अजब-गजबपर्यटनफीचर्ड

आस्था और रोमांच से होना है सराबोर तो करें मंडी की इन पांच झीलों की सैर

यह झील तीन धर्मो हिन्दू, बौद्ध और सिखों का सांझा तीर्थस्थल है। यह झील तैरने वाले टापुओं के लिए मशहूर है। इस झील में रंग-बिरंगी बेशुमार मछलियां हैं। झील के साथ ही चिडि़याघर भी है, जो हर समय लोगों के आकर्शण का केंद्र बना रहता है। यहां बैसाख के पहले तीनों धर्मो के लोग सामुहिक स्नान करते हैं। रिवालसर की इसी पहाड़ी पर बौद्ध गुरु पदमसंभव की कई फीट ऊंची विशाल प्रतिमा भक्तों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। झील से लगभग सात किमी. दूर इसी पहाड़ी पर सड़क के किनारे आपको छोटी-छोटी गुफाएं नजर आ जाती हैं। ये गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं की साधना का स्थल हैं। यहां हर वक्त बौद्ध भिक्षु शांत मुद्रा में बिना किसी से बातचीत किए भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। यहां का शांत वातावरण थोड़ी देर के लिए दुनिया के शोर-शराबे से कोसों दूर कहीं एकांत में ले जाता है। रिवालसर झील मण्डी मुख्यालय से लगभग 24 किमी. की दूरी पर समुद्रतल से 1360 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां आप पूरे बर्षभर कभी भी जा सकते हैं। आस्था और रोमांच से होना है सराबोर तो करें मंडी की इन पांच झीलों की सैरकुंतभयो : खूबसूरत हरे रंग की झील

गुफा के पास ही एक अन्य खूबसूरत हरे रंग के पानी की झील है, जिसे कुंतभयो के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि जब कुंती को प्यास लगी तो अर्जुन ने अपने तीर से इसका निर्माण अपनी माता के लिए किया। इसलिए इस झील का नाम कुंतभयो पड़ा है। कहते हैं इसी झील का ही पानी है, जो रिवालसर झील का निर्माण करता है। यहीं से एक किलोमीटर दूर ऊपर पहाड़ी पर माता नैना देवी का मंदिर है, जहां दूर-दूर से भक्तगण आकर शीश नवाते हैं। 

पराशर झील : पराषर ऋषि को समर्पित

इस झील को निहारने का अपना ही एक सुखद अनुभव है। 2730 मीटर की ऊंचाई पर मण्डी से 49 किमी. की दूरी पर उत्तर-पूर्व दिशा में बसी यह झील पराषर ऋषि को समर्पित है। कहते हैं इसका निर्माण तब हुआ जब पराशर ऋषि ने जमीन पर अपना गुर्ज दे मारा। मिट्टी का एक बड़ा वृताकार टुकड़ा झील के ऊपर एक कोने से दूसरे कोने में तैरता रहता है। इसकी मौजूदगी झील की खूबसूरती में और भी निखार ले आती है। झील के साथ ही है तीन मंजिला ऋषि पराशर का पैगोड़ा शैली में बना संुदर मंदिर। कहा जाता है कि इतने बड़े मंदिर को देवदार के सिर्फ एक ही पेड़ से बनाया गया है। यह पसंदीदा पिकनिक स्पाट भी है। ट्रैकर्स की भी यह एक मनपसंद जगह है, जो उन्हें रोमांच से भर देती है। इसी स्थान पर एक विश्रामगृह भी है, जहां आप रुककर तसल्ली से इन हसीन वादियों का नजारा अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। यहां आने का सही समय अप्रैल से जून और सितंबर मध्य से बर्फ पड़ने से पहले तक का है।  

