लेह में फहराया गया दुनिया का सबसे बड़ा खादी राष्ट्रीय ध्वज, केंद्र शासित प्रदेश ने बापू को अलग अंदाज में दी श्रद्धांजलि
जम्मू: देशभर में आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 152वीं जयंती मनाई जा रही है। हर कोई इस मौके पर बापू को अपने अंदाज से श्रद्धांजलि दे रहा है। इसी बीच लेह में दुनिया का सबसे बड़ा खादी राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया है। लद्दाख के उपराज्यपाल आरके माथुर ने इसका उद्घाटन किया। इस मौके पर थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे भी मौजूद रहे। इसको लेह में जांस्कर घाटी में लगाया गया है। खादी से बना ये तिरंगा मुंबई की एक प्रिंटिंग कंपनी के सहयोग से तैयार किया गया है।
मुंबई की कंपनी केवीआईसी ने दुनिया का ये सबसे बड़ा खादी का राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया है। केवीआईसी ने “आजादी का अमृत महोत्सव” के हिस्से के रूप में इस राष्ट्रीय ध्वज की अवधारणा को तैयार किया। झंडा 225 फीट लंबा, 150 फीट चौड़ा और इसका वजन लगभग 1400 किलोग्राम है। ध्वज को सुरक्षाबलों ने देश भर के ऐतिहासिक स्मारकों और रणनीतिक स्थानों पर प्रदर्शित करने का प्लान तैयार किया है। तिरंगे को संभालने और प्रदर्शित करने के लिए ध्वज को भारतीय सेना को सौंपा गया था। इस तिरंगे को बनाने के लिए 4500 मीटर खादी के कपड़े का इस्तेमाल किया गया है। ये तिरंगा कुल 37,500 वर्ग फुट के क्षेत्र को कवर करता है। राष्ट्रीय ध्वज को तैयार करने में 70 कारीगरों को 49 दिन लगे हैं।
सबसे बड़े तिरंगे के अनावरण और गांधी जयंती के कार्यक्रम के मौके पर आर्मी चीफ एमएम नरवणे और लद्दाख के उपराज्यपाल मौजूद रहे। ये तिरंगा 8 अक्टूबर को एयरफोर्स डे के मौके पर हिंडन में भी लगाया जाएगा। जांस्कर कारगिल जिले की एक तहसील है जो कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में मौजूद है और कारगिल से 250 किलोमीटर दूर एनएच 301 पर है। ये घाटी लद्दाख से करीब 105 किलोमीटर दूर है। वहीं जांस्कर रेंज लद्दाख की एक पर्वत श्रृंखला है।
भूवैज्ञानिक रूप से जांस्कर रेंज टेथिस हिमालय का हिस्सा है। जांस्कर रेंज की औसत ऊंचाई लगभग 6,000 मीटर (19,700 फीट) है। इसका पूर्वी भाग रूपशु के नाम से जाना जाता है। जांस्कर को एक जिले में बदलने की मांग की जा रही है। जांये भारत की उन खूबसूरत जगहों में से एक है, जिसका सौंदर्य देखते ही बनता है। जांस्कर घाटी में बर्फ से ढके पहाड़ों और स्वच्छ नदियों से सजी हुई है। इस घाटी को जहर या जंगस्कर जैसे स्थानीय नामों से भी जाना जाता है। सातवीं शताब्दी में जब लद्दाख में बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी, तब जांस्कार घाटी पर भी इसका प्रभाव पड़ा। यह बौद्ध धर्म की भक्ति का भी एक केंद्र बन गया।