राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर जम्मू और कश्मीर विशेष सुर्खियों में है और इसकी खास वजह यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा जम्मू एंड कश्मीर के सांबा जिले के पल्ली गांव को पंचायतीराज सशक्तिकरण के संदेशवाहक के रूप में चुना गया और भारतीय प्रधानमंत्री आज जम्मू कश्मीर के सांबा जिले में पहुंचे, वहां उन्होंने जम्मू कश्मीर के लिए 20,000 करोड़ रुपए के विकास कार्यों का उद्घाटन किया। यहां हमें यह जानना जरूरी तो हो ही जाता है कि वह कौन से ऐसे बड़े विकास प्रोजेक्ट हैं जिनके बारे में प्रधानमंत्री मोदी मान रहे हैं कि वह जम्मू कश्मीर की पंचायतों और साथ ही देश की पंचायतों की तस्वीर बदल देंगे लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी जानने की जरूरत है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के सांबा जिले के पल्ली गांव को ही क्यों चुना?
भारतीय प्रधानमंत्री चाहे विदेश नीति हो या राष्ट्रीय नीति किसी स्थान विशेष का चयन अपने भ्रमण के संदर्भ में विशेष उद्देश्यों से करते हैं। आपने देखा होगा कि जब वे पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी पहली यात्रा भूटान की की थी, क्यों की थी इससे भी लोग परिचित हैं । जब वे दूसरी बार प्रधानमंत्री बनें तो उन्होंने पहली यात्रा मालदीव की की। इसी प्रकार से देश के अलग-अलग हिस्सों में उन्होंने जो भ्रमण किए उसके पीछे बड़े उद्देश्य छिपे रहे हैं । इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि सांबा जिला भारत के कौन से हितों के लिए बहुत जरूरी है , उससे पहले यह जान लेते हैं कि प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के सांबा और पल्ली के लिए क्या घोषणाएं कीं ।
प्रधानमंत्री मोदी ने सांबा जिले के पल्ली गांव को देश की पहली कार्बन न्यूट्रल ग्राम पंचायत घोषित किया गया है और यह देश के प्रधानमंत्री द्वारा पिछले साल ग्लॉसगो में कोप 26 के जलवायु परिवर्तन से जुड़े समिट में की गई प्रतिबद्धता को भी व्यक्त करता है। जम्मू कश्मीर के पल्ली गांव में 500 किलोवॉट सौर ऊर्जा संयंत्र का उद्घाटन किया गया है। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर के सांबा जिले में 108 जन औषधि केंद्रों का उद्घाटन किया गया।
सांबा और पल्ली ही को क्यों :
सांबा जिला बसंतर नदी के तट पर स्थित है । यह जम्मू शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सांबा जिले के उत्तर में उधमपुर जिला, पूर्व में कठुआ जिला, पश्चिम में तहसील जम्मू और जम्मू का बिसनाह स्थित है और दक्षिण की तरफ से पाकिस्तान के साथ इसकी 55.5 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा होती है जो बहुत ही संवेदनशील बॉर्डर सिक्योरिटी इशूज को अक्सर पैदा करती रहती है। उधमपुर और पठानकोट पाकिस्तान के सियालकोट , लाहौर और मीरपुर से ज्यादा दूरी पर स्थित नही हैं , इसलिए भी साम्बा , उधमपुर , कठुआ जैसे क्षेत्रों की सुरक्षा जरूरी हो जाती है।
