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भारत-ईरान डील के बाद क्या वाकई अमेरिका लगा पाएगा प्रतिबंध

तेहरान: भारत और ईरान के बीच चाबहार में शाहिद बेहिश्ती पोर्ट टर्मिनल के विकास को लेकर एक दीर्घकालिक डील हुई है। इस डील पर हस्ताक्षर के बाद से ही अमेरिका (America) खुश नहीं लग रहा। अमेरिका ने प्रतिबंधों के जोखिम की चेतावनी दी है। अमेरिका की प्रतिक्रिया को व्यापक रूप से नीति-उलट कदम के रूप में देखा जा रहा है। 2018 की एक पॉलिसी के तहत अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत को कुछ प्रतिबंधों से छूट दी थी। विदेश मंत्रालय ने 13 मई को कहा कि इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन के बीच हुई डील क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा देगा।

ईरान के सड़क और शहरी विकास मंत्रालय के मुताबिक इस समझौते से भारत को बंदरगाह का इस्तेमाल करने के लिए 10 साल की सुविधा मिलेगी, जो पाकिस्तान के साथ ईरान की दक्षिणपूर्वी सीमा के करीब स्थित है। न्यूज एजेंसी AFP ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक IPGL रणनीतिक उपकरण प्रदान करने और बंदरगाह के परिवहन बुनियादी ढांचे को विकसित करने में 370 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा। समझौते के बाद अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा, ‘मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और हम इन्हें लागू करना जारी रखेंगे। कोई भी संस्था ईरान के साथ व्यापार करने की सोचे तो उसे जोखिम के बारे में पता होना चाहिए।’ विशेष छूट के बारे में पूछने पर पटेल ने न में जवाब दिया।

नवंबर 2018 में अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास और इसे अफगानिस्तान से जोड़ने वाली रेलवे लाइन के निर्माण में भारत को कुछ प्रतिबंधों से छूट दी थी। हालांकि अमेरिका ने भारतीय संस्थाओं और कंपनियों पर कई शर्तें लगायी हैं। अगर ये शर्तें पूरी नहीं होतीं तो इन्हें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका की ओर से जो मंजूरी दी गई उसमें चाबहार बंदरगाह का विकास और रखरखाव और अफगानिस्तान के लिए एक रेल लिंक शामिल था। लेकिन ईरान से कच्चे तेल के आयात और निर्यात को मंजूरी नहीं दी गई। इसके अलावा ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स, उसके अधिकारियों और सहयोगियों से लेनदेन की इजाजत नहीं दी।

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