नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कमाई करने में सक्षम होने पर भी एक महिला की देखभाल करने से इनकार करने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि कई बार पत्नियां केवल परिवार के लिए अपने करियर का त्याग करती हैं। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद हाल ही में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत एक व्यक्ती की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उसने पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 33,000 रुपये का भुगतान करने के विरुद्ध एक याचिका दायर की थी। न्यायाधीश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सीआरपीसी के प्रावधान के पीछे का उद्देश्य एक पत्नी की वित्तीय पीड़ा को कम करना था।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी जीविकोपार्जन में सक्षम थी, क्योंकि वह पहले एक शिक्षक के रूप में कार्यरत थी। याचिका पर कोर्ट ने कहा, “प्रतिवादी कमाई करने में सक्षम है, प्रतिवादी को अंतरिम भरण-पोषण से इनकार करने का कोई आधार नहीं है। कई बार पत्नियां सिर्फ परिवार के लिए अपना करियर कुर्बान कर देती हैं।”
कोर्ट ने पति के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि एक सेना अधिकारी होने के नाते, रखरखाव के दावे को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा सेना के आदेश के अनुसार तय करना होगा। कोर्ट ने कहा, “यह नहीं कहा जा सकता है कि सेना का आदेश सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों को ओवरराइड करेगा। यह नहीं कहा जा सकता है कि सेना के जवान केवल सेना के आदेश के तहत आते हैं और धारा 125 सीआरपीसी सेना के कर्मियों पर लागू नहीं होगी।” हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
हालांकि, हाईकोर्ट ने महिला को दी जाने वाली राशि को घटाकर 14,615 रुपये प्रति माह कर दिया, क्योंकि बच्चे अब उसके साथ नहीं रह रहे हैं। अपनी याचिका में पति ने इस आधार पर अंतरिम गुजारा भत्ता देने का विरोध किया कि पत्नी एक रिश्ते में थी और सेना के वरिष्ठ के साथ रह रही थी।
हालांकि, पत्नी ने तर्क दिया कि निचली अदालत के 35,300 रुपये के भरण-पोषण के आदेश में कोई खामी नहीं है और दावा किया कि याचिकाकर्ता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, भले ही उनकी शादी टूट गई। उसने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता एक लापरवाह जीवनसाथी था और जब उसने अलग रहने का फैसला किया, तो उसने उसे भरण-पोषण का भुगतान करने से बचने के लिए गलत आरोप लगाया।