एजेंसी/नई दिल्ली: सेंसेक्स और निफ्टी में आई ज़ोरदार गिरावट से निवेशकों का भरोसा भले ही हिल गया है, लेकिन जहां तक कुछ कंपनियों के शेयरों के मूल्यांकन का सवाल है, वे बाज़ार में ‘बेहतर’ दिखने लगे हैं। घरेलू शेयर बाज़ारों के ‘सबसे निचले स्तर’ पर पहुंच चुका होने की बात कहने वाले कई विशेषज्ञों ने निवेशकों को सलाह दी है कि मौजूदा कमज़ोरी का फायदा उठाएं, और ‘अच्छे’ शेयरों में पैसा लगाएं, क्योंकि बाज़ार अब ऊपर ही उठेगा।
लेकिन बाज़ार विशेषज्ञ अजय बग्गा की सोच इससे उलट है, और उनके मुताबिक यह बताना बेहद मुश्किल है कि शेयर ‘रसातल’ तक पहुंच गए हैं, या अभी उनका और नीचे जाना बाकी है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर बाज़ारों में संकट बरकरार है।
“जॉर्ज सोरोस के मुताबिक यह 2008 का दोहराव है…”
अजय बग्गा ने कहा, “अभी यह नहीं कहा जा सकता कि बिकवाली का यह दौर अंतिम चरण में पहुंच गया है या नहीं, क्योंकि यह पूरी दुनिया से प्रभावित होता है… जॉर्ज सोरोस जैसे दिग्गज निवेशकों के मुताबिक यह 2008 का दोहराव है… चीन में भी मुद्रा संकट काफी बड़ा है, क्योंकि चीन को अपने रिज़र्व से 100 अरब अमेरिकी डॉलर निकालने पड़े हैं… यूरोपीय बैंकिंग का मामला भी दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है, और इसका असर दूसरे देशों पर भी हो सकता है…”
बग्गा ने कहा कि भारत में कॉरपोरेट राजस्व नहीं कमा पा रही हैं, और उधर खर्च के मामले में सरकार कुछ खास नहीं कर रही है, सो, यह भी हो सकता है कि ‘हाहाकार’ का मौजूदा दौर बहुत बड़े स्तर पर बिकवाली के दौर की शुरुआत भर हो।
“उछाल अस्थायी है, बाज़ार असल में नीचे ही जा रहे हैं…”
अजय बग्गा के मुताबिक, “अस्थायी रूप से उछाल मुमकिन है, लेकिन बाज़ार असल में नीचे ही जा रहे हैं… इसलिए किनारे पर बैठे रहने में ही समझदारी है… मेरे विचार में इस वक्त पैसे को अपने पास जमा रखना ही ठीक है और उसे कहीं एसेट क्लास में निवेश नहीं करना चाहिए…”
सरकारी बैंकों में छाए बिकवाली के दौर पर बग्गा ने कहा, “कुल मिलाकर सारे सार्वजनिक क्षेत्र के ही आंकड़े उम्मीद से बदतर रहे हैं… आंकड़े चिंताजनक हैं, और उनसे निपटने के लिए किए गए प्रावधानों से साफ पता चलता है कि यह संकट कितना बड़ा होने वाला है…”
“सरकारी बैंकों के सिलसिले में सरकार को ‘निर्णायक’ कदम उठाने की ज़रूरत…”
उनके मुताबिक जहां तक सरकारी बैंकों का सवाल है, सरकार को ‘निर्णायक’ कदम उठाने की ज़रूरत है। बग्गा ने कहा, “सरकार को ऐसी व्यवस्ता करनी होगा, ताकि एसेट री-स्ट्रक्चरिंग कंपनियां तेज़ी से काम करें, और बट्टेखाते में जाती दिख रही पूंजी की ज़िम्मेदारी उठाए, जिससे बैंकिंग व्यवस्था दोबारा ढंग से चल सके…”
अजय बग्गा के अनुसार, निवेशकों के लिए इस समय सरकारी बैंक विकल्प होना ही नहीं चाहिए। उन्होंने कहा, “यह फायदा देने वाला सौदा नहीं, फंसाने वाला जाल साबित होगा… सो, अगर आपके पास सरकारी बैंक के शेयर हैं भी, तो उन्हें इस वक्त बेच देने में ही समझदारी है…”