पर्यटन

अजमेर : ख़्वाजा की अकीदत का सूफियाना शहर

सूraj1-300x201फियाना शहर अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मजार है। यह एक ऐसा पाक-साफ नाम है जिसे सुनकर रूहानी सुकून मिलता है और मोहब्बत की हवाएं बहती है। मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में आने वाले पहले व्यक्ति थे जो 1332 में यहाँ आए। चिश्ती ने हमेशा राजशाही, लोभ, मोह का विरोध किया। उन्होंने सभी को मानव सेवा का पाठ पढ़ाया। यह भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, यहां न केवल मुस्लिम बल्कि दुनिया के सभी धर्मों के लोग बड़ी अकीदत से अपना सिर झुकाते हैं। तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में बनी ख्वाजा की दरगाह वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। यहां ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का संगम देखने को मिलता है। दरगाह के प्रवेश द्वार का कुछ भाग अकबर ने और बाकी जहांगीर ने पूरा करवाया था। यहां आए दिन राजनेताओं के अलावा बॉलीवुड के सितारे भी मन्नत मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं। गुलाब और इत्र की महक दरगाह में रुहानी समां बांधती है। दरगाह पर दरूर-ओ-फ़ातेहा पढ़ने की चाहत यहां आए हर ख़्वाजा के चाहने वाले की होती है। यहां ऐसी माना जाता है कि यहां सच्चे मन से धागा बांधने से मांगी हुई हर मुराद पूरी होती है।

अजमेर शरीफ की कुछ रोचक बातें –

  • अजमेर शरीफ की मजार में एक ऐसा रास्ता है, जिसको जन्नती रास्तास कहते हैं। कहा जाता है ख़्वाजा साहब खुद इस रास्तें से आया जाया करते थे, इस रास्ते से गुजरने वाले इंसान की तकदीर बदल जाती है। यह दरवाजा साल में चार बार ही खुलता है- सालाना उर्स के समय, दो बार ईद पर और ख़्वाजा साहब के उर्स पर। इन छह दिनों में यहां लाखों लोग देश-विदेश से ज़ि‍यारत करने आते हैं।
  • जहालरा दरगाह के अंदर एक स्मारक है जो कि हजरत मुईनुद्दीन चिश्ती के समय यहाँ पानी का मुख्य स्त्रोत था। आज भी लोग जहालरा का पानी दरगाह के पवित्र कामों में लेते हैं।
  • मुग़ल बादशाह हुमायूँ को एक बार दरगाह में निज़ाम सिक्काम नाम के पानी भरने वाले ने बचाया था। इनाम के तौर पर उसे यहाँ का एक दिन का नवाब बनाया गया। उनका मक़बरा भी दरगाह के अंदर स्थित है।
  • अजमेर शरीफ के हॉल महफ़िल-ए-समां में रोजाना नमाज के बाद सूफी गायकों और भक्तों के द्वारा अल्लाह की महिमा का बखान करते हुए कव्वालियां गाई जाती हैं।
  • दरगाह के अंदर दो बड़े-बड़े कढ़ाहे हैं जिनमें चावल, केसर, बादाम, घी, चीनी, मेवे आदि को मिलाकर पकाया जाता है। रोजाना सुबह यह प्रसाद लोगों को दिया जाता है। यह कढ़ाहा बादशाह अकबर द्वारा दरगाह में भेंट किया गया था।
  • अजमेर शरीफ में सूफी संत मोइनूदीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर हर साल उर्स होता है जो 6 दिन चलता है। ऐसा माना जाता है कि जब ख़्वाजा साहब 114 वर्ष के थे तो उन्होने अपने आप को 6 दिन तक कमरे में बंद करके अल्लाह से दुआ की थी।
  • अल्लाह के मुरीदों के द्वारा गरम जलते कढ़ाहे के अंदर खड़े होकर प्रसाद बांटा जाता है। अजमेर शरीफ के अंदर बनी हुई मस्जिद अकबर द्वारा जहाँगीर को पुत्र के रूप में पाने के बाद बनवाई गई थी। आज यहाँ मुस्लिम बच्चों को कुरान की तालीम दी जाती है।

कब जाएं –

अजमेर वैसे तो पूरे साल जाया सा सकता है। लेकिन उर्स के समय अजमेर शरीफ की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसलिए यहां लोगों का हुजूम सालाना उर्स, ख्‍़वाजा साहब के उर्स और साथ ही ईद के समय लगा रहता है। इन दिनों दरगाह में जन्‍नती दरवाजे भी खुल जाते हैं।

कैसे जाएं –

अजमेर शरीफ जाने के लिए सभी तरह के साधन आसानी से मिलते हैं। हर प्रमुख शहर से अजमेर तक बस, रेल और हवाई सेवा उपलब्ध है। अजमेर मे रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे के साथ बस सेवा भी मौजूद है जिसके चलते लोगों को कोई तकलीफ नहीं होती।

नई दिल्लीं से अजमेर रेल से 363 किमी है जिसमें लगभग 5-6 घंटे लगते हैं। बाई रोड 390 किमी है जिसमें करीब 9 घंटों का समय लगता है।

लखनऊ से अजमेर रेल से 858 किमी है जिसमें लगभग 15-16 घंटे लगते हैं। बाई रोड 702 किमी है जिसमें करीब 16 घंटों का समय लगता है।

मुंबई से अजमेर रेल से 975 किमी है जिसमें लगभग 15-16 घंटे लगते हैं। बाई रोड 1072 किमी है जिसमें करीब 22 घंटों का समय लगता है।

 

 

Related Articles

Back to top button