रिसर्च में पाया गया कि
100 में से 60 से ज्यादा शराब पीने के बाद बेहोश हुए। इस दौरान कुछ की याददाश्त पूरी तरह चली गई, जबकि कुछ को टुकड़ों में कुछ बातें याद थीं। कुछ लोगों को तो शराब पीते ही चढ़ गई, जबकि कुछ को पीने के करीब आधे घंटे बाद नशा हुआ।
शराब पीने से लेकर नशा चढ़ने तक जितने सवाल उनसे पूछे गए, उनका जवाब तो उन्होंने सही दिया, लेकिन होश में आने के बाद उन्हें कुछ याद नहीं था।
कुछ को बहुत याद करने पर कुछ बातें याद आ रही थीं। हालांकि नैतिकता के आधार पर आज इस तरह का तजुर्बा करना मुश्किल है।
हिप्पोकैंपस
आधी सदी पहले हुए इस रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिक कहते हैं कि शराब के नशे में बेहोश होने के दौरान दिमाग का वो हिस्सा जिसे हिप्पोकैंपस कहते हैं, कुछ वक्त के लिए बिगड़ जाता है। हिप्पोकैंपस दिमाग का वो हिस्सा होता है, जो तमाम तरह की जानकारियों को याददाश्त के लिए एक फाइल के तौर पर स्टोर करता है। जिन लोगों के दिमाग के इस हिस्से पर असर ज्यादा होता है, वो नई चीजें याद नहीं रख पाते।
शराब पीने पर हिप्पोकैंपस को जानकारी पहुंचाने वाले दिमाग के दो अन्य हिस्से फ्रंटल लोब और अमेगडाला भी प्रभावित होते हैं। फ्रंटल लोब दिमाग का विचार बुद्धि वाला हिस्सा है। जबकि, अमेगडाला हमें खतरे के बारे में सतर्क करता है। खाली पेट या सोने से पहले शराब पीना ज्यादा घातक होता है। अल्कोहल का खतरा इस बात पर भी निर्भर करता है कि कितनी जल्दबाजी में उसका सेवन किया जा रहा है।
मर्दों और महिलाओं का मुकाबला
अगर 0.20 से 0.30 फीसद अल्कोहल खून में शामिल है, तो याददाश्त पूरी तरह काम करना बंद कर देती है। लेकिन इसमें शरीर का वजन और लिंग दोनों अहम होते हैं। इसीलिए जिन लोगों का वजन कम होता है उनके दिमाग पर अल्कोहल का असर तेजी से होता है। शराब पीने के बाद महिलाएं भी खूब टल्ली होती हैं। हालांकि अल्कोहल लेने के मामले में मर्दों के मुकाबले उनकी संख्या कम है। लेकिन उनके शरीर में चर्बी ज्यादा होती है, जिसका मतलब है अल्कोहल को पतला करने के लिए उनके शरीर में पानी की मात्रा कम होती है। इसीलिए उनके खून में शराब का असर ज्यादा और तेजी से होता है।
2017 की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक मर्दों के मुकाबले तीन पैग कम लेने पर भी महिलाएं शराब पीकर बेहोश हो जाती हैं। जबकि 2015 की एक रिसर्च के मुताबिक मर्दों के मुकाबले एक भी पैग ज्यादा लेने वाली महिलाओं में मर्दों के मुकाबले बेहोश होने संभावना 13 फीसद तक बढ़ जाती है।
किशोरावास्था में असर
दिलचस्प बात है कि इस मामले में खानदान या मां-बाप के रोल भी अहम हो जाते हैं। रिसर्च के मुताबिक जिनकी मांओं को शराब पीने के बाद दिक्कत होती थी, उनके लिए खतरा ज्यादा है। दिमाग पर होने वाले असर के मामले में आनुवांशिक अंतर भी अहम रोल निभाता है। चूहों पर की गई रिसर्च के मुताबिक बहुत ज्यादा शराब का सेवन दिमाग में कई अन्य बदलावों को जन्म दे सकता है।
किशोरावस्था में दिमाग और शरीर दोनों खुद को मजबूत करने का प्रयास कर रहे होते हैं। ऐसे में अल्कोहल का नकारात्मक असर उनके दिमाग और शरीर दोनों पर पड़ता है। दिमाग का फ्रंटल लोब वाला हिस्सा 25 साल की उम्र तक विकसित होता है। लिहाजा किशोरावास्था में उस पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है।
खतरे का अहसास
जिन महिलाओं को शराब पीने के बाद सब कुछ भूल जाने की आदत होती है, नशे में उनका सेक्शुअल बिहेवियर भी बदल जाता है और अगले दिन उन्हें अपने किए पर पछतावा होता है। आंकड़े बताते हैं कि जो महिलाएं शारीरिक हिंसा का शिकार हुई होती हैं, वो शराब के नशे में दोबारा आसानी से इसकी शिकार बन जाती हैं। नशे की हालत में उनका दिमाग उन्हें खतरे का अहसास ही नहीं करा पाता। फैसला लेने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
खतरा नशा उतरने के बाद भी बना रहता है, क्योंकि उन्हें याद ही नहीं रहता कि नशे के वक्त उनके साथ क्या हुआ था। भले ही नशे की हालत में कोई रजामंदी दे दे, लेकिन हो सकता है कि वो इसके लिए तैयार ना हो। लेकिन जब कोर्ट में केस पहुंचेगा तो वहां इसे रजामंदी ही माना जाएगा।
काउंसेलिंग और इलाज
सेक्स को लेकर पॉजिटिव तौर पर हामी भरने के मामले में भी कई देशों के कानून अलग हैं और कई देशों के तो राज्यों में ही कानून बदल जाते हैं। जैसे न्यूयॉर्क में दिमागी अक्षमता होने पर महिलाओं को रजामंदी को हामी नहीं माना जाता। शराब पीने के बाद ब्लैकआउट होने का मतलब आंखें बंद करके बेसुध हो जाना ही नहीं है।
ब्लैकआउट का मतलब है दिमाग का सुन्न हो जाना। सोचने-समझने की क्षमता खो बैठना। हो सकता है देखने में हालत सामान्य लगे, लेकिन ऐसी हालत में दिमाग कोई नई जानकारी जमा नहीं करता। अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी की मनोवैज्ञानिक मेरी-बेथ मिलर का कहना है कि नई तकनीक के सहारे ब्लैकआउट की समस्या को खत्म किया जा सकता है।
उन्होंने कई पूर्व सैनिकों और यूनिवर्सिटी के छात्रों पर तजुर्बा किया भी है। वो इसे पर्सनेलिटी नॉर्मेटिव फीडबैक कहती हैं। ऑनलाइन प्रशनपत्र के जरिए लोगों से उनकी शराब पीने की आदत संबंधी सवाल पूछे जाते हैं। जवाब के आधार पर उनकी काउंसेलिंग और इलाज होता है। जिन्हें अंदाजा है कि वो शराब पीकर बहक जाते हैं और कुछ याद नहीं रहता, ऐसे लोगों को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। ऐसी स्थिति का लोग नाजायज फायदा उठा सकते हैं। शराब उतनी ही लें जितना पचा सकते हैं। अति किसी भी चीज की नुकसानदेह है।