नई दिल्ली : राज्यसभा या राज्यों की परिषद भारतीय संसद का उच्च सदन है, जिसमें 245 सदस्य होते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि लोकसभा सांसदों के पास पांच साल का कार्यकाल होता है। यह अंतर ही राज्यसभा को संसद का स्थायी निकाय बनाता है। वहीं, लोकसभा की अवधि हर पांच साल में समाप्त होती है, या इससे पहले अगर सरकार बहुमत खो देती है।
मतदान प्रक्रिया में अंतर
लोकसभा सांसद जनता की ओर से सीधे मतदान के माध्यम से चुने जाते हैं। चूंकि राज्यसभा राज्यों की एक परिषद है, इसलिए इसके सांसदों का चुनाव सार्वजनिक मतदान से नहीं, बल्कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली के माध्यम से निर्वाचित विधायकों द्वारा किया जाता है। देश के सबसे बड़े द्विवार्षिक चुनावों के लिए शुक्रवार को चार राज्यों- राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा की 16 सीटों पर मतदान हो रहा है।
वोटिंग की जरूरत क्यों?
प्रत्येक लोकसभा सांसद मतदान के जरिए चुना जाता है, लेकिन सभी राज्यसभा सांसद मतदान के माध्यम से नहीं चुने जाते हैं। वास्तव में, अधिकांश राज्यसभा सांसद बिना किसी प्रतियोगिता के निर्वाचित हो जाते हैं। आमतौर पर, राजनीतिक दल अपनी ताकत के अनुसार कई उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं, और ऐसे में उम्मीदवारों की संख्या रिक्तियों की संख्या के बराबर रहती है। इस दौर के चुनाव में भी कई उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध जीत चुके हैं। हालांकि, जब किसी पार्टी के पास अतिरिक्त वोटों की बड़ी संख्या होती है तो वह कुछ विपक्षी विधायकों को एक अतिरिक्त सीट पाने के लिए लुभा सकती है। यह एक अतिरिक्त उम्मीदवार को भी खड़ा करती है, जिससे प्रतियोगिता काफी बढ़ जाती है।यह हम इन चार राज्यों में देख रहे हैं। इन राज्यों की 16 खाली सीटों के लिए 20 उम्मीदवार मैदान में हैं।
मतदान प्रक्रिया क्या है?
सभी निर्वाचित विधायक ईवीएम मशीन के बजाय बैलेट पेपर के माध्यम से अपना वोट डालते है। मतदान संबंधित राज्य के विधानसभा भवन में किया जाता है। बैलेट पेपर में विधायक को उन्हें या अपनी पसंद के उम्मीदवारों की रैंकिंग करके उन्हें चिह्नित करना होता है। उन्हें भारत के चुनाव आयोग की ओर से प्रदान किए गए विशेष पेन का भी उपयोग करना होता है। अगर वे किसी अन्य पेन का इस्तेमाल करते हैं, या उनके मतपत्र अपूर्ण रहते हैं तो वोट को अमान्य माना जाएगा।
क्या बैलेट कोई भी देख सकता है?
हां। लोकप्रिय मतदान प्रक्रिया के विपरीत राज्यसभा उम्मीदवारों के लिए मतदान करने वाले विधायकों को अपने मतपत्र अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है। क्रॉस वोटिंग और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इस प्रक्रिया की अनुमति दी गई है। अगर उम्मीदवार अधिकृत एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को अपना मतपत्र दिखाता है, तो मतपत्र फिर से अमान्य माना जाएगा। 2016 में हरियाणा में इस आधार पर कांग्रेस नेताओं के दो वोट अवैध माने गए थे।
क्या होते हैं सेकेंड प्रेफरेंस वोट?
अगर दो या दो से अधिक उम्मीदवारों को निर्वाचित होने के लिए अपेक्षित संख्या में वोट नहीं मिलते हैं, तो यह पता लगाने के लिए कि प्रत्येक विधायक ने अपनी दूसरी वरीयता में किसे चिह्नित किया है, इसके लिए मतपत्रों को फिर से देखा जाता है। याद रखें, एक विधायक को अपनी पसंद के अनुसार सभी उम्मीदवारों को रैंकिंग देनी होती है। अधिकारी यह देखते हैं कि बाकी बचे दो उम्मीदवारों में से किसे दूसरी वरीयता के अधिक वोट मिले हैं।
कब सामने आएंगे नतीजे?
भारत निर्वाचन आयोग ने घोषणा की है कि मतदान प्रक्रिया शाम 5 बजे समाप्त होगी। चूंकि गिने जाने वाले मतपत्रों की संख्या सीमित है, ऐसे में द्विवार्षिक चुनाव के नतीजे आज शाम तक आने की उम्मीद है।