उत्तराखंड

यहां 11 दिन बाद क्यों मनाते हैं दिवाली, ईगास का माधो सिंह से क्या है कनेक्शन? जानें…

देहरादून (गौरव ममगाई): भारत में एक इलाका ऐसा भी है, जहां दिवाली 11 दिन बाद मनायी जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के गढ़वाल की. गढ़वाल मंडल के कई पहाड़ी जिलों में आज भी दिवाली को 11 दिन बाद मनाने की परंपरा चली आ रही है. ईगास पर्व की परंपरा का इतिहास बेहद रोचक और गौरवांवित करने वाला है. इसे जानने के लिए हमें उत्तराखंड के वीर योध्दा माधो सिंह भंडारी की वीरगाथा को जानना होगा, जिनकी याद में ईगास मनाने की परंपरा शुरू हुई थी.

बात 1640 के दशक की हैए जब तिब्बत (वर्तमान चीन) के शासक गढ़वाल क्षेत्र पर कब्जा करना चाहते थे. तत्कालीन पंवार शासक महिपतिशाह ने अपने सबसे भरोसेमंद एवं बहादुर सेनापति माधो सिंह भंडारी को जिम्मा दिया कि वे सेना की टुकड़ी लेकर तिब्बती शासकों का सामना करें.फिर माधो सिंह भंडारी ने फैसला लिया कि हम सीधे तिब्बत पर आक्रमण करेंगे. इस आक्रमण से तिब्बती हैरान रह गए. माधो सिंह भंडारी सैकड़ों तिब्बती सैनिकों पर टूट पड़े और उन्होंने ऐतिहासिक जीत हासिल की. तिब्बती शासकों में माधो सिंह भंडारी का बहुत खौफ रहता था.

इस युध्द का संबंध ईगास पर्व से है. जब माधो सिंह भंडारी सैनिकों के साथ तिब्बत के लिए रवान हुए, उस समय दीपावली आने वाली थी. दीपावली तक माधो सिंह भंडारी वापस नहीं लौट पाए थे और पूरे गढ़वाल के लोग माधो सिंह व उनके सैनिकों के वापस आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. कई परिवारों के लोग डरे हुए भी थे, इसलिए पूरे गढ़वाल के लोगों ने दीपावली नहीं मनायी. जब दिवाली के 11 दिन बाद वह सैनिकों के साथ वापस लौटे तो पूरे गढ़वाल में उस दिन की रात को दिवाली मनाई गई, जिसे नाम दिया गया ‘ईगास’.1636 में मुगलों ने गढ़वाल पर कब्जा करने का प्रयास किया था, लेकिन वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल सेना ने मुगलों को भी पराजित किया था.

गांव वालों के लिए बेटे का भी दिया बलिदानः

उन्होंने टिहरी के मलेथा में 80 मीटर गहरी सुरंग का निर्माण कर क्षेत्र को सिंचाई की समस्या से भी निजात दिलायी थी. इस कार्य में उन्हें अपने बेटे का बलिदान देना पड़ा था. 1640 में छोटा चीन युध्द (तिब्बत युध्द) में माधो सिंह भंडारी को वीरगति प्राप्त हुई.

Related Articles

Back to top button