तुम्ही हो नैया, तुम्ही खिवैया
प्रसंगवश
स्तम्भ : बात बात पर और मोड़ मोड़ पर अपनी सारी समस्याओं के लिए सरकार की तरफ ताकना हमारी पुख्ता आदत बन गई है। और यही नहीं, हम अनुशासन में तभी रह पाते हैं जब हमारे सिर पर डंडा लहराता हुआ कोई पुलिस वाला हमें हड़काता चलता है। कोरोना माई इसका ताजा उदाहरण हैं। अगर कोरोना पर पूरा नियंत्रण नहीं हो पा रहा है और लखनऊ जैसे शहरों में उसके संक्रमित लोगों की संख्या जब कभी बढ़ जाती है तो हम इसके लिए सरकार को पूरी तरह दोषी मानते हैं।
जबकि हम मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलें और दूसरों से दूरी बनाकर चलें, ये नियम हम तभी मानते हैं जब पुलिस वाला सामने खड़ा दिख रहा हो या उसका डंडा घूम रहा हो। उत्तर प्रदेश में सरकार ने लॉकडाउन बहुत पहले उठा लिया था, हां शनिवार, इतवार दफ्तर और बाजार बंद रखे जाते हैं। पर ये भी हमें गंवारा नहीं होता। हम दो दिन की बंदिशें भी बर्दाश्त के काबिल नहीं समझते, सो पुलिस वालों से आंख बचाकर निकल भी पड़ते हैं और कहीं कहीं दुकान भी चला लेते हैं, सौदा-पता भी हो जाता है। दारू तो मिल ही जाती है, गुटका, सिगरेट भी आसानी से मिल जाते हैं।
मास्क लगाना हमें बिल्कुल गवारा नहीं जबकि महामारी से सबसे दुरुस्त बचाव यही है। हेलमेट की तरह हम मास्क अपने पास रखते तो हैं पर उसको धारण तभी करते हैं जब कोई पुलिस वाला हमें अपनी ओर ताकता नजर आने लगता है। लोग कहते हैं कोरोना से डर इसलिए है कि उसकी कोई दवा नहीं है और वह लाइलाज है। मतलब यह कि कोरोना का डर हमारे जहन में तभी चोट करता है जब हम मजबूरी में उससे बचने के उपाय करते हैं।
अब हम आपको बताते हैं, उन दो देशों का हाल जहां के लोगों नेे आत्मानुशासन के सम्पुट से सरकारी कदमों को कोरोना पर चोट करने में जबर्दस्त सफलता हासिल करने के लिए सक्रिय सहायता की है। ये देश हैं जापान और न्यूजीलैंड।
कोई 13 करोड़ की आबादी वाले जापान में जुलाई तक केवल करीब 17 हजार लोग महामारी से संक्रमित हुए और इनमें से लगभग 14 हजार ठीक भी हो गए। जो एक्टिव केस हैं, उनकी संख्या है मात्र लगभग तीन हजार, जो दुनिया के सभी देशों में सबसे कम है। पूरे जापान में मात्र 0.2 प्रतिशत आबादी का वायरस का टेस्ट करने की जरूरत पड़ी है। यह भी दुनिया में सबसे कम है। दरअसल संक्रमण इतना सीमित था कि टेस्ट करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सख्त लाॅकडाउन भी वहां लागू करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। जापान की सरकार विश्व में सबसे अधिक अनुशासित नागरिकों पर पूरी तरह निर्भर रही। लोगों ने सरकार के हर आदेश का आंख बंद करके पालन किया, जिसका नतीजा थी ये सफलता। वहां के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा कि कोई लाॅकडाउन नहीं किया जाएगा, लोग सिर्फ सामाजिक भीड़भाड़ न होने दें और मास्क जरूर पहनें। हर परिवार को दो मास्क सरकार ने उपलब्ध कराए।
जापान में लोगों ने सरकार के कहने पर धार्मिक अनुष्ठान की तरह मास्क पहने और कहीं भी कोई व्यक्ति बिना मास्क के नहीं पाया गया और न ही इसके लिए कोई सख्ती करने की आवश्यकता हुई। वहां सड़कों पर पुलिस को घूमने की जरूरत नहीं होती। जापान में आम लोगों के बीच अनुशासन और अनुशासन का भाव देखते ही बनता है। इसीलिए बहुत थोड़े से प्राकृतिक साधनों के बावजूद वह विश्व के चोटी के देशों में है। उसकी असली ताकत है— मेहनती और कानून के पालनकर्ता अनुशासित नागरिक।
दूसरा अनुकरणीय देश है न्यूजीलैंड, जिसकी आबादी है कुल पचास लाख लेकिन गजब का नेतृत्व उन्हें प्राप्त होता रहा है। अभी जो महिला प्रधानमंत्री हैं- जसिंडा अरडर्न, उन्हें कोरोना से निपटने में मिली सफलता के बाद दुनिया का सबसे प्रभावी लीडर माना जाने लगा है। अगस्त के पहले सप्ताह में उनके यहां घोषणा की गई थी कि सौ दिन में कोरोना का एक भी केस उनके देश में नहीं हुआ। उनकी फितरत यह थी कि उन्होंने चीन से अपने देश में आने वालों पर फरवरी में ही प्रतिबंध लगा दिया था जबकि 19 मार्च को सभी विदेशों से लोगों के आने पर रोक लगा दी थी। यह आश्चर्यजनक निर्णय था क्योंकि न्यूजीलैंड की अर्थ व्यवस्था का पर्यटन बहुत बड़ा संबल है। लेकिन इसका प्रभावी असर हुआ और कोरोना पैर नहीं पसार पाया। सख्त लाॅकडाउन लागू नहीं किया गया लेकिन लोगों से घर में रहने को कहा गया और लोगों ने सरकार की बात मानी।
न्यूजीलैंड में काफी समय के बाद दो मामले रिपोर्ट हुए और वायरस का खतरा अभी भी मंडराता रहता है लेकिन लोग निडर हैं, खेल के मैदान खुले हुए हैं और नाइट क्लब चल रहे हैं। इतना जरूर हुआ है कि प्रधानमंत्री ने सावधानी के तौर पर कल घोषणा की कि 19 सितम्बर को होने वाले आम चुनाव अभी स्थगित कर दिए गए हैं। वे अब 17 अक्टूबर को होंगे। हम इन दो देशों से बहुत कुछ सीख सकते हैं- खास तौर पर आम नागरिक। लोग अनुशासन में रहकर सरकारी निर्देशों का पालन करें तो आधी समस्या हल हो जाएगी। आत्मानुशासन कोरोना का हल्का फुल्का इलाज तो है ही।