्चे पर नहीं डट गए। तब तक भविष्य में झाॅकने की उनकी महारथ क्यों नहीं प्रकट हुई?
वे हमारे चिकित्सकों, नर्सों, स्वास्थ कर्मियों, स्वास्थ्य परीक्षकों-अन्वेशकों से पहले अपने ज्ञान का कवच लेकर क्यों नहीं हाजिर हो गए? कम से कम उन नेताओं को तो जाकर चेता ही सकते थे, जिनका वर्तमान और भविष्य संवारने के लिए वे मंदिरों में तरह-तरह के पाठ करते, कराते हैं। वे अपनी मित्र सरकारों को तो चेतावनी दे सकते थे कि इस बार चीन से नए किस्म का ड्रगैन आ रहा है, मुकाबले के लिए तैयार हो जाओ। पर वे चुप रहे या यों कहिए कि वे समय रहते अपना ज्ञान नहीं जगा पाए।
एक पत्रकार नेे लिखा कि भुगु संहिता में सब कुछ लिखा है। यह उन्हें बनारस के कुछ पंडितों ने बताया। पर सवाल यह है कि भृगु संहिता तो सैकड़ों-हजारों साल पहले रची गई थी, उसके पन्ने सन् 2020 के शुरू होने पर ही क्यों पलटे गए? समय रहते क्यों नहीं तमाम सरकारों को सटीक ज्ञान-दर्शन कराकर उन्हें मोर्चा संभाल लेने को कहा गया? या फिर किसी को अगर कहा गया हो तो सबको इसकी जानकारी दी जानी चाहिए।
मैं जानता हूॅ कि हमारा ज्योतिष विज्ञान अद्भुत है और हजारों साल पुरानी हमारी संस्कृति बताती है कि हमारे रिषि-मुनियों ने घोर तपस्याएं करके इतनी सिद्धियाॅ हासिल कर ली थीं कि वे आंख बंद करके हजारों साल आगे की संभावित घटनाओं का भाप ले लेते थे, उसकी एक एक बात, एक-एक चाल जान लेते थे। फिर कोई ऐसा ज्ञानी आगे क्योें नहीं आगे आया और चिकित्सा कर्मियों से पहले खुद मोर्चे पर क्यों नहीं डट गया? असली शूरवीर भविष्य-वक्ता भी तो बन सकते थे।
अगर उन्होंने ऐसा कर दिखाया होता तो कोरोना महामारी अस्पतालों के टेस्ट ट्यूबों में कैद कर ली गई होती, उसकी कराह हमारे बीच से न उठ पाती। तब सैकड़ों-सैकड़ों मंदिरों के कपाट भक्तों के लिए बंद न किए गए होते।
पिछले तीन चार महीने में पड़े अपने त्योंहार हम विधिवत मना पाते, नवरात्र में लोग देवी-दर्शन से वंचित न रहे होते, चार धाम की यात्रा पर रवाना हो पातेे, सोमवार को सोमनाथ और नागेश्वर महादेव से लेकर लखनऊ में मनकामेश्वर मंदिर तक और छोटे-बड़े मंगलवारों को परम रामभक्त हनुमान जी के मंदिरों में उनके सामने मस्तक झुकाने के अवसर पाने से भी वंचित न हुए होते। मुसलमान भाई पवित्र रमजान पर रोजा इफ्तार परम्परागत ढंग से मना पाते और जुमे की नमाज मस्जिद में जाकर पढ़ पाते। बच्चे अपने स्कूलों में समय पर परीक्षा दे रहे होते, शादी-ब्याह समय पर हो पाते।
एक मौका था जब हम अपनी गृृह-नक्षत्र को भेदने की विद्वता से आधुनिक विज्ञान के धुरंधरों के ज्ञान को ओछा साबित कर देते। काश यह हुआ होता! वास्तविकता यह है कि हम ज्योतिष विज्ञान के परम को अभी छू नहीं पाए हैं और जो छू भी ले गए हैं तो वे अपने ज्ञान को प्रस्फुटित नहीं होने देते।
और अंत में इंदिरा गाॅधी ने एक बार कहा था मौसम विज्ञानियों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। आखिर वे कभी कभी सही भी तो साबित हो जाते हैं।