नई दिल्ली : अमरकंटक के जंगलों में आम के वृक्ष अधिक होने के कारण प्राचीन ग्रंथों में आम्रकूट के नाम से भी इस स्थान का वर्णन आता है। वृक्षों से आच्छादित यह वनभूमि प्रकृति प्रेमियों को सदैव ही आकर्षित करती है। यहाँ आकर मन, मस्तिष्क और शरीर प्रफुल्लित हो जाते हैं। प्रकृति के सान्निध्य से मानसिक तनाव और शारीरिक थकान दूर हो जाती है। अमरकंटक को मध्य प्रदेश के वनप्रदेश की उपमा प्राप्त है। आम, महुआ और साल सहित नाना प्रकार के वृक्ष मैकाल पर्वत का श्रृंगार करते हैं। अमरकंटक आकर अंतरमन आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। कालिदास के मेघदूत जब लंबी यात्रा पर निकले थे, तब उन्होंने अपनी थकान मिटाने के लिए अमरकंटक को ही अपना पड़ाव बनाया था। कवि कालिदास ने ‘मेघदूत’ में लिखा है कि रामगिरि पर कुछ देर रुकने के बाद तुम (मेघदूत) आम्रकूट (अमरकंटक) पर्वत जाकर रुकना। अमरकंटक ऊंचे शिखरों वाला पर्वत है। वह अपने ऊंचे शिखर पर ही तुम्हारा स्वागत करेगा।
मार्ग में जंगलों में लगी आग को तुमने बुझाया होगा, इसलिए तुम थक गए होगे। एक छोटे से छोटा व्यक्ति भी उसका स्वागत करता है, जिसने कभी उसके साथ उपकार किया था। फिर अमरकंटक जैसों की क्या बात कहना, जो स्वयं इतना महान है। जब महान कवि कालिदास अपने मेघदूत को अमरकंटक में ठहरने के लिए कह रहे हैं, तब मेरा यही सुझाव है कि हमें भी कुछ दिन अमरकंटक में गुजारने चाहिए। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों, पर्वतरोहियों, रोमांचक यात्रा पर जाने वाले युवाओं के साथ-साथ धार्मिक मन के व्यक्तियों के लिए भी सर्वोत्तम स्थान है। प्राकृतिक रूप से समृद्ध होने के साथ-साथ अमरकंटक का धार्मिक महत्त्व भी बहुत अधिक है। पुराणों में अमरकंटक का महात्म वर्णित है। अमरकंटक के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि भगवान शिव ने धरती पर परिवार सहित रहने के लिए कैलाश और काशी के बाद अमरकंटक को चुना है। महादेव शिव की बेटी नर्मदा का उद्गम स्थल भी यही है। नर्मदा के साथ ही अमरकंटक शोणभद्र और जोहिला नदी का उद्गम स्थल भी है। नर्मदा और शोणभद्र के विवाह की कथाएं भी यहाँ के जनमानस में प्रचलित हैं। हालाँकि यह विवाह सम्पन्न नहीं हो सका था। इसकी अपनी रोचक कहानी है। स्कंदपुराण में भी अमरकंटक का वर्णन आता है। स्कंदपुराण में कहा गया है कि ‘अमर’ यानी देवता और ‘कट’ यानी शरीर। यह पर्वत देवताओं के शरीर से आच्छादित है, इसलिए अमरकंटक कहलाता है। मत्स्यपुराण में अमरकंटक को कुरुक्षेत्र से भी अधिक महत्त्वपूर्ण और पवित्र माना गया है। पद्मपुराण में अमरकंटक की महिमा का वर्णन करते हुए देवर्षि नारद महाराज युधिष्ठर से कहते हैं कि अमरकंटक पर्वत के चारों ओर कोटि रुद्रों की प्रतिष्ठा हुई है। यहाँ स्नान करके पूजा करने से महादेव रुद्र प्रसन्न होते हैं। नर्मदा को शिव का इतना आशीर्वाद प्राप्त है कि उसकी धारा में पाए जाने वाले शिवलिंग की स्थापना के लिए प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं पड़ती।
नर्मदा में पाए जाने वाले शिवलिंग बाण शिवलिंग कहलाते हैं। अमरकंटक के संबंध में यह भी मान्यता है कि जो साधु-संन्यासी यहाँ देह त्यागता है, वह सीधे स्वर्ग को प्राप्त होता है। अमरकंटक का महत्त्व जीवनदायिनी नर्मदा के बिना अधूरा है। दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं। समुद्र तल से लगभग 3500 फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक के पहाड़ों से निकल बहने वाली नर्मदा भारत की सबसे प्राचीन नदियों में से एक है। पुण्यदायिनी मां नर्मदा की जयंती प्रतिवर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को ‘नर्मदा जयंती महोत्सव’ के रूप में मनाई जाती है। नर्मदा की महत्ता को इस प्रकार बताया गया है कि जो पुण्य गंगा में स्नान करने से या यमुना का आचमन करने से मिलते हैं, वह नर्मदा का नाम स्मरण करने मात्र से मिल जाता है। नर्मदा नदी का उल्लेख अनेक धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। स्कंद पुराण में नर्मदा का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है। रामायण तथा महाभारत में भी अनेक स्थान पर नर्मदा के महात्म को बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, कूर्म पुराण, नारदीय पुराण और अग्नि पुराण में भी नर्मदा का जिक्र आया है। नर्मदा की धार्मिक महत्ता के कारण प्रदेश का बहुत बड़ा वर्ग नर्मदा के प्रति अगाध श्रद्धा रखता है। नर्मदा के प्रति मध्यप्रदेश के लोगों की गहरी आस्था है। दरअसल, नर्मदा मध्यप्रदेश का पोषण करती है। मध्यप्रदेश की जीवनरेखा है।
असल मायनों में नर्मदा मध्यप्रदेश के नागरिकों की माँ है। अमरकंटक में प्राकृतिक और धार्मिक महत्त्व के दर्शनीय स्थल हैं। विशेषकर, नर्मदा, शोण (सोन) और जोहिला नदियों के उद्गम अमरकंटक के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। जब नर्मदा पहाड़ों से उछलते-कूदते मैदान की तरफ प्रवाहित होती हैं, तब अनेक स्थानों पर छोटे-बड़े जलप्रपात बनते हैं। अमरकंटक में ही कपिलधारा और दूधधारा दो प्रमुख जलप्रपात हैं। वर्षभर यहाँ पर्यटक आते हैं। लेकिन, अमरकंटक में जलप्रपात और प्रकृति सौंदर्य का भरपूर आनंद लेना है, तब यहाँ अगस्त के बाद आना अधिक उचित होगा। बारिश के बाद जल प्रपातों में जलराशि बढ़ जाती है। नर्मदा के प्रवाह के संबंध में अनूठी बात यह है कि यह भारत की इकलौती नदी है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा किसी ग्लेशियर से नहीं निकली है। बल्कि पेड़ों की जड़ से निकला बूंद-बूंद पानी ही नर्मदा की अथाह जलराशि है।