टॉप न्यूज़दस्तक-विशेषफीचर्डस्तम्भ

क्यों न अनाथालय को वृद्धाश्रम से जोड़ दिया जाए

कवि दशरथ प्रजापत

राजस्थान: छोटी—छोटी व्यवस्थाओं से लोगों को अपार खुशी प्रदान की जा सकती हैं। देश में ऐसे कई मुद्दे हैं जो लोगों को आपस में जोड़ कर एक दूसरे के प्रति आत्मीयता भरने का कार्य कर सकते हैं उनमें से एक अनाथालय और वृद्धाश्रम से जुड़ा हुआ है।

मनुष्य जीवन को देखे तो लगता है कि जो छोटे बच्चें होते हैं वो अपने माता—पिता से ज्यादा दादा—दादी के साथ लगाव और समय व्यतीत करते हैं परंतु कुछ स्वार्थपरता के कारण माता—पिता को घर से निकाल दिया जाता है उधर कुछ ऐसे भी बच्चें होते हैं जो अनाथ हो जाते हैं अर्थात्‌ उनका पालन—पोषण करने वाला कोई नहीं रहता।

उन्हें कुछ विराट ह्दय वाले मनुष्य के द्वारा अनाथालय की शरण प्रदान करायी जाती हैं। यहाँ सोचने वाली बात यह है कि एक के जीवन में माँ बाप की कमी है और एक के बेटा—बेटी अथवा पोते इत्यादि की तो क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि एक को बेटा मिल जाए और दूसरे को माँ बाप का प्यार मिल जाए। ऐसा करने का केवल एक ही माध्यम हैं अनाथालय और वृद्धाश्रम को साथ में जोड़ दिया जाए।

बहुत बार ये भी होता है कि माँ—बाप को बेटे घर से बाहर नहीं निकालना चाहते हैं लेकिन उनका व्यवहार उनकों घर से बाहर निकालता हैं यहाँ पर उनका बच्चों के साथ सामंजस्य स्थापित करना भी कठिन हो सकता हैं लेकिन अनाथ बच्चों को उनसे थोड़ा ही सही किन्तु मार्गदर्शन तो अवश्य ही मिल सकता हैं।

ये कार्य करने में कोई विशेष राशि ख़र्च करने की जरूरत नहीं है बल्कि इससे तो पैसे की बचत होगी और बच्चों को बुजुर्गों से बहुत सारे अनुभव प्राप्त होगे। ये कार्य केवल सरकार के सानिध्य में ना छोड़कर अपने क्षेत्र के धनिक व्यक्तियों के द्वारा भी विशेष रूप से किया जा सकता है।

वर्तमान में जितने अनाथालय और वृद्धाश्रम स्थापित हैं उनमें भी प्रशासन और राजनेताओं के द्वारा सामंजस्य स्थापित करने की पूर्ण कोशिश करनी चाहिए। ये जो छोटे—छोटे कार्य मानवता को सुख प्रदान करते हैं उनकों यथार्थ में अवश्य लाना चाहिए।

इसलिए पुनः निवेदन है कि जल्द ही समस्त अनाथालय और वृद्धाश्रम को साथ में लाकर बच्चों व बुजुर्गों के जीवन में नई खुशियाँ का महोत्सव तैयार किया जाए।

Related Articles

Back to top button