अम्बेडकर जरूरी या मजबूरी
इस बार बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर उनको याद करने की होड़ जिस तरह देश के सभी राजनीतिक दलों में देखी गयी, वैसी बेचैनी पहले कभी नहीं दिखी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाबा साहब की जन्मस्थली मध्य प्रदेश के महू में जाकर उन्हें नमन किया और यहां तक कहा कि वे उनके बनाये संविधान की बदौलत ही प्रधानमंत्री बने हैं। मोदी ने दलितों की उपेक्षा के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया। दूसरी ओर, कांग्रेस ने भाजपा शासित राज्यों में दलित उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर मोदी पर हमला किया। जबकि बसपा मुखिया मायावती ने भाजपा को दलित विरोधी करार दिया। सवाल यह है कि दलों में मची यह होड़ दलित वोटों को लुभाने के लिए है या सचमुच बाबा साहब की विचारधारा उन्हें महत्वपूर्ण लगने लगी है। दरअसल देश में जबसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन की सरकार बनी है, तब से मोदी और संघ परिवार दलितों को लुभाने में जुट गये हैं। इसका एक बड़ा कारण मोदी की लोकप्रियता का गिरता ग्राफ भी है। उनके दो साल के शासन ने आम आदमी को कोई राहत नहीं दी है। महंगाई लगातार बढ़ रही है। इसके बाद पहले दिल्ली और उसके बाद बिहार चुनाव में पार्टी की करारीं हार ने पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को निराश कर दिया है। इसके बाद से दलित वोटों को साधने की यह प्रक्रिया तेज हो गयी है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि उ.प्र. में भले दलित बसपा से जुड़े माने जाते हों, मगर देश में आज भी दलितों का झुकाव कांग्रेस की तरफ ही है। इसलिए भाजपा सोचती है कि कांग्रेस का यह बचा हुआ आधार भी छीन लिया जाय। लेकिन यह भी सच है कि अब तक संघ परिवार और भाजपा की छवि दलित और पिछड़ा विरोधी मानी जाती रही है। पार्टी उस छवि को बदलना चाहती है। अब उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आ रहे हैं। यहां दलित मतदाताओं की संख्या अधिक है और चुनाव में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसको ध्यान में रखते हुए संघ परिवार दलितों में सहभोज कार्यक्रम चला रहा है तो भाजपा दलित नेताओं को आगे करके अपना वोट बैंक सुधारना चाहती है।
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या भाजपा सचमुच दलितों की हितैषी है? ऐसा अब तक का उसका इतिहास नहीं बताता। मूलत: भाजपा दलित और पिछड़ों के खिलाफ रही है। बिहार चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का बयान आया कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। उनके इस बयान ने उनकी असली मंशा को उजागर कर दिया। लालू यादव ने उनके इसी बयान को मुद्दा बनाया और अपने खिलाफ बहती हवा देख भाजपा बैकफुट पर आ गयी। हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने स्थिति संभालने के लिए कहा कि भाजपा ही ऐसी पार्टी है जिसने देश को पहला पिछड़ी जाति का प्रधानमंत्री दिया है। हालांकि उनका यह बयान एकदम गलत था, क्योंकि देवेगौड़ा पहले प्रधानमंत्री थे, जो पिछड़ी जाति से थे। इसी के चलते भाजपा को बिहार में हार का सामना करना पड़ा। अब पार्टी के सामने उत्तर प्रदेश सचमुच चुनौती प्रदेश बनकर खड़ा हो गया है। भाजपा का मुकाबला यहां ऐसी दो पार्टियों से है, जिनका अपना ठोस वोट बैंक है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी जहां पिछड़ों और मुसलमानों पर मजबूत पकड़ रखती है, वहीं बहुजन समाजपार्टी का दलित वोट बैंक आज भी मजबूत माना जाता है। इसके विपरीत भाजपा इस तरह का दावा करने की स्थिति में नहीं है। कभी भाजपा ब्राह्मण-बनियों की पार्टी कहलाती थी, मगर पिछली बार ब्राह्मणों के बड़े हिस्से ने भाजपा की बजाय मायावती का साथ दिया और सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इसीलिए इस समय भाजपा को ठोस वोट बैंक की तलाश है। प्रदेश की 403 विधान सभा सीटों में से 85 दलित वर्ग के लिए आरक्षित है। भाजपा की नजर उन सीटों पर है। लोकसभा चुनाव में दलितों के सहयोग से ही प्रदेश की सत्रह सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। उसे लगता है कि अगर दलितों का भरोसा जीत लिया जाय, तो भाजपा प्रदेश में मुकाबले की स्थिति में आ सकती है। इसीलिए भाजपा अम्बेडकर से लेकर सुहेलदेव राजभर को याद कर रही है। सुहेलदेव के नाम से एक टे्रन भी चलायी गयी है।