पिछले साल रिपब्लिक डे से ठीक पहले ही सांबा कठुआ क्षेत्र में भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर बीएसएफ ने एक 7 किलोमीटर लंबी संदिग्ध सुरंग खोज निकाली , जिससे इस क्षेत्र के लिए पाकिस्तान की मंशा भी साफ होती है। पाकिस्तानी साइड से भारत की तरफ तक बनाई गई इस सुरंग के प्रयोग में बाकायदा इंजीनियरों की मदद ली गई और इस सुरंग में करांची प्रिंटेड सैंड बैग्स भी बीएसएफ को मिले। भारत सरकार भारत पाक बॉर्डर पर संदिग्ध क्षेत्रों में एन्टी टनल ड्राइव चला रही है जिसके चलते साम्बा के इस टनल का खुलासा हुआ। टीपू और हुसैन पोस्ट्स से पाकिस्तानी ट्रूप्स द्वारा भारत के बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स पर गोलियां चलाने की घटना भी सामने आ चुकी है। साम्बा जिले में बीएसएफ के जवानों को पाकिस्तान निशाने पर रखता है।
बीएसफ ने हाल में साम्बा जिले में पाकिस्तान से आने वाली 36 किलो ड्रग्स भी जब्त किया था और साम्बा बॉर्डर पर ही 3 पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया था। कठुआ और साम्बा जिले पाकिस्तान के भारत के खिलाफ नापाक मंसूबों के टेस्टिंग ग्राउंड्स के रूप में देखे गए हैं । पाकिस्तान के आतंकवादियों , आर्मी और आईएसआई के लोगों ने इन जिलों को अपने राडार पर बनाये रखा है। 2019 में भारत के रक्षा मंत्री ने इसी बात को ध्यान में रखकर साम्बा और कठुआ जिलों में भारत पाकिस्तान सीमा पर दो सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ब्रिजों का उद्घाटन किया था ताकि सुरक्षा बल के जवान आसानी से सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा के कार्यों से आ जा सके। इन्हें प्रोजेक्ट संपर्क के तहत बनाया गया और कठुआ जिले में 1000 मीटर का उझ ब्रिज बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन द्वारा बनाया अब तक का सबसे बड़ा ब्रिज है। वहीं साम्बा जिले में 617 मीटर का बसंतर ब्रिज बनाया गया है , इसे बसंतर नदी पर राजपुरा – मडवाल- पंगदूर – फूलपुर रोड पर बनाया गया है।
बसंतर और देवक नदियों की धरती सांबा :
यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि सांबा जिले की दो सबसे प्रमुख नदियां बसंतर और देवक अथवा देविका हैं, जिसके जलतंत्र के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सांबा शहर बसंतर नदी के तट पर ही स्थित है जो कि रावी नदी की एक सहायक नदी है। साम्बा का बसंतर जगह “बैटल ऑफ बसंतेर” (बसंतेर के युद्ध) के लिए चर्चित है जो 1971 में भारत पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था।
वहीं देवक नदी उझ की सहायक नदी है और उझ रावी की सहायक नदी है। साम्बा का देवक विजयपुर शहर और प्रसिद्ध तीर्थयात्रा स्थानों उत्तरबेहनी और पुरमण्डल के लिए जाने जाते हैं। देवक को कश्मीर की गुप्त गंगा भी कहते हैं।
सांबा के जरिये जम्मू कश्मीर के आध्यात्मिक गौरव की वापसी :
सांबा प्राचीन स्मारकों का एक अप्रतिम स्थल है जहां कई महत्वपूर्ण किले हैं। अगर इन फोर्ट्स का बेहतर तरीके से आधुनिकीकरण कर दिया जाए, मरम्मत और रखरखाव के काम को बढ़ावा दिया जाए , इन फोर्ट्स क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी सुविधाएं (अच्छी सड़कें, पेयजल सुविधा, विद्युत सुविधा, स्वच्छता आदि) विकसित कर दी जाएं तो ये फोर्ट्स टूरिज़्म के लिहाज़ से राजस्व दे सकते हैं। सांबा में स्थित किलों की बात करें तो यहां मोहरगढ़ फोर्ट , धेरगढ़ फोर्ट , भूपनेरगढ़ फोर्ट और साम्बा फोर्ट हैं जो ऐतिहासिक महत्व की हैं । इन किलों के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने वाले स्कीमों को प्राथमिकता के तौर पर शुरू किए जाने की जरूरत है।
