विदेशी अर्थशास्त्री ने क्यों कहा कि मनमोहन सिंह तुम बेवकूफी कर रहे हो
दस्तक डेस्क: मनमोहन सिंह नही रहे। पाकिस्तान में जन्में डॉक्टर मनमोहन सिंह न तो कभी लोकसभा का चुनाव जीते और उनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड रहा फिर भी जवाहर लाल नेहरू के बाद वे दूसरे प्रधानमंत्री थे जो पांच साल सरकार चलने के बाद केन्द्र में दोबारा प्रधानमंत्री बने। नरेन्द्र मोदी का नम्बर उनके बाद आता है, जो इस लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए। मनमोहन सिंह देश के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। उनकी किस्मत में कुछ ज्यादा बड़ा करना लिखा था इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ में शानदार नौकरी छोड़ कर वे भारत आ गए। वे प्रधानमंत्री जरूर बन गए लेकिन उन्हें ज्यादा शोहरत एक अर्थशास्त्री के रूप में मिली। उन्हें भारत में उदारीकरण का जन्मदाता कहा जाता है।
उम्र की 92वीं दहलीज पर पहुंचकर मनमोहन सिंह बहुत कमजोर हो गए थे। गुरूवार की शाम वे घर में अचेत हो गए तो उन्हें नई दिल्ली क एम्स अस्पताल की इमरजेंसी में लाया गया। लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। मनमोहन सिंह अर्थशास्त्र में अपनी तालीम पूरी करने के बाद प्रख्यात अर्थशास्त्री रॉल प्रेबिश से जुड़ गए थे। रॉल संयुक्त राष्ट्र संघ में काम कर रहे थे। वे मनमोहन के बॉस थे। इसी दौरान उन्हें दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में लेक्चररशिप का ऑफर मिला। मनमोहन सिंह ने यह आफर स्वीकार कर लिया।1969 में वे भारत लौट आए। सिंह के इस फैसले पर डॉ. प्रेबिश को हैरत हुई कि मनमोहन जैसा विद्वान अर्थशास्त्री संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर आखिर भारत क्यों लौट रहा है। रॉल ने सिंह से कहा- “तुम ये क्या बेवकूफी कर रहे हो।” लेकिन उस विद्वान अर्थशास्त्री ने साथ ही यह भी जोड़ा कि “मूर्खता करना भी कभी-कभी बुद्धिमानी होती है!”
उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1991 से हुई पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में हुई। वे देश के वित्त मंत्री बने। वह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत मुश्किल दौर था। भारत पर विकसित देशों का दवाब था कि वह उनके लिए अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले। ऐसे में मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री होने के नाते भारत में उदारीकरण की शुरूआत की। 1991 में उन्होंने नई आर्थिक नीति का एलान किया। इसे एलपीजी LPG सुधार के नाम से जाना जाता है। यहां ‘L’ का मतलब है लिबरलाइज़ेशन (उदारीकरण), ‘P’ का मतलब है प्राइवेटाइज़ेशन (निजीकरण) और ‘G’ का मतलब है ग्लोबलाइज़ेशन (वैश्वीकरण)। उदारीकरण की नीति के तहत मनमोहन सिंह ने अर्थ नीति में कई बदलाव किए।
भारत में निजी क्षेत्र के उद्योगों को बिना किसी प्रतिबंध के व्यापार करने की इजाजत दी गई। टैरिफ़ और आयात करों में भारी कमी की गई। विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया और सरकार ने औद्योगिक लाइसेंसों को बंद कर दिया। उत्पादक क्षेत्रों को सेवा-मुक्ति दिया गया। सबसे बड़ा कदम ये था कि मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए भारतीय बाजारों के दरवाजे खोल दिए गए।