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2021-राजनीतिक दलों के लिए नई चुनौतियों का वर्ष  

सुरेश बहादुर सिंह

लखनऊ: कोरोना-2 की आशंका के बीच नया वर्ष सरकार व सत्ता के लिए चुनौती भरा होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष जहां कोरोना से निपटने की चुनौती होगी वहीं विपक्ष को न सिर्फ कमजोर करने बल्कि पार्टी की गतिविधियों में तेजी लाना भी उनकी प्राथमिकता होगी।

वर्ष-2020 को अगर कोरोना कहर के रूप में याद किया जाए तो गलत नहीं होगा, हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों के कारण कोरोना प्रदेश में अपना असली रूप नहीं दिखा पाया। योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से कोरोना पर अंकुश लगाया उससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि 2021 में वह कोरोना को पूरी तरह समाप्त करने में सफल होंगे। योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल में इंसेफ्लाइटिस को पूरी तरह समाप्त करने का काम पहले भी कर चुके हैं। उनका वही अनुभव कोरोना को भी समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

वर्ष-2020 भले ही सबसे बड़ा कष्टकारी वर्ष रहा हो, लेकिन वह कुछ उपलब्धियों के लिए भी याद किया जाएगा। इसी वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का पूजन करके वर्षों पुराने विवाद का खात्मा करके करोड़ों देशवासियों का दिल जीत लिया है। निश्चित रूप से जब 2020 को सबसे बुरे वर्ष के रूप में याद किया जाएगा तो वहीं राम मन्दिर निर्माण की उपलब्धियों को भी याद किया जाएगा।

राजनीतिक दलों के लिए वर्ष-2020 निराशाजनक रहा, लेकिन भाजपा ने इस कोरोना काल में भी अपनी राजनीतिक गतिविधिया जारी रखी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वचुअल संवाद के माध्यम से प्रदेश की जनता से अपना संवाद बनाये रखा, यही नहीं वर्चुअल मिटिंग के माध्यम से मुख्यमंत्री प्रदेश के विकास की भी समीक्षा करते रहे।

कोरोना काल के दौरान भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में कमी नहीं आयी बल्कि उनकी लोकप्रियता का जादू देश के अन्य प्रदेशों में भी देखने को मिला। 2020 में सम्पन्न हुए विधानसभा के चुनावों में वह भाजपा के स्टार प्रचारक की भूमिका निभाई। मुख्यमंत्री ने जहां जहां अपनी रैलियां की वहां अधिकांश जगहों पर भाजपा को सफलता मिली।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली के समक्ष विपक्ष बौना ही नजर आया। विपक्ष कभी भी सत्ता पक्ष को चुनौती देने की स्थिति में नहीं आ सका, यही कारण है कि प्रदेश में सम्पन्न हुए उपचुनाव में भाजपा को भारी सफलता मिली। विपक्ष को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी।

पूरे वर्ष विपक्ष अपने अस्तित्व के लिए जूझता रहा। कांग्रेस लगातार अपने प्रदर्शनों व धरनों के माध्यम से सत्ता के समक्ष चुनौती पेश करने का प्रयास करता रहा, लेकिन कांग्रेस को इसमें बराबर ही असफलता मिली। समाजवादी पार्टी ने अपने जुझारू और संघर्शशील चुनौती करके भाजपा के असली विपक्ष के रूप में अपने को स्थापित किया। बहुजन समाज पार्टी ने ऐन वक्त पर भाजपा को समर्थन करके अपना जनाधार न सिर्फ खोया है बल्कि वह भाजपा के पिछलग्गू के रूप में जानी जाने लगी, हालांकि बसपा प्रमुख मायावती ने कई बार अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की लेकिन प्रदेश की जनता पर उसका कोई असर दिखाई नहीं दिया।  प्रदेश की जनता आज भी उन्हें भाजपा की पिछलग्गू के रूप में ही देखती है, जिसका खामियाजा उन्हें आगामी चुनाव में भोगना पड़ेगा।

आप पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के प्रयासों से आम आदमी पार्टी भी प्रदेश की जनता में अपनी छाप छोड़ने में सफल रही। सांसद संजय सिंह पूरे प्रदेश का दौरा करके न सिर्फ जनता की समस्याओं से रूबरू हुए बल्कि कई अवसरों पर सरकार को कटघरे में भी खड़ा किया। श्री सिंह ने सरकार से ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी का लाभ उठाकर उन्हें आप पार्टी से जोड़ने का प्रयास किया है। श्री सिंह के व्यापक दौरे से सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों में खलबली होती नजर आई। आप पार्टी ने आगामी पंचायत चुनाव लड़ने की घोषणा करके सभी दलों को असमंजस में डाल दिया है, हालांकि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी अपना स्थान बनाने में सफल रही।

नया वर्ष सत्ता व विपक्ष दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष जहां कोरोना के कहर से प्रदेश की जनता को बचाने की चुनौती होगी, वहीं भाजपा को 2022 में सम्पन्न होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी को प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापस लाने की जिम्मेदारी होगी, हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने विकास कार्यों के बल पर सत्ता में वापसी के लिए आश्वस्त है। विपक्षी दलों के समक्ष सत्ता को मात देने की चुनौती होगी। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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