ज्योतिष डेस्क : 10-18 अक्टूबर से नवरात्र का दौर चल रहा है। जिस दिन से ये शुरू हुए थे उस दिन प्रतिपदा और द्वितिया तिथि एकसाथ आई थी। अष्टमी और नवमी नवदुर्गा को सबसे अधिक प्रिय हैं क्योंकि इन दोनों तिथियों को कन्या पूजन किया जाता है साथ ही महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा करने के बाद हवन करने का विधान है। इस दिन बहुत सारे भक्त अपनी कुल देवी की उपासना भी करते हैं। नवरात्र के दौरान आठवें अथवा नौवें दिन सुबह के समय कन्या पूजन किया जाता है। माना जाता है कि आहुति, उपहार, भेंट, पूजा-पाठ और दान से मां दुर्गा इतनी खुश नहीं होतीं, जितनी कंजक पूजन और लोंगड़ा पूजन से होती हैं। अपने भक्तों को सांसारिक कष्टों से मुक्ति प्रदान करती हैं। कन्या पूजन के लिए जिन कन्याओं को अपने घर आमंत्रित करें उनकी उम्र दो वर्ष से कम और नौ वर्ष से अधिक न हो क्योंकि इसी उम्र की कन्याओं को मां दुर्गा का रूप माना गया है। कन्याओं के साथ एक लोंगड़ा यानी लड़के को भी जिमाते हैं। माना जाता है कि लोंगड़े के अभाव में कन्या पूजन पूर्ण नहीं होता।
अष्टमी : श्री दुर्गा अष्टमी व्रत, महा अष्टमी व्रत और महागौरी पूजन 17 अक्टूबर को किया जाएगा। इस दिन शाम 6 बजकर 44 मिनट पर सूर्य तुला राशि में प्रवेश करेगा, सूर्य की तुला संक्रांति एवं कार्तिक महीना आरंभ हो जाएगा। संक्रांति का पुण्यकाल दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से शुरू हो जाएगा। शुक्र (तारा) पश्चिम में अस्त होकर 31 अक्तूबर को पूर्व में उदय होगा।
नवमी : महानवमी और श्री दुर्गा नवमी 18 अक्टूबर को है। इस रोज नवरात्र का आखिरी व्रत और उपवास होगा। नवमी और अष्टमी दोनों दिन कन्या पूजा करना शुभ रहेगा।