बैद्यनाथ धाम आने वाले भक्तों की पूरी होती हैं मनोकामनाएं
–रांची से उदय चौहान
झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में इस वर्ष भी लाखों श्रद्धालुओं के जलाभिषेक करने की संभावना है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि बाबा बैद्यनाथ धाम में सावन के महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। उनकी सुविधा, सुरक्षा और सुलभ जलार्पण के लिए सरकार और प्रशासन पूरी तरह से तैयार है। सभी विभागों को पुख्ता तैयारी रखने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही सख्त हिदायत दी गयी है कि श्रावणी मेले के दौरान किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए। लापरवाही करने पर संबंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। सीएम ने कहा कि बाबा बैद्यनाथ से यही कामना है कि हर साल की तरह इस साल भी श्रावणी मेला 2024 सफलतापूर्वक संचालित हो और जितने भी श्रद्धालु बाबा धाम आएं, सभी सकुशल जलपान के बाद अपने घर को पहुंच जाएं।
बैजनाथ धाम का है बड़ा महत्व
झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में स्थांपित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है। यह देश का पहला ऐसा स्थान है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है लेकिन शिवपुराण में इसकी विस्ताारपूर्वक जानकारी मिलती है। इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं- जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्पर कानन, हृदयपीठ और कामना लिंग। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। इसके अलावा इस धाम को अन्य कई नामों से भी जानते हैं।
बैजनाथ धाम देवघर को हृदयपीठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया। यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही। शिवजी ने कहा कि बिना निमंत्रण कहीं भी जाना उचित नहीं। लेकिन सतीजी ने कहा कि पिता के घर जाने के लिए किसी भी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं। शिवजी ने उन्हें कई बार समझाया लेकिन वह नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गईं। लेकिन जब वहां उन्होंने अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं। सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहरि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स्थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है इस स्थान पर देवी सती का हृदय गिरा था। यही वजह है कि इस स्थान को हृदयपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह यह देश का पहला ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस वजह से इस स्थान की महिमा और भी बढ़ जाती है।
झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंग कामना लिंग बाबा बैद्यनाथ के मंदिर परिसर में ऐसे तो 22 मंदिर हैं, जहां एक ही परिसर में शिव, शक्ति, विष्णु, ब्रह्मा की भी पूजा होती है। इस परिसर में शिव मंदिर के शिखर से मां पार्वती मंदिर के शिखर तक गठबंधन की एक अनोखी परंपरा है, जो यहां आने वाला हर भक्त करना चहता है। प्राचीनकाल से चले आ रहे इस धार्मिक अनुष्ठान को ‘गठजोड़वा’ या ‘गठबंधन’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस अनुष्ठान को करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है और राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर से लेकर माता पार्वती मंदिर के शिखर तक ग्रंथिबंधन एक लाल धागे से बांधा जाता है। यह अनुष्ठान किसी अन्य ज्योतिर्लिंग में देखने को नहीं मिलता है। इस गठबंधन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे कोई पुरोहित नहीं करते बल्कि प्राचीनकाल से यह गठबंधन का कार्य मंदिर के उपर चढ़कर भंडारी समाज के एक ही परिवार के लोग करते आ रहे हैं। यह गठबंधन ‘लाल रज्जु’ से निर्मित होता है। इस अनुष्ठान में पति-पत्नी दोनों ही सम्मिलित होते हैं। भंडारी समाज के लोगों का कहना है कि इस गठबंधन को हमारे पूर्वज करते थे और आज हम कर रहे हैं। उनका कहना है कि परंपरा निर्वाह करने से अच्छी आमदनी हो जाती है, जिससे पूरा परिवार चलता है।
45-50 भक्त करते हैं गठबंधन
सावन माह में गठबंधन करने वाले भक्तों की कमी हो जाती है, लेकिन अन्य दिनों में यह गठबंधन करने के लिए प्रतिदिन 45 से 50 की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। गठबंधन करने वाले मोहन राउत कहते हैं कि मंदिर के ऊपर जाने के लिए एक मोटी जंजीर लगी है जिसके सहारे दोनों मंदिर पर चढ़ा जाता है। गठबंधन के संकल्प के बाद वे आगे शिव मंदिर के शिखर पर गठबंधन करते हैं। इस दौरान भक्त उस लाल रज्जु को पकड़े रहते हैं। इसके बाद भक्त ही इस लाल रज्जु को पार्वती मंदिर तक ले जाते हैं जहां हम लोग उसे लेकर फिर पार्वती के मंदिर के शिखर में बांध देते हैं।
शास्त्रों में मिलता है गठबंधन का उल्लेख
गठबंधन के विषय में मंदिर के मुख्य पुरोहित दुर्लभ मिश्र का कहना है कि यह अनुष्ठान काफी प्राचीन है। यहां शिव अकेले नहीं मां पार्वती के साथ हैं। शास्त्रों में भी गठबंधन तथा ध्वज चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। इस पुनित कार्य से जहां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है, वहीं इसके करने से लोगों को राजसूय यज्ञ का फल भी प्राप्त होता है।
सालभर शिवभक्तों की यहां भारी भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन महीने में यह पूरा क्षेत्र केसरिया पहने शिवभक्तों से पट जाता है। भगवान भेलेनाथ के भक्त 105 किलोमीटर दूर बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज में बह रही उत्तर वाहिनी गंगा से जलभर कर पैदल यात्रा करते हुए यहां आते हैं और बाबा का जलाभिषेक करते हैं।