देहरादून (गौरव ममगाईं)। इंद्रमणी बडोनी, उत्तराखंड के इतिहास में ऐसा नाम है जिसे उत्तराखंड के गांधी के नाम से जाना जाता है। इंद्रमणी बडोनी का उत्तराखंड राज्य के गठन में महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। राज्य गठन का सपना पूरा करने और उत्तराखंडियत की रक्षा के लिए वह कभी जान न्यौछावर करने से भी पीछे नहीं हटे। वह उत्तराखंड की नई पीढ़ी को नये राज्य देने का सपना देखते थे, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन राज्य आंदोलन में समर्पित कर दिया।
आइये जानते हैं इंद्रमणी बडोनी कैसे ‘उत्तराखंड के गांधी’ बन गये ? इसके पीछे की कहानी..
दरअसल, 1970 के दशक से उत्तराखंड आंदोलन जोर पकड़ने लगा था। बात 1994 की है, जब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन का संज्ञान लिया और अलग राज्य की संभावनाओं पर विचार के लिए कौशिक व बड़थ्वाल समिति का अलग-अलग गठन किया था। दोनों ही समितियों की रिपोर्ट में कहा गया कि पर्वतीय जिलों की परिस्थितियों को देखते हुए अलग राज्य का गठन किया जाना चाहिए। समिति की रिपोर्ट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हामी तो भर दी, लेकिन जून 1994 में उन्होंने आरक्षण से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित किया, जिसे लेकर राज्य आंदोलनकारी भड़क उठे। इस प्रस्ताव में नये राज्य में गठन के पश्चात 50 प्रतिशत जातीय आरक्षण शामिल था। इसमें 27 प्रतिशत ओबीसी, 21 अनुसूचित जाति व 2 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का आरक्षण था। मुलायम सिंह सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण में बड़ी बढ़ोत्तरी की गई थी।
मुलायम सिंह सरकार के इस फैसले के विरोध में पौड़ी के नेता इंद्रमणी बडोनी ने 7 अगस्त को आमरण अनशन शुरू किया। बडोनी ने महात्मा गांधी के दांडी मार्च आंदोलन की तरह 7 सत्याग्रहियों को चुना और उनके साथ अहिंसक एवं शांतिपूर्ण तरीके से आमरण अनशन पर बैठ गये थे। कई दिन तक भूखे-प्यासे रहे। इससे सरकार के हाथ-पांव फूल गये थे। सरकार ने आंदोलनकारियों को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वे झुके नहीं। इसके बाद सरकार ने पुलिस कार्रवाई का आदेश दिया और पुलिस ने लाठी-डंडे मारकर आंदोलनकारियों को उठाया। बडोनी का कहना था कि नये राज्य का गठन प्रदेश के विकास व स्थानीय लोगों के विकास के उद्देश्य से किया जाना है, लेकिन ऐसा नये राज्य का गठन स्वीकार नहीं होगा, जहां स्थानीय लोगों के हितों को नजरंदाज किया जाये।
इंद्रमणी बडोनी महात्मा गांधी जी से खासे प्रभावित थे। उन्होंने हमेशा राज्य आंदोलन को अहिंसावादी एवं शांतिपूर्ण तरीके से चलाने पर जोर दिया। इंद्रमणी बडोनी से सरकार भी खौफ खाती थी।