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अब केंद्र सरकार के हाथ में होंगी हिमालयी राज्यों की परियोजनाएं

उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों में संचालित होने वाली परियोजनाओं की बागडोर केंद्र सरकार अब अपने हाथ में रखेगी। नेशनल हिमालयन मिशन के तहत अगले तीन साल के लिए जो कार्ययोजना तैयार की जा रही है, उसमें यह बात स्पष्ट कर दी गई है।
अब केंद्र सरकार के हाथ में होंगी हिमालयी राज्यों की परियोजनाएं

वजह यह है कि हिमालयी राज्यों ने जो परियोजनाएं संचालित की हैं उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया। इससे जैव विविधता, वन्य जीवों को नुकसान हो रहा है। सड़कें बनाई गईं तो मलबा नीचे धकेल दिया गया। यह मलबा भूस्खलन का कारण बन रहा है और वनस्पतियों को क्षति पहुंच रही है। 

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नेशनल हिमालयन मिशन की नोडल एजेंसी जीबी इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एनवायरमेंट एंड डवलपमेंट हिमालयी राज्यों में अगले तीन साल की कार्ययोजना बना रहा है। इसमें विकास कार्यों के विभिन्न मॉडल बनाए जाएंगे। अब राज्य जो परियोजनाएं देंगे वह केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की कसौटी पर रखी जाएंगीं।

इसके साथ ही इनके लिए एजेंसी का चयन केंद्र सरकार करेगी। परियोजना का संचालन भी केंद्र की देखरेख में होगा। इसमें राज्य का दखल नहीं रहेगा। हिमालयी राज्य जो परियोजनाएं चला रहे हैं, उन्हें केंद्र के ‘विकास, बिना विनाश’ फार्मूले के खिलाफ के विपरीत पाया गया है।

राज्य का रोड मैप तय करेगा केंद्रीय मंत्रालय

तीन साल की इस कार्ययोजना में पर्वतीय क्षेत्रों में टनल, रोप-वे आदि के वर्क मॉडल भी तय किए जाने हैं। इसी आधार पर केंद्रीय मंत्रालय राज्य का रोड मैप तय करेगा। केंद्र का मूड इस बात से भी खराब है कि राज्य केंद्र की परियोजनाएं ढंग से संचालित नहीं कर पाए हैं।

हिमालयी जैव विविधता के संरक्षण के लिए वर्ष 2015 में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने जो रिपोर्ट दी है, उस पर अभी तक कार्य नहीं हुआ। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि परियोजनाओं पर ढंग से काम नहीं हुआ।

जीबी पंत इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. पीपी ध्यानी ने बताया कि अब हिमालयी राज्यों में कमीशंड प्रोजेक्ट चलेंगे। नेशनल हिमालयन मिशन के तहत हिमालयी विकास की बागडोर केंद्र के हाथ में रहेगी। अगले तीन साल की कार्ययोजना तैयार की जा रही है।

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