उत्तर प्रदेश

अखिलेश के पास लाठी-हाथी और 786 का है साथ

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की आजमगढ़ लोकसभा सीट पर एक बार फिर हाई प्रोफाइल सियासी रणभूमि बन रही है. मुलायम सिंह यादव की विरासत बचाने के लिए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुद ही मैदान में उतरने का फैसला लिया है. जबकि बीजेपी ग्लैमर तड़का के सहारे जीत की आस लगा रही है. ऐसे में बीजेपी ने भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव (निरहुआ) को अखिलेश के सामने आजमगढ़ सीट से उतारने की तैयारी में है.

भोजपुरी स्टार दिनेश लाल निरहुआ बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने के बाद बीजेपी में शा‍मिल हो गए. भोजपुरी स्टार और बीजेपी नेता रवि किशन ने ऐलान किया है कि निरहुआ लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. खुद निरहुआ ने भी कहा कि पार्टी जहां से लड़ाएगी, वे तैयार हैं. उन्होंने कहा कि उनकी सीट के बारे में एक-दो दिन में घोषणा हो जाएगी. बीजेपी के सूत्रों ने भी निरहुआ के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने पर हामी भरी है.

बड़ा सवाल- यादव, दलित और मुस्‍लि‍म साथ हैं, तो निरहुआ कैसे देंगे चुनौती

सपा-बसपा- RLD गठबंधन के नाते अखिलेश यादव के पक्ष में इन दिनों आजमगढ़ में जिस प्रकार ‘लाठी-हाथी और 786 एक साथ चलेंगे’ के नारे सुनाई दे रहे हैं. इस नारे का इशारा यादव, दलित और मुस्लिमों से है. ऐसे में निरहुआ सपा अध्यक्ष खिलाफ कैसे चुनौती दे पाएंगे. हालांकि निरहुआ खुद भी यादव समुदाय से आते हैं, लेकिन आजमगढ़ के यादव समुदाय के कद्दावर नेता और पूर्वा सांसद रमाकांत यादव जिस तरह से अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि निरहुआ आजमगढ़ में कमल कैसे खिला पाएंगे?

मुलायम के शि‍ष्‍य रमाकांत ने छोड़ा मैदान

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव अपनी परंपरागत मैनपुरी सीट के साथ आजमगढ़ से चुनावी रण में उतरे थे. हालांकि तब उन्हें मैनपुरी में कोई दिक्कत नहीं हुई थी. लेकिन आजमगढ़ में कभी मुलायम के ही शागिर्द रहे रमाकांत यादव ने अपने गुरु को कड़ी टक्कर दी थी, जीत के लिए मुलायम को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

आजमगढ़ में पिछले लोकसभा चुनाव में मुलायम को 3,40,306 वोट मिले थे. बीजेपी को रमाकांत यादव को 2,77,102 वोट मिले और बसपा के गुड्डू जमाली को 2,66,528 वोट मिले थे. इस तरह से बीजेपी और सपा के बीच हार-जीत का अंतर महज 63,204 वोटों का था. हालांकि इस बार समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं.

बीजेपी निरहुआ के जरिए यादव और परंपरागत वोटर पर साधेगी निशाना

सपा-बसपा और आरएलडी मिलकर चुनाव मैदान में हैं. इसका अखिलेश यादव जहां लाभ उठाने की कोशिश में है. इसी के चलते माना जा रहा है कि रमाकांत यादव ने अखिलेश के खिलाफ चुनावी मैदान से हटने का फैसला किया. बीजेपी अब यहां निरहुआ के जरिए यादव के साथ-साथ बसपा के परंपरागत मतदाताओं के बीच बिखराव पर नजर लगाए हुए है.

आजमगढ़ की राजनीतिक और जातीय समीकरण सपा के पक्ष में नजर आ रही है. आजमगढ़ में यादव, मुस्लिम और दलित समुदाय की आबादी ज्यादा है. गैर-यादव ओबीसी की तादाद भी अच्छी खासी है, जो पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. इसी का नतीजा है कि आजमगढ़ संसदीय सीट के तहत आने वाली पांच में से किसी भी सीट पर बीजेपी नहीं जीत सकी थी. जबकि गोपालपुर, आजमगढ़ और मेहनगर में सपा सगड़ी और मुबारकपुर में बसपा का कब्जा है.

सपा को स्‍थापित करने में आजमगढ़ का बड़ा योगदान

दिलचस्प बात ये है कि अखिलेश यादव महज पिता की विरासत को संभालने के लिए नहीं उतरे हैं बल्कि सपा-बसपा-आरएलडी तीनों का आजमगढ़ से गहरा नाता है. 1989 में पहली बार रामकृष्ण यादव यहां बसपा के टिकट पर चुनकर दिल्ली पहुंचे थे और फिर कई बार बसपा को प्रतिनिधित्व का मौका मिला. समाजवादी पार्टी की स्थापना में सबसे बड़ी ताकत आजमगढ़ की रही है. आरएलडी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह तो आजमगढ़ को अपना दूसरा घर मानते थे.

आजमगढ़ ने बड़े नेताओं को जमीन और शोहरत दी. आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी का उदय हुआ तो रामनरेश यादव यहां के सांसद चुने गए, लेकिन  मुख्यमंत्री की खींचतान में उत्तर प्रदेश की हुकूमत का ताज उनके माथे बंध गया. लोकसभा सदस्यता से रामनरेश के त्यागपत्र के बाद आजमगढ़ में उपचुनाव हुआ.

कांग्रेस ने मोहसिना किदवई को उपचुनाव के मैदान में उतारा तो राम वचन यादव और चंद्रजीत यादव जैसे दिग्गज को हराकर सांसद बनीं. 1980 के चुनाव में मोहसिना ने आजमगढ़ का मैदान छोड़ दिया. आजमगढ़ में बाहुबली रमाकांत यादव सपा से सांसद हुए तो उनके खिलाफ बसपा से अकबर अहमद डंपी ने आकर चुनौती दी. आजमगढ़ की जनता ने डंपी को चुनाव जिताया. लेकिन एक साल के बाद ही जब फिर चुनाव हुए रमाकांत ने डंपी से हार का बदला ले लिया.

इसके बाद रमाकांत ने बसपा का दामन था लिया और 2004 में जीतकर सांसद बने. इसके बाद 2009 में बीजेपी में शामिल हो गए और डंपी को फिर मात देकर सांसद चुने गए. 2014 में आजमगढ़ से मुलायम सिंह खुद उतरे तो रमाकांत की जीत का सिलसिला थम गया. अब बीजेपी निरहुआ के जरिए अखिलेश को घेरने की कवायद कर रही है, लेकिन जिस तरह से जातीय और राजनीतिक समीकरण हैं. उस लिहाज से बीजेपी के लिए ये सीट आसान नहीं नजर आ रही है.

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