देहरादून (गौरव ममगाईं)। पीसीएस बनना हर किसी का ख्वाब होता है। मगर, उत्तराखंड में लाखों युवाओं के लिए पीसीएस बनने का सपना देखना भविष्य पर भारी पड़ रहा है। कसूर बस इतना है कि वो कड़ी मेहनत करके अपने राज्य की बेहतरी में योगदान देना चाहते हैं। भर्ती प्रक्रिया व पाठ्यक्रम से जुड़ी अनेक समस्याएं हैं, जिनमें युवा सुधार चाहते हैं, लेकिन राज्य गठन के 23 साल बाद भी अभी तक सुनवाई नहीं हो सकी। आलम यह है कि प्रदेश की सबसे बड़ी पीसीएस परीक्षा भर्ती कराने में उत्तराखंड, हिमाचल समेत अन्य राज्यों में सबसे पीछे नजर आने लगा है।
क्या हैं मुख्य समस्याएं ?
पहली समस्या यह है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार व अन्य राज्यों में हर वर्ष पीसीएस भर्ती निकाली जाती है, लेकिन उत्तराखंड ऐसा राज्य है जहां 5 से 6 साल में पीसीएस भर्ती होती है। इससे अनेक युवाओं की उम्र अधिकतम आयु मानक से ज्यादा हो जाती है और वे अपात्र ठहरा दिये जाते हैं। वहीं, प्रदेश के हजारों युवा पीसीएस बनने का सपना छोड़कर दिल्ली में यूपीएससी या अन्य राज्यों की पीसीएस परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, जहां पहले ही बड़ी प्रतिस्पर्ध्दा रहती है।
दूसरी यह कि पीसीएस परीक्षा का पाठ्यक्रम इस तरह फ्रेम किया है कि उसमें उत्तराखंड का पाठ्यक्रम सीमित है, जबकि सामान्य ज्ञान का पाठ्यक्रम सर्वाधिक है। इस कारण अन्य राज्यों की पीसीएस की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी सामान्य ज्ञान में पकड़ अच्छी होने के कारण परीक्षा पास कर लेते हैं। यह मांग उठती रही है कि पीसीएस मेंस परीक्षा में कुल 7 पेपर में 2 पेपर उत्तराखंड पर आधारित शामिल किये जाएं, ताकि स्थानीय युवाओं को अधिक अवसर मिल सके। वे स्थानीय परिस्थितियों से भी वाकिफ होते हैं, जिसका लाभ राज्य को मिलेगा।
तीसरा यह कि भर्ती निकलने में पहले ही सालों की देरी होती है, उसके ऊपर भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने में लगने वाला 3 से 4 साल का समय भी जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। 2016 में हुई पिछली भर्ती का फाइनल रिजल्ट 2019 में आया। जबकि, हाल ही में सितंबर 2021 में शुरू हुई भर्ती का अब तक मेन्स का रिजल्ट तक नही आ सका है। इसके बाद इंटरव्यू भी होंगे, तब फाइनल रिजल्ट आएगा। इस प्रक्रिया में भी 5 से 7 महीने और लगने की संभावना है।
सीएम धामी ने दिये थे निर्देश, विभाग कर रहे अनदेखीः
ताज्जुब की बात है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी स्वीकारा था कि पीसीएस भर्ती में हो रही देरी चिंताजनक है। उन्होंने सभी विभागों को सख्त निर्देश दिये थे कि वे हर साल नियमित रूप से अपने-अपने विभागों के अध्याचन उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (यूकेपीएससी) को भेजें, ताकि हर साल पीसीएस भर्ती निकाली जा सके, लेकिन उत्तराखंड लोक सेवा आयोग का कहना है कि विभागों द्वारा अध्याचन भेजने में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई जा रही है। कोई अध्याचन भेजता भी है तो किसी कमी के रहने पर विभाग को दोबारा अध्याचन संशोधन के लिए भेजे जाते हैं, लेकिन उसके बाद विभाग अध्याचन को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। दोबारा आयोग को अध्याचन प्राप्त नहीं होते।
विभागों का यह रूख बेहद चिंताजनक है। ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अब कड़ा रूख अपनाना चाहिए। सीएम धामी ने सख्त नकल विरोधी कानून लाकर ऐतिहासिक काम जरूर किया, लेकिन अब ऐसी स्थायी व्यवस्था भी तैयार करनी चाहिए, जहां पीसीएस व लोअर पीसीएस भर्ती हर साल हो सके। सीएम धामी को विभाग व आयोग की जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि उत्तराखंड के युवाओं के सपनों को बचाया जा सके।