अपरा एकादशी का व्रत करने से अपार धन, सम्पदा की प्राप्ति
ज्योतिष : ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के अपरा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी बहुत ही पुण्य प्रदायनी और सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाली है। अपरा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को अपार धन, सम्पदा प्राप्त होती है। वहीं दूसरी और बुरे से बुरे कर्म से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से कीर्ति धन में वृद्धि होती है। साल 2020 में अपरा एकादशी 18 मई को मनाई जाएगी। आज हम अपरा एकादशी व्रत कथा के बारे में बताएंगे, जिसकी पढ़ने या सुनने मात्र से पापों से मुक्ति मिलती है। अपरा एकादशी व्रत कथा युधिष्ठिर कहने लगे हे भगवन ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है और उसका क्या महत्व है, आप मुझे बताओं। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे की हे राजन इस एकादशी का नाम अचला या अपरा एकादशी है।
पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है क्योंकि ये अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं वह वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं। इस दिन भगवान श्री विक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से भ्रम हत्या, भूत योनि, दूसरों की निंदा आदि सभी पाप दूर हो जाते हैं।
अपरा एकादशी व्रत के करने से झूठी गवाही, झूठ कहानी बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो क्षत्रिय युद्ध से भाग गए वे नरकगामी होते हैं, लेकिन अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरू से शिक्षा ग्रहण करते हैं और फिर उनकी निंदा करते हैं, वे अवश्य नरक में जाते हैं। मगर अपरा एकादशी व्रत करने से वे भी मुक्त हो जाते हैं जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पित्रों को पिंड दान करने से प्राप्त होता है, वहीं अपरा एकादशी व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सुर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिव रात्रि का व्रत करने से सिंह राशि के बृहस्पति के गोमती नदी के स्नान कुंभ में केदार नाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन सूर्य में कुरूक्षेत्र में स्नान से स्वर्ण दान करने से और गौ दान से जो फल मिलता है, वहीं फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।
अपरा एकादशी व्रत आप रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है और पाप रूपी ईंधन जलाने के लिए अग्नि और पाप रूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान है। मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को जरूर करना चाहिए।
अपरा एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है। इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम के एक धर्मात्मा राजा थे। उनका छोटा भाई व्रजध्वज बहुत ही क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से घृणा करता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि के समय अपने बड़े भाई की हत्या करके उसके देह को एक जगली पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया था। अकाल मृत्यु के कारण राजा उस ही पीपल में प्रेत आत्म का रूप में रहने लगे और अनेक प्रकार के उत्पात करने लगे। एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि वहां से गुजरे और उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से उत्पात का कारण समझा और ऋषि प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। वह ऋषि को धन्यवाद देकर और दिव्य देव धारण करके पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चले गए।