नई दिल्ली: फिलहाल फरवरी का महीना है लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में औसत तापमान से 11 डिग्री ज्यादा रिकॉर्ड दर्ज किए जा रहे हैं। फरवरी में ही अप्रैल जैसी गर्मी का अहसास होने लगा है। फरवरी में असामान्य रूप से बढ़ रहा तापमान इस साल अत्यधिक गर्मी का संकेत दे रहा है। अल नीनो जैसी मौसमी घटना की वजह से इस साल मानसून प्रभावित हो सकता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में फरवरी में तापमान में अचानक बढ़ने से फसल की पैदावार को खतरा है। गेहूं और सरसों की रबी फसलों पर इसका प्रभाव पड़ा है। इन फसलों को तैयार होने के लिए अभी भी कम तापमान की आवश्यकता होती है। यदि गर्मी रबी की इन फसलों को खराब कर देती है तो अल नीनो की वजह से इस साल कम वर्षा के कारण चावल और बाजरा जैसी खरीफ फसलों पर प्रभाव पड़ेगा। इस वजह से महंगाई बढ़ने की उम्मीद है।
गर्मी की वजह से खाद्यानों के रखरखाव और परिवहन भी प्रभावित होगा। चूंकि भारत में पर्याप्त कोल्ड चेन का अभाव है, इसलिए अत्यधिक गर्मी अक्सर बड़े खाद्य नुकसान का कारण बनती है। फसल की पैदावार में गिरावट एफएमसीजी कंपनियों के लिए एक चुनौती होगी जो खाद्य उत्पादों के साथ-साथ उन उत्पादों का उत्पादन करती हैं, जिसे तैयार करने वाले ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।
अत्यधिक गर्म मौसम की संभावना से भारत के बिजली क्षेत्र को भी खतरा है। बढ़ते तापमान का मतलब – एसी और मोटर जैसे उपकरणों का अधिक उपयोग है। जिससे बिजली की खपत बढ़ जाएगी। जिससे उद्योग का कामकाज प्रभावित होगा। बिजली की पीक डिमांड जनवरी में 211 गीगावाट तक पहुंच गई, जो पहले की तुलना में ज्यादा है। पिछली गर्मियों की तुलना में बिजली की मांग 20% से 30% तक बढ़ सकती है।
अत्यधिक गर्मी के कारण श्रम पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। श्रमिकों को केवल निर्माण मजदूर ही नहीं हैं, जिन्हें खुले में काम करना पड़ता है। गर्मी के कारण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में श्रम उत्पादकता में भारी गिरावट नजर आ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक गर्मी-तनाव से जुड़ी उत्पादकता में गिरावट से अनुमानित 80 मिलियन वैश्विक नौकरी का नुकसान झेलना होगा, जिसमें भारत का योगदान 34 मिलियन हो सकता है।