दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

आखिर क्यों चाहिए नियमों को निर्देशों की बैसाखी ?

चंडीगढ़ से जगमोहन ठाकन

चार व पांच अगस्त की रात्रि को चंडीगढ़ जैसे सुरक्षित समझे जाने वाले शहर में एक आइएएस अधिकारी की पुत्री वर्णिका कुंडू का लगभग आधा घंटे तक बुरे इरादों से किया गया पीछा हरियाणा के एक दमदार राजनीतिज्ञ तथा उसके पुत्र के लिए संकट का फंदा बन गया है . घटना विवरण के अनुसार २९ वर्षीय वर्णिका कुंडू इस रात लगभग बारह बजे अपने घर जा रही थी कि दो लड़कों ने अपनी गाड़ी में उसका रास्ता रोकने का प्रयास किया था , छेड़छाड़ की थी और किडनैपिंग की कोशिश की थी . परन्तु चार दिन तक पुलिस किडनैपिंग की कोशिश ( धारा ३६५/५११ ) के तहत मुकद्दमा दर्ज करने से कतराती रही. आखिर क्यों?

आरोप लगे कि क्योंकि आरोपी विकास बराला का पिता सुभाष बराला हरियाणा में सत्तासीन भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष है इसलिए राजनैतिक दवाब के चलते मामूली छेड़छाड़ की धाराएँ ही पुलिस को उचित लगी , ताकि आरोपी को थाने में ही जमानत दी जा सके . और हुआ भी वही . परन्तु सामजिक संगठनों, मीडिया की ट्रायल , सोशल मीडिया पर आया उबाल तथा विपक्षी पार्टियों द्वारा किये गए विरोध के कारण मामला उच्च स्तर तक पहुँच गया और खुद प्रधानमंत्री कार्यालय से की गयी लगातार निगरानी के परिणाम स्वरूप अंततः यूनियन होम सेक्रेटरी राजीव महर्षि के फ़ोन के बाद चंडीगढ़ पुलिस को किडनैपिंग की कोशिश की धारा जोड़नी पड़ी और नौ अगस्त को नब्बे घंटे के बवाल व सरकार तथा भाजपा की फजीयत के बाद आरोपी विकास बराला तथा उसके सहयोगी आशीष को धारा ३६५/५११ के तहत केस दर्ज कर गिरफ्तार करना पड़ा .

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्यों नब्बे घंटे तक पुलिस अधिकारियों को यह समझ नहीं आया कि किस धारा के तहत केस दर्ज करना है ? जब प्रथम दृष्ट्या में यह दिख रहा था कि मामला किडनैपिंग के प्रयास का बनता है ,जो नॉन- बेलेबल है, तो क्यों पुलिस ने साधारण बेलेबल धाराओं के तहत केस दर्ज कर आरोपियों को अपने स्तर पर थाने में ही जमानत दे दी गयी ? और फिर यदि चंडीगढ़ पुलिस इस मामले में कन्फर्म थी कि मामला बेलेबल ही है तो फिर नब्बे घंटे के बाद क्यों और किसके निर्देश के बाद नॉन बेलेबल धारा जोड़ी गयी ? पुलिस बार बार यह कहती रही कि केस में लीगल ओपिनियन ली जा रही है . पर अचरज की बात यह है कि इतने गंभीर मसले पर उसी बिल्डिंग में स्थित एक अन्य कार्यालय से कानूनी राय लेने में क्या चार दिन लग गए ? इससे स्पष्ट है कि फैसला नियम के तहत नहीं बल्कि निर्देश के तहत लिया गया . परन्तु क्या यह प्रकरण चंडीगढ़ पुलिस की निष्पक्षता तथा सक्षमता को दाग दार नहीं बनाता ? यह हाल तो तब है जब पीडिता एक हरियाणा कैडर के ही एक वरिष्ठ आइ ए एस अधिकारी की लड़की है. वर्णिका कुंडू ने शायद अपनी फेस बुक वाल पर ठीक ही लिखा है . “वह किस्मत वाली है कि वह एक आइ ए एस अधिकारी की पुत्री है .”

सोचने वाली बात यह है कि आखिर कब तक निर्देशों की बैसाखियों पर टिकी रहेगी नियमो की अनुपालना ? क्या असक्षम अधिकारियों को जिम्मेदारी दी हुई है या वे जान बुझकर फैसले अपने से ऊपरी अधिकारियों के माथे मंढना चाहते हैं .अब समय आ गया है कि बार बार ऊपरी अधिकारियों के निर्देशों की आड़ में फैसलों को लटकाने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कारवाई करनी होगी और उन्हें उनकी अकर्मण्यता की सजा देनी ही होगी .

Related Articles

Back to top button