नयी दिल्ली : भारतीय प्राचीन ज्ञान को फैलाने के लिए सांस्कृतिक आंदोलन शुरू करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि भगवान आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद जैसे आध्यात्मिक नेताओं ने हमारी नैतिक नींव को आकार दिया है। श्री नायडू ने यह विचार रविवार को यहां भारतीय ज्ञानशास्त्र पर आधारित पुस्तक ‘विवेकदीपिनी’ का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए। ‘विवेकदीपिनी’ अंग्रेजी के साथ ही नौ भाषाओं में प्रकाशित हुई है और इस पुस्तक में भारत के प्राचीन ज्ञान की झलक मिलती है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित ‘प्रश्नोत्तर रत्नमलिका’ पुस्तक ज्ञान का ऐसा भंडार है जिसमें किसी धर्म या समुदाय की परवाह किए बिना सार्वभौमिक प्रासंगिकता को महत्व दिया गया है। आदि गुरु की यह रचनावली वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करने वाले भारत के नैतिक नजरिये को प्रदर्शित करती है। उन्होंने कहा कि इससे निश्चित रूप से सब लोग सहमत होंगे कि भारत के विविध प्राचीन ज्ञान को संक्षिप्त में पेश करने वाली यह पुस्तक वास्तव में सार्वभौमिक हैं। यह हमारी बौद्धिक विरासत है जिस पर न सिर्फ हर भारतीय को गर्व करना चाहिए बल्कि अपने जीवन में भी इन मूल्यों को उतारना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस ज्ञान को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए स्कूल और कालेजों के साथ ही ‘वेदांत भारती’ जैसे गैर-सरकारी संगठनों को भी आगे आना चाहिए और सहिष्णुता, समावेश, सद्भाव, शांति, कल्याण, धार्मिक आचरण, उत्कृष्टता और सहानुभूति के भारत के प्राचीन सार्वभौमिक संदेश को फैलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यही भारतीय आध्यात्मिक ने वेदांत भारती की सराहा कि उसने इस प्रचीन भारतीय ज्ञान को अंग्रेजी, कन्नड़, हिंदी, तमिल, बांग्ला, तेलुगू, मलयालम, मराठी, उड़िया और गुजराती भाषाओं में प्रकाशित किया है।