उत्तराखंड

यू ही कोई जननायक नहीं बन जाता

“जननायक” शब्द का अर्थ है “लोगों का नेता”, और एक सच्चा जननायक वह होता है जो लोगों के लिए समर्पित हो और उनके भले के लिए काम करे। क्योंकि किसी भी नेता को “जननायक” तब माना जाता है जब वह सरकार से लेकर किसानों के खेतों तक, सभी स्तरों पर लोगों की नब्ज पकड़ कर समस्या को जान लेने का हुनर रखता हो और उस समस्या का समाधान उपस्थित करने की क्षमता भी रखता हो।

अच्छे लीडर की पहचान ही यही है कि उसको समाज के हर वर्ग की जरूरतों और समस्याओं की समझ हो,चाहे वह समाज में उच्च पद पर बैठा व्यक्ति हो या फिर एक साधारण किसान। एक जननायक को इन दोनों स्तरों पर काम करना होता है, और यह सुनिश्चित करना होता है कि समाज के सभी वर्गों को न्याय मिले, और सभी को विकास के समान अवसर मिले।

दस्तक ब्यूरो: आषाढ़ की रिमझिम बारिश के बीच उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी खुद को पानी में डूबे खेतों में उतरने से रोक नहीं पाए। झक सफेद पतलून को घुटनों तक चढ़ा कर वे भी ग्रामीण महिलाओं के साथ पहाड़ की पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत ‘हुड़किया बौल’ में शामिल हो गए। धामी ने पूरे उत्साह के साथ अपने गृह नगर खटीमा के नगरा तराई में खेत में धान की रोपाई की। किसान यह देखकर उस वक्त दंग रह गए जब धामी पूरी कुशलता और संतुलन के साथ दो बैलों को पटरे में जोत से खेत को समतल करने के लिए ‘मै लगाते’ दिखे। खेतों में खड़े सीएम उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा “हुड़किया बौल” के जरिए भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना करते नजर आए।

भारतीय राजनीतिक जमीन पर यह एक दुर्लभ नजारा था। खटीमा धामी की कर्मभूमि रही है। फौज से रिटायरमेंट के बाद धामी के पिता ऊधम सिंह नगर जिले के खटीमा शहर में आ गए थे। धामी परिवार खटीमा के नगरा तराई में वह रहने लगा और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा क‍ि धामी पहली बार इसी शहर से विधायक बनकर सदन में जाएंगे और देखते-देखते सूबे के मुख्यमंत्री बन जाएंगे।

तराई में अपने बचपन के दिनों में उन्होंने किसानों को धान की रोपाई करते देखा है। किसानों के श्रम, त्याग और समर्पण को अनुभव ने उन्हें पुराने दिनों की याद दिला दी। कुमाऊँ क्षेत्र में परंपरिक खेती और सामूहिक श्रम से जुड़ी “हुड़किया बौल” परम्परा ने धामी को हमेशा प्रभावित किया है। खेतों में हुड़किया बौल के गूंजते स्वर पहाड़ की समृद्ध परम्परा का स्मरण दिलाते हैं। हर साल धान की रोपाई के दौरान हुड़किया बौल के माध्यम से कृषि से जुड़े देवताओं को याद किया जाता है। भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है। फिर हास्य व वीर रस आधारित राजुला मालूशाही, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं। लोक गायक हुड़के को थाप देते हुए गीत गाता है। रोपाई करती महिलाएं उस गीत को दोहराती हैं। हुड़के की गमक और गीत के बोलों से हाथों में गजब की फुर्ती-सी आ जाती है।खेत में रोपाई करते सीएम धामी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखते-देखते वायरल हो गईं।

धामी की राजनीति का अंदाज और उनकी छवि अन्य नेताओं से एकदम अलग है। बीते चार सालों से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कमान धामी के हाथ में है। वे शुरू से ही जनता के बच जाकर उनके दिल की बात सुनने में यकीन रखते हैं। सादे कपड़ों में, बिना किसी तामझाम के वे सुबह की सैर पर निकल जाते हैं। तब उनके साथ न तो कोई बड़ा काफिला होता है, न ही सुरक्षा का भारी-भरकम दिखावा। बस कुछ करीबी सहयोगी और उनकी चिर-परिचित मुस्कान।

उनके एक करीबी सहयोगी बताते हैं कि इस सब में सादगी इतनी रहती है कि शुरू-शुरू के दिनों में तो दुर्गम इलाकों में रहने वाले भोले भाले ग्रामीण उन्हें पहचान भी नहीं पाते थे। वे ग्रामीण सोच भी नहीं सकते थे कि सड़क के किनारे बनी सामान्य से टी स्टाल पर उनके साथ चाय की चुस्कियां लेता हुआ जो व्यक्ति बैठा है वह सूबे का सीएम है। यह सैर केवल देहरादून तक सीमित नहीं। चाहे हरिद्वार का गंगा घाट हो, रुद्रप्रयाग की पहाड़ियां, या चीन सीमा से लगे पिथौरागढ़ के गांव। धामी हर जगह लोगों से मिलते हैं। पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के पहले ऐसे नेता हैं जो कुमाऊँ में जितने लोकप्रिय हैं उससे ज़्यादा उन्हें गढ़वाल के लोग अपना मानते हैं और साथ ही मैदानी क्षेत्र के लोगों में तो वे विशेष तौर पर लोकप्रिय हैं ।

22 जून 2025 को, उनकी सुबह सैर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। एक यूजर ने लिखा, “नेता दरबार लगाते हैं, धामी जनता के दरबार में जाते हैं। ऐसे सीएम अब दुर्लभ हैं।” एक अन्य पोस्ट में कहा गया, “जब नेता जनता दरबार लगाते हैं, उस दौर में हमारा मुख्यमंत्री तामझाम छोड़कर खुद जनता के बीच पहुंच रहा है।” ये शब्द धामी की लोकप्रियता और उनके इस पहल के प्रभाव को बयां करते हैं। पर अब लोग नहीं चौंकते। वे जानते हैं कि धामी का अपना अलग अंदाज है। देहरादून के राजपुर रोड पर चाय की दुकान चलाने वाले दीवान सिंह कहते हैं, “हमने कई नेताओं को देखा, लेकिन धामी जी जैसा कोई नहीं। वे सुबह-सुबह हमारे बीच आते हैं, हमारी बात सुनते हैं, और समाधान का भरोसा देते हैं। ऐसा लगता है, जैसे कोई अपना ही हो।” यह भावना केवल राम सिंह की नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की है, जो धामी की इस सैर में उनके साथ कुछ पल बिताते हैं।

उनकी इसी सादगी ने उन्हें उत्तराखंड का सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री बना दिया है। कभी खेतों में रोपई करते हुए तो कभी सड़कों पर सैर करते हुए, धामी न केवल लोगों की समस्याएं सुनते हैं, बल्कि उनके सपनों को भी समझते हैं। उनकी मुस्कान और सादगी लोगों को भरोसा देती है कि उनका मुख्यमंत्री उनके बीच का ही है। जैसे-जैसे सूरज उगता है, धामी की सैर खत्म हो जाती है, लेकिन उनके संकल्प की रोशनी उत्तराखंड के हर कोने को रौशन करती रहती है।

यह एक ऐसी कहानी है, जो न केवल एक मुख्यमंत्री की सादगी को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सच्चा नेतृत्व वही है, जो जनता के दरबार में जाकर उनके दिलों को जीते।तभी एक नेता जननायक बन पाता है ।

Related Articles

Back to top button