इसके साथ ही साम्बा जिला महत्वपूर्ण मंदिरों और तीर्थस्थलों का क्षेत्र है । इन श्राइन्स के आध्यात्मिक गौरव के लिए भारत सरकार और जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा कार्य किया जाना जरूरी है क्योंकि जम्मू कश्मीर की आध्यात्मिक अस्मिता की सही तस्वीर पेश करने में इन आस्था के केंद्रों की अभूतपूर्व भूमिका हो सकती है। सांबा में स्थित कुछ महत्वपूर्ण तीर्थस्थल मंदिरों में हैं :
बाबा चमलियाल श्राइन (Baba Chamliyal Shrine) जो सेकुलरिज्म और इंटर रिलीजस हॉर्मोनी का सुंदर उदाहरण है। यह भारत पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सांबा से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां हर साल बाबा दलीप सिंह मन्हास की याद में एक मेला लगता है। पाकिस्तानी तीर्थयात्री भी इसे पवित्र तीर्थ मानते हैं। इस दृष्टि से यह करतारपुर कॉरिडोर और शारदा पीठ गलियारे की तर्ज पर विकसित किया जा सकता है। जम्मू कश्मीर , हिमाचल , पंजाब के तीर्थयात्री इसे पवित्र आस्था का केंद्र मानते हैं। पाकिस्तानी तीर्थयात्री यहां चादर चढ़ा कर बदले में शक्कर (श्राइन एरिया की पवित्र मिट्टी) इकट्ठा करते हैं और इस तीर्थस्थल परिसर के कुएं का जल प्राप्त करते हैं जिसे शर्बत कहा जाता है।
बाबा सिद्धगोरिया श्राइन (Baba Sidhgoriya Shrine) भी एक पवित्र तीर्थस्थसल है जो सांबा से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बाबा सिद्धगोरिया नाथ जी गुरु गोरखनाथ जी के अनुयायी थे।
इसके अलावा सांबा क्षेत्र में ही श्री नरसिंहदेव जी मंदिर (भगवान विष्णु का प्राचीनतम मंदिर) है जो घगवाल से मात्र 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। नवरात्रि के दौरान यहां हज़ारों तीर्थयात्री आते हैं।
साम्बा से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर ही चीची माता ( Chichi mata) मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि आज जहां यह मंदिर स्थित है वहां माता सती की सबसे छोटी उँगली गिरी थी जब उन्होंने यज्ञ की अग्नि में अपने को आहूत कर दिया था।
इसी प्रकार पुरमंडल( Purmandal) भूमिगत देवी नदी के पवित्र तट पर साम्बा में ही स्थित है । इसे ” छोटा काशी” ( Chotta kashi) के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यहां प्राचीन शिव मंदिर हैं। पुरमंडल से 5 किलोमीटर की दूरी पर ही उत्तरबेहनी ( Utterbehni) का पवित्र तीर्थस्थल भी है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जम्मू कश्मीर के आध्यात्मिक गौरव की वापसी के लिए पल्ली जैसे तमाम उन गांवों की पहचान की जानी चाहिए जहां धार्मिक विश्वास के पवित्र केंद्र मंदिर हों ।
सांबा ,उधमपुर, कठुआ जैसे कई अन्य जिलों में आतंकवादी संगठनों के लिए काम करने वाले ओवरग्राउंड वर्कर, स्लीपर सेल और सफेदपोश आंतकवादियों के बेस को खत्म करने के लिहाज से भी पल्ली जैसे जम्मू कश्मीर के अनेक गांवों में सुशासन की बयार बहाने के प्रयास करने होंगे। स्थानीय लोगों के परसेप्शन मैनेजमेंट के लिए भी सामाजिक आर्थिक कल्याण और समावेशी विकास को जम्मू कश्मीर में गति देने की जरूरत है। इस दिशा में जम्मू और कश्मीर सरकार की बैक टू द विलेज प्रोग्राम भी काफी कारगर रही है । अब जबकि हर बाधाओं को पार करके जम्मू एंड कश्मीर में पंचायती राज चुनाव को एक वास्तविक सच्चाई मोदी सरकार द्वारा बना दिया गया है तो अब गांवों को सुशासन का अस्त्र कश्मीर में बनाना होगा। पंचायती संस्थाओं को सफल बनाना होगा ताकि ग्रासरूट डेमोक्रेसी मजबूत तरीके से कश्मीर के गवर्नेंस मॉडल का आधार बन सके।
( लेखक दस्तक टाइम्स के उत्तराखंड संपादक हैं )