अमेरिकी एस्ट्रोनॉट ने कहा- सोवियत संघ को हराने के लिए स्पेस में गए थे
वॉशिंगटन : अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजने का अमेरिका का मकसद सोवियत संघ से आगे निकलना था, न कि चांद पर इंसान को उतारना। पहली बार चांद का चक्कर लगाने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री फ्रेंक बोरमैन ने 50 साल बाद यह खुलासा किया। 90 साल के बोरमैन ने बताया कि केवल 30 सेकंड के लिए अंतरिक्ष में जाना रोमांचक था। इसके बाद मैं बोर होने लगा था। बोरमैन 1968 में अमेरिका के अपोलो-8 मिशन का हिस्सा थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) के बीच अनकही प्रतिस्पर्धा का दौर शुरू हुआ। इसे शीत युद्ध (कोल्ड वॉर) नाम दिया गया था। दोनों देश हर क्षेत्र में एक-दूसरे पीछे छोड़ना चाहते थे। इसी कड़ी में सोवियत ने 1961 में पहली बार इंसान (यूरी गागरिन) को अंतरिक्ष में भेजा था।
अमेरिका ने इसे चुनौती माना और 8 साल बाद यानी 1969 में अपोलो-11 मिशन के तहत मानव को चांद पर उतारा। अमेरिका ने अपोलो प्रोग्राम 1961 में शुरू किया था और यह 1972 तक चला था। फ्रेंक बोरमैन ने एक इंटरव्यू में बताया, “मैंने कभी भी अपने अंतरिक्ष मिशन के बारे में पत्नी और बच्चों से बात नहीं की। अंतरिक्ष में जाकर भी मुझे लगा कि जल्दी से परिवार के पास लौट चलूं। जब घर लौटकर सबसे मिला तो भावुक हो गया।” उन्होंने बताया कि अपोलो-8 मिशन 21 दिसंबर 1968 को लॉन्च किया गया था। रॉकेट काफी आवाज करता है। उसके अंदर काफी सामान था। शून्य गुरुत्वाकर्षण में यात्रा करना भी मुझे अच्छा नहीं लगा। चांद का चक्कर लगाने के दौरान देखा तो वहां बड़े-बड़े गड्ढे दिखाई दिए। चांद एक ऐसी जगह है जहां सुंदरता जैसी कोई चीज ही नहीं है।