मोदी जहां देश भर में बाबा साहब से जुड़े प्रतीक चिन्हों को सहेजने की बात कर रहे हैं, वहीं दलितों को आर्थिक-सामाजिक क्षेत्र में आगे लाने के लिए सभी प्रयास करने का भी भरोसा दिला रहे हैं। इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों अनुसूचित जाति-जनजाति एवं महिलाओं के लिए स्टैंड अप इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य वंचित वर्ग को आर्थिक समृद्धि प्रदान करना है। भाजपा नेता प्रचार कर रहे हैं कि मोदी सरकार ने किसी और के मुकाबले दलितों के लिए ज्यादा काम किया है। मोदी की पहल पर मध्य प्रदेश ने महू में अम्बेडकर के जन्म स्थान पर स्मारक बनवाया है और महू को अम्बेडकरनगर जिला घोषित कर दिया है। इसके अलावा मोदी सरकार लंदन में अम्बेडकर के निवास को खरीद कर उसमें अम्बेडकर छात्रावास बनायेगी। इसमें लंदन पढ़ने जाने वाले दलित छात्रों को रहने की सुविधा दी जायेगी। इस बार मोदी 14 अप्रैल को महू पहुंचे और बाबा साहव को श्रद्धांजलि दी। वे महू पहुंचने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने इस मौके पर दलितों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस को पश्चाताप करने की नसीहत दी। वहीं दूसरीओर कांग्रेस ने संसद भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया। यह पहला मौका है जब संसद भवन के इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री शामिल नहीं हुए। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों में दलितों का भारी उत्पीड़न हो रहा है और भाजपा घड़ियाली आंसू बहा रही है। लेकिन यह भी सच है कि जब जब मोदी अपने दलित जोड़ो अभियान को गति प्रदान करने के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं, तभी कोई ऐसी घटना हो जाती है, जो भाजपा को परेशानी में डाल देती है। पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र राहुल बेमुला की आत्महत्या के मामले न देश भर में भाजपा की थू-थू करायी। उसमें मोदी सरकार के दो मंत्री स्मृति ईरानी और बंडारू दत्तात्रेय की भूमिका पर उंगली उठी। लेकिन भाजपा ने अपने मंत्रियों पर कोई कार्यवाही करने के बजाय उनका बचाव ही किया। इसके बाद जब प्रधानमंत्री मोदी बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेने लखनऊ आये थे, तो उन्हें छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा था। उन दिनों यह चर्चा जोरों पर थी कि भाजपा उत्तर प्रदेश में किसी दलित को अध्यक्ष बनाना चाहती है जो मुख्यमंत्री पद के लिए भी पार्टी का चेहरा होगा। लेकिन तभी भाजपा महिला मोर्चे की प्रदेश अध्यक्ष ने दलित विरोधी ऐसा बयान दे दिया कि पार्टी को मुंह छिपाना मुश्किल हो गया। उसके बाद दलित के बजाय पिछड़े वर्ग के केशव प्रसाद मौर्य को अध्यक्ष बनाया गया। अब चर्चा है कि मुख्यमंत्री पद के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे की तलाश है। इस तरह भाजपा दलित, पिछड़ा और ब्राह्मण गठजोड़ के सहारे चुनाव की वैतरणी पार करना चाह रही है। पार्टी प्रदेश में दलितों की भूमिका को जानती है। यहां इक्कीस फीसदी दलित मतदाता हैं और प्रदेश विधान सभा की 85 सीटें दलितों के लिए आरक्षित है। दलितों में 59 फीसदी जाटव मतदाता हैं, जो बहुजन समाज पार्टी के साथ माने जाते हैं। लेकिन दलितों के बारे में यह माना जाता है कि वे आज भी एकजुट होकर वोट डालते हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस भी उ.