दस्तक-विशेष

आप के पत्र

अब आएगा ऊँट पहाड़ के नीचे
letterन्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता न मिल पाने से भारत निराश जरूर हुआ था पर मिसाइल नियंत्रक संगठन (एमटीसीआर) जिसके दरवाजे चीन के लिए भी बंद रहे हैं, में स्थान ग्रहण कर भारत ने अपनी क्षतिपूर्ति कर ली है। चीन 2004 से इसकी सदस्यता पाने की जुगत भिड़ा रहा था किन्तु असफल रहा। इसके 34 सदस्य देश पाक एवं उत्तर कोरिया को चीन द्वारा उन्नत मिसाइल दिए जाने से रुष्ट थे। भारत ने दो साल पहले सदस्यता का आवेदन किया और प्राप्त कर ली। अब अत्याधुनिक मिसाइल तकनीक व सामान जैसे क्रायोजेनिक इंजन और प्रीडेटर ड्रोन हमें सरलता से मिल सकेंगे। हम अपने ब्रह्मोस तथा अग्नि जैसे प्रक्षेपास्त्र बिना आपत्ति बेच भी सकेंगे। एनएसजी में भारत का रास्ता रोकने वाला चीन एमटीसीआर में प्रवेश के लिए अब भारत की चिरौरी करेगा। अब आएगा ऊँट पहाड़ के नीचे। मोदी की यह बड़ी कूटनीतिक विजय है। मोदी सरकार की विदेश नीति की यह एक बड़ी सफलता है कि भारत को मिसाइल तकनीक नियंत्रक देशों की सदस्यता मिल गई है। मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम में 35वें सदस्य के रूप में भारत के शामिल होने से इस स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है। इस रिजीम की सदस्यता के बाद भारत के लिए परमाणु अप्रसार के नियमों के तहत उच्चस्तरीय और अत्याधुनिक मिसाइल तकनीक का आयात-निर्यात करना अधिक आसान हो जाएगा। इस सदस्यता से उसको वैश्विक मान्यता भी मिल गई है। इससे भारत को आर्थिक लाभ भी होगा।
-समीक्षा सिंह, राईवीगो, सुलतानपुर

बिजली उत्पादन बढ़ाये सरकार
प्रदेश सरकार विकास के अनेक दावे प्रस्तुत कर रही है, लेकिन यह दावा तब तक मानने योग्य नहीं है, जब तक बिजली के उत्पादन को मांग के अनुरूप न किया जाए। उत्तर प्रदेश में सरकार विभिन्न प्रकार की समाजवादी योजनाओं का वर्णन करती है लेकिन राज्य का विकास पेंशन या कन्या धन से नहीं होगा, इसके लिए आधारभूत संरचना को ठीक करना होगा, जनसंख्या को नियंत्रित करना और ऊर्जा के क्षेत्र में बड़े स्तर पर काम करना, राज्य के विकास की कसौटी हो सकता है। किसी भी राज्य में उपद्रव और अपराध तब ही होते हैं, जब वहां पक्षपाती सरकार होती है। क्या प्रदेश सरकार इस बात से इंकार कर सकती है कि उसने वोट बैंक के लिए पक्षपाती व्यवहार नहीं किया? क्या वह यह दावा कर सकती है कि उसने सभी वर्गों के साथ समान व्यवहार किया है? आजकल उत्तर प्रदेश सरकार समाचार पत्रों में विज्ञापन दे रही है, जिसमें विकास के दावे प्रस्तुत किए गए हैं, पर क्या जमीन पर यह दावे सत्य हैं? इस समय प्रदेश में विकास कार्य शून्य है, प्रशासनिक व्यवस्था भंग है, ऐसे में सुशासन का दावा करना ही गलत है।
-प्रीती पटेल, वाराणसी

