अद्धयात्म

आखिर क्यों भगवान परशुराम ने 21 बार दहलाया क्षत्रियों का कुनबा, जानें क्या था वो रोचक किस्सा

भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम (Lord Parshuram) माने जाते हैं। भगवान परशुराम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रियों का 21 बार सं’हार किया। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान परशुराम ने आखिर 21 बार ही पृथ्वी से क्षत्रिय वंश का ना’श क्यों किया?

आखिर क्यों भगवान परशुराम ने 21 बार दहलाया क्षत्रियों का कुनबा इसी का जवाब देती है एक रोचक पुराण कथा

एक बार भगवान परशुराम (Lord Parshuram) के पिता जमदग्नि ऋषि के आश्रम में राजा कार्तवीर्य अर्जुन यानी सहस्त्रार्जुन आये। ऋषि जमदग्रि ने देवराज इन्द्र से प्राप्त कामधेनु गाय के अनूठे गुणों की मदद से सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना के लिए भोजन और विश्राम का बंदोबस्त किया।

कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को ऋषि के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसके मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा। तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई।

सहस्त्रार्जुन को खाली लौटना पड़ा। परम तपस्वी जमदग्रि ने अपने संत चरित्र के कारण सहस्त्रार्जुन का कोई विरोध नहीं किया और तप करते रहे। किंतु इस घटना के बाद जब पितृभक्त परशुराम का वहां आना हुआ तो उनकी माता ने सारी बात बताई। परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए।

पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। जहां सहस्त्रार्जुन और परशुराम का युद्ध हुआ। किंतु परशुराम के प्रचण्ड बल के आगे सहस्त्रार्जुन बौना साबित हुआ। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु से काटकर कर उसका व’ध कर दिया।

सहस्त्रार्जुन के वध के बाद पिता के आदेश से इस वध का प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए। इसी बीच मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर का’टकर व’ध कर दिया। जब परशुराम तीर्थ से वापिस लौटे तो आश्रम में माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का क’टा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे।

यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही स’र्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार सं’हार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान परशुराम ने अपने इस संकल्प को पूरा भी किया। इस भू-लोक से इक्कीस बार क्षत्रियों का ना’श कर उनके बहते र’क्त से समन्तपंचक क्षेत्र में र’क्त कुण्ड बन गए। जिससे उन्होंने अपने पिता का तर्पण भी किया।

परशुराम द्वारा तत्कालीन दुष्ट और अत्याचारी क्षत्रियों का अं’त कर न केवल जगत को उनके आतंक से मुक्त कराया बल्कि इसके द्वारा एक लौकिक संदेश भी दे गए कि किसी भी व्यक्ति और समाज को असत्य, अन्याय और अत्याचार का निर्भय होकर, पुरुषार्थ और पराक्रम के साथ विरोध करना चाहिए। किंतु उसका उद्देश्य साथर्क होना चाहिए।

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