प्र. में दलितों के बीच अपनी सक्रियता बढ़ा रही है। दशकों तक कांग्रेस दलितों और मुसलमानों के सहारे देश पर राज करती रही है। मगर सपा और बसपा के उभार के बाद से उसका यह वोट बैंक उससे छिटक गया। इस मामले में कांशीराम की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही। उन्होंने दलितों को उनके अधिकारों के प्रति न सिर्फ जागरूक किया, अपितु उनमें एकजुट होकर सत्ता पाने की ललक भी पैदा की। उनके प्रयास से दलित बसपा के नेतृत्व में सीना तान कर खड़ा हुआ और कांग्रेस को उत्तर भारत में सत्ता से बाहर होना पड़ा। तबसे कांग्रेस दलित वोटों के लिए छटपटा रही है। उत्तर प्रदेश में पार्टी कुछ महीनों से भीम यात्रा निकाल रही है, ताकि उन्हें यह बता सके कि उनके उत्थान के लिए कांग्रेस ने ही सर्वाधिक काम किया। पार्टी के दलित चेहरा पी एल पुनिया यह मानते हैं कि दलितों का बसपा से मोहभंग हो रहा है और वे कांग्रेस की तरफ वापस लौट रहे हैं। उधर समाजवादी पार्टी भी इस प्रयास में जुट गयी है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अंबेडकर जयंती पर बाबा साहब का स्मारक बनाने की घोषणा की। इससे पहले पार्टी आजमगढ़ में विशाल दलित सम्मेलन आयोजित कर चुकी है।
भाजपा और कांग्रेस के दलितों को लुभाने की कोशिशों पर बसपा प्रमुख मायावती पैनी नजर रखे हुए हैं। वे जानती हैं कि लोकसभा चुनाव में दलित मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था, नतीजतन बसपा उन्नीस फीसदी वोट पाने के बावजूद प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इसीलिए चुनाव बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में दलितों को सावधान करते हुए कहा था कि ‘इस बार गलती हो गयी, मगर भविष्य में ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए। भाजपा दलितों की कभी हितैषी नहीं हो सकती।’ राहुल बेमुला की आत्महत्या मामले ने उन्हें भाजपा को दलित विरोधी साबित करने का अवसर प्रदान कर दिया और उनके कार्यकर्ता गांव-गांव इस प्रकरण को पहुंचाने में जुटे हैं। इस घटना के बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भाजपा का चरित्र दलित विरोधी है, अब वे इनकी बातों में नहीं आयेंगे। उन्होंने तो यहां तक कहा कि भाजपा दलितों का दिल जीतने के लिए मान्यवर कांशीराम को भारत रत्न तक दे सकती है। दरअसल मायावती लोकसभा चुनाव से सबक लेकर बेहद सचेत हो गयीं हैं। उन्होंने दलित मतदाताओं के भाजपा की तरफ खिसकने को बेहद गंभीरता से लिया। इसीलिए उन्होंने खुद को भी बदला है। पहले वे अपने जन्म दिन पर भारी जेवर पहनती थीं और बेहद तड़क-भड़क के साथ उनका जन्म दिन मनाया जाता था। जिससे विपक्षियों को उनकी आलोचना का मौका मिलता था और वे उन्हें दलित नहीं, दौलत की बेटी कहते थे। इसीलिए इस बार उन्होंने बेहद सादगी से अपना जन्म दिन मनाया। बाबा साहब की जयंती पर उन्होंने मोदी पर अंबेडकर और दलित प्रेम का नाटक करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा की कथनी और करनी में अंतर है। मोदी के दो साल के शासन ने निराश किया है।
भाजपा शासित राज्यों में दलितों का उत्पीड़न बढ़ा है। मोदी ने दलित वोटों की खातिर अंबेडकर जयंती मनाने की घोषणा की और जगह-जगह छोटे स्मारक बनाने का एलान किया। लेकिन जब उनसे जुड़े लोग आरक्षण की समीक्षा की बात करते हैं, तो वे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते। मायावती ने आरोप लगाया कि मोदी आरआरएस का एजेंडा लागू कर रहे हैं, इसीलिए गोमांस, लव जेहाद, भारत माता की जय और हिन्दू राष्ट्र की बात होती है। उधर, समाजवादी पार्टी भी दलितों को लुभाने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहती। सपा भी दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है। सपा ने पिछले साल आजमगढ़ में विशाल महादलित सम्मेलन किया था। अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट सीजी सिटी में अम्बेडकर स्मारक बनाने की घोषणा की है। अब देखना यह है कि प्रदेश के दलित मतदाता आगामी चुनाव में किसका साथ देते हैं। लेकिन एक बात तो पूरी तरह स्पष्ट हो गयी है कि जैसे-जैसे दलितों में चेतना बढ़ रही है और जिस तरह एकजुट होकर वे अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, उससे सभी दलों में अम्बेडकर की प्रासंगिकता एकाएक बढ़ी है। आज सभी दल भले वोटों के लिए अंबेडकर को याद कर रहे हों, मगर शीघ्र उन्हें उनकी विचारधारा को भी जीवन में उतारना होगा। बाबा साहब के कथन देश की सीमा को लांघ कर दुनियाभर में महत्वपूर्ण माने जाने लगे हैं। यह इसी से साफ हो गया है कि पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ में उनकी जयंती मनायी गयी और उन्हें उन्हें वंचितों का मसीहा बताया। ’