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प्रधानमंत्री मोदी सिख समुदाय को क्यों दे रहे इतनी तरज़ीह

सबका साथ सबका विकास के सूत्र का अंग है सिखो से वार्ता

विवेक ओझा

नई दिल्ली:भारतीय प्रधानमंत्री एक दूरदृष्टि रखने वाले राजनेता हैं। एक ऐसे समय में जब तमाम लोग यह कहते हैं की वह हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री ने देश को एक स्वस्थ संदेश समय समय पर देने की कोशिश की है कि मोदी सरकार सर्वधर्म समभाव के मंत्र को लेकर आगे बढ़ेगी । इसीलिए विभिन्न धार्मिक समुदायों के मन में विश्वास का भाव भरने के लिए प्रधानमंत्री मोदी सभी धर्म के प्रतिनिधिमंडलों से वार्ता करते दिखाई दे रहे हैं। सिख समुदाय से भारत सरकार के कनेक्शन को बढ़ाना भी इसी लिहाज से जरूरी माना गया है। कुछ समय पहले देश में तीन किसान कानूनों के विरोध में पंजाब के सिख किसान समुदायों ने अपनी भरपूर नाराजगी दिखाई थी और उसकी लहर कनाडा तक दिखी थी।

कनाडा में एक बार फिर से खालिस्तान समर्थक आंदोलन की भी बहस छिड़ गई थी और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय को कनाडा के प्रधानमंत्री को यहां तक कहना पड़ गया कि खालिस्तान के मुद्दे पर वह भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करें। कनाडा में तो भारत के तीन किसान कानूनों के विरोध में विरोध प्रदर्शनों का एक हुजूम सा भी देखा गया था, वहीं दूसरी तरफ ब्रिटेन में भी खालिस्तान के मुद्दे का समर्थन और सिख चरमपंथ का विकास हाल के समय में देखा गया है और भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री से कई अवसरों पर स्पष्ट रूप से इस बारे में बात की है कि ब्रिटेन इस तरीके का प्रावधान करें कि वहां खालिस्तान समर्थक आंदोलन को किसी भी तरीके से कोई समर्थन ना मिले और वहां भारत विरोधी भावनाएं ना भड़कायी जा सकें। जाहिर है कि भारत की राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा का एक बड़ा दारोमदार उन सिख समुदायों पर है जो विदेशों में रहते हैं।

एक और अहम बात यह भी है कि भारतीय प्रधानमंत्री इस समय “समुदाय आधारित विश्वास राजनीति” को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं और इस क्रम में वे विभिन्न धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों से मिल रहे हैं । इसमें हिन्दू , सिख , पारसी, जैन , मुस्लिम सभी शामिल हैं। लेकिन प्रधानमंत्री की भी यह अपेक्षा है कि कोई भी धार्मिक समुदाय खुले मन से, बिना किसी पूर्वाग्रह और विरोधाभास के भारत सरकार पर विश्वास करते हुए उससे मिले और उसके समक्ष अपनी भावनाएं, अपनी बातें, अपनी मांग रखें।

इसी कड़ी में भारतीय प्रधानमंत्री को सिख समुदाय से बार बार मिलते देखा गया है। वह अक्सर गुरुद्वारों में सिख धार्मिक पर्वों के आयोजन में भाग लेते हैं। सिख धर्म गुरुओं के योगदान और उनके ऐतिहासिक महत्व के बारे में अपने भाषणों में बताते हैं, गुरु नानक देव जी , गुरु गोविंद सिंह, गुरु तेग बहादुर और अन्य सिख गुरुओं के प्रेरणास्पद बातों का उल्लेख करते हैं। यह एक प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा एक आध्यात्मिक विश्वास तंत्र विकसित करने का प्रयास है जिसके जरिए विभिन्न धर्म समुदायों को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा से जोड़कर सहयोग करने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है।

इन सब बातों के साथ ही इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि विश्व में सबसे बड़ा डायस्पोरा इंडियन डायसपोरा है और इसमें भी सिख समुदाय की बहुत प्रभावी भूमिका है । सिख समुदाय के लोग आज दुनिया भर के देशों में संसदों में कानून निर्माता की भूमिका निभा रहे हैं , स्पीकर और डिप्टी स्पीकर, केबिनेट मिनिस्टर्स, राष्ट्राध्यक्षों के सलाहकारों की भूमिका निभा रहे हैं। दुनिया भर में सिख अथवा भारतीय पंजाबियों की संख्या 12 मिलियन है , वे देशों की अर्थव्यवस्था और आंतरिक और विदेश राजनीति में विशिष्ट भूमिका निभा रहे हैं , ऐसे में उन्हें न्यू इंडिया के विजन से जोड़ने के लिए समय समय पर यह संदेश देने की जरूरत है कि भारत सरकार सिख कौम के समावेशी विकास के लिए ईमानदारी से खड़ी है और यही कारण है कि भारतीय प्रधानमंत्री सिख प्रतिनिधिमंडलों से मिल रहे हैं। अभी हाल में वह अफगान प्रतिनिधिमंडल से भी मिले थे, अफगानिस्तान में भारतीय और अन्य सिखों की सुरक्षा पर भी चर्चा उन्होंने अफगान प्रतिनिधिमंडल के साथ की थी। इन सब सार्थक बैठकों और चर्चाओं के पीछे सरकार की मंशा सबका साथ सबका विकास के वायदे को मूर्तमान बनाने की है।

( लेखक दस्तक टाइम्स के उत्तराखंड संपादक हैं )

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