धार्मिक स्थलों पर गंदगी
सबसे दुख की बात है कि जिस संस्कृति ने विश्व को स्वच्छता का संदेश दिया, वह ही गंदगी की भीषण चपेट में हैं। मंदिरों तथा तीर्थस्थलों की गंदगी चिंता पैदा करने वाली है। जब हमारी आस्था धर्म से है, और उसी आस्था के बल पर हम मंदिर या तीर्थ स्थल जाते हैं तो गंदगी क्यों करते हैं? यदि वहां किसी प्रकार की कोई गंदगी भी है तो उसकी सफाई ईश्वरीय काम समझते हुए कर सकते हैं। मेरा अनुभव यह बताता है कि हम चाहे देश के किसी भी कोने में चले जाएं, अन्य जगहों की तरह धार्मिक स्थलों पर कमोबेश गंदगी देखने को मिल ही जाती है। तीर्थस्थलों को जाते समय सड़क किनारे खाली प्लेटें, गिलास, पॉलिथीन के पैकेट आदि देखने को मिल जाएंगें। वहां जाने वाले पर्यटक श्रद्धालु कचरा डस्टबिन में डालने की बजाय जहां-तहां फेंक देते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि समय-समय पर कुछ धार्मिक संस्थाएं सड़क किनारे भंडारा लगाती हैं। यह सामाजिक समरसता तथा सहयोग का अच्छा प्रयास कहा जा सकता है लेकिन दुख इस बात का है कि प्लेटें तथा गिलास सड़क पर ही डाल देते हैं। जो संस्थाएं भंडारा जैसा अच्छा काम करती हैं, वह स्वच्छता का भी ध्यान रखें तो अधिक पुण्य मिलेगा। हमारी ऐसी प्रवृति स्वच्छ भारत के सपने को धराशायी कर रही है। स्वच्छ भारत के लिए यह जरूरी है कि प्रशासन इस बात का संज्ञान ले और कचरा फेंकने वालों को हिदायत दे, ताकि आस्था से भरा मन गंदगी देख खिन्न न हो। मेरा यह मानना है कि सरकार ऐसे मामले में परिणामपरक कार्य नहीं कर सकती। इसके लिए धार्मिक संगठनों को आगे आना होगा। मंदिरों की व्यवस्था के लिए सर्वजातीय समिति हो और उसका चुनाव सरकार की देखरेख में होना चाहिए। इससे समाज के सभी वर्गों की सहभागिता धर्म स्थलों की सुरक्षा तथा स्वच्छता के लिए बढ़ेगी। हर काम को सरकार के ऊपर डाल देना उचित नहीं है।
-अजीत ओझा, लखनऊ

धर्म से बड़ी मानवता
हमें यह समझ लेना चाहिए कि धर्म संस्था का जन्म मानव समाज में एकता स्थापित करने तथा नैतिक मूल्यों के प्रसार के लिए हुआ है लेकिन आज हम देख रहे हैं कि धर्म के नाम पर भेदभाव की राजनीति हो रही है। वोट बैंक के नाम पर साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहित किया जा रहा है। हमारे संविधान में हर नागरिक को समानता का अधिकार प्राप्त है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से ताल्लुक रखता हो। विभिन्न सरकारी प्रावधानों में इस आधार पर भेदभाव को प्रोत्साहित करना दंडनीय अपराध है। लेकिन व्यावहारिक जीवन में धर्म और जाति के आधार पर समाज में दुराग्रह है। यही भेदभाव समाज में भाईचारा समाप्त कर रहा है। हर व्यक्ति को धर्म संप्रदाय से पहले देश को महत्व देना चाहिए और उसके हितों की रक्षा करनी चाहिए। अगर देश नहीं होगा तो समाज और व्यक्ति भी नहीं होगा। अगर व्यक्ति नहीं होगा तो धर्म का अस्तित्व कैसे बचेगा? जरूरी है धर्म की बजाय देश और मानवता को अधिक महत्व दिया जाए। आईएस जैसे संगठनों ने धर्म के नाम पर लाखों लोगों का कत्ल कर दिया है। यह क्रम रुक नहीं रहा है? धर्म के नाम पर होने वाले इस प्रकार के नरसंहार के कारण ही कार्ल माक्र्स ने कहा था कि धर्म एक अफीम है। यदि हम धर्म के मूल भाव को अपने भीतर ग्रहण करें तो संसार को बचा सकते हैं।
-सोमेंद्र आर्य, बागपत

मदिरा सेवन पर प्रतिबंध लगे
इस समय हमारी युवा पीढ़ी मदिरा सेवन की ओर बढ़ती जा रही है। आएदिन शराब के नशे में महिलाओं से उत्पात के समाचार भी आ रहे हैं। हाल ही में, मुम्बई में एक शराबी युवती ने एक पुलिस अधिकारी पर हमला कर दिया। यह समस्या केवल पंजाब की नहीं है। चुनाव के कारण पंजाब का नाम उछाला जा रहा है लेकिन यह पूरे देश की समस्या है। नशा, नाश की निशानी है़। पंजाब कभी देश का सर्वश्रेष्ठ और संपन्न राज्य था, मगर अब नशे के जाल ने इसे गर्त में पहुंचा दिया है। हरियाणा हो या पंजाब या कोई अन्य राज्य, घोर पूंजीवादी और राजनैतिक कारणों से इस जालिम नशे का शिकंजा, समूचे देश को बुरी तरह से जकड़ चुका है, जिससे देश की बड़ी क्षति निरंतर हो रही है। सरकार या तो शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए या फिर विशेष परिस्थिति में अनुज्ञा आधारित बिक्री की व्यवस्था करे।
-किरन कौर, पंजाबी बाग-नई दिल्ली

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