कमरुनाग झील : पांडवों के आराध्य को समर्पित

3334 मीटर की ऊंचाई पर मण्डी से 62 किमी. दूर मण्डी-करसोग सड़क मार्ग पर रोहांडा से 6 किमी. की पैदल खड़ी चढ़ाई के उपरांत इस खूबसूरत झील के दर्शन होते हैं। यह झील देव कमरुनाग जो पांडवों के आराध्य हैं को समर्पित है। लोग देव कमरुनाग को ‘बर्षा के देवता’ के रूप में भी पूजते हंै। गर्मी के दिनों में यह झील रोमांच के नए अनुभवों को जन्म देती है। ट्रैकर्स के लिए पसंदीदा जगह है। प्रकृति को करीब से निहारने के साथ-साथ रोमांच के पलों को अपनी मुट्ठी में कैद करते जाते हैं। इस झील की सबसे खास बात यह है कि लोग मन्नत पूरी होने पर या देवता के दर्शन के पश्चात इस झील में सोना, चांदी, सिक्के व नोट फेंकते हैं। यह रीत सदियों से चली आ रही है। जिसके चलते यह झील सोने-चांदी और सिक्कों का अथाह भंडार है। यहां आप अप्रैल से जुलाई मध्य और सितंबर से बर्फ पड़ने से पहले तक आरामदायक परिस्थितियों में जा सकते हैं।  

सुंदरनगर झील : पण्डोह बांध से सुरंग द्वारा लाए गए व्यास नदी के पानी से निर्मित

यह झील जिला मुख्यालय से 25 किमी. की दूरी पर चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय उच्च मार्ग-21 के साथ सुंदरनगर में स्थित है। अन्य झीलों की तरह यह कोई धार्मिक झील नहीं है। यह झील बीबीएमबी प्रोजेक्ट द्वारा निर्मित पण्डोह बांध से सुरंग द्वारा लाए गए व्यास नदी के पानी के कारण बनी है। इस स्थान से फिर व्यास नदी का पानी सुरंग द्वारा सलापड़ तक पहुंचाया जाता है, जहां व्यास नदी का पानी सतलुज नदी में मिल जाता है। यहीं पर 990 मेगावाट बिजली क्षमता वाले इस प्रोजेक्ट द्वारा बिजली का उत्पादन किया जाता है। यह झील राष्ट्रीय उच्च मार्ग-21के साथ ही होने के कारण हर आने जाने वाले पर्यटक के लिए हर समय आकर्षण का केंद्र रहती है। पर्यटक इसकी खूबसूरती को अपने कैमरे में जरूर कैद करके आगे निकलते हैं। झील के साथ ही है शुकदेव वाटिका जो शुकदेव ऋषि की तपस्थली है। लगभग दो किमी. के घेरे में सिमटी यह झील संुदरनगर की शान है।  

एक नजर यहां भी 

मण्डी की जंजैहली घाटी की बात करें तो इसकी खूबसूरती के तो कोई मायने ही नहीं हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ यहां का समृद्ध सांस्कृतिक पहलू पर्यटकों को अपने मोहपाश में बांधने को काफी है। जंजैहली घाटी के साथ लगती करसोग घाटी के तो क्या कहने! यहां के सीढ़ीनुमा खेत लगता है, जैसे इसका मुख्य आकर्षण हों। प्राकृतिक सौंदर्य का अथाह भंडार है यहां। यहां के पौराणिक मंदिर आस्था और रहस्य का खजाना लिए हुए हैं। यहीं पर आप कनक के उस विशाल दाने को देख सकते हैं, जो आपकी पूरी हथेली को ढक ले और झाड़ी से बना ढोल कई रहस्यों की ओर इशारा करते हैं। बरोट घाटी एक अन्य चिताकर्षक घाटी है जहां कुदरत ने अपनी सुंदरता के रंगों को दिल खोल कर बिखेरा है। इसके अलावा, यहां ढेरों ऐसे स्थान हैं, जिनकी खुबसूरती का स्वाद हम वहां घूम कर ही ले सकते हैं।

तो फिर देर किस बात की है। आइए चलें हिमाचल के जिला मण्डी की ओर, इसकी सुंदरता, आस्था और रोमांच को जीने।

क्या-क्या ले जाएं 

यदि आप पराशर या कमरुनाग झील की योजना बना रहे हों, तो अपने साथ खाने के सामान के साथ पानी भी अपने साथ रख लें। इसके अलावा गर्म कपड़े भी साथ में रखें, क्योंकि गर्मी में भी जरा-सी बारिश आपको सर्दी के मौसम की याद दिलाने के लिए काफी है। 

कैसे पहुंचें

दिल्ली से मण्डी की दूरी लगभग 475 किमी., चंडीगढ़ से 200 किमी. और शिमला से 143 किमी. की दूरी पर बसा है। यहां के लिए दिन-रात बस सुविधा है। मण्डी से नजदीक का रेलवे स्टेशन जोगिन्द्रनगर है, जिसकी यहां से दूरी 50 किमी. है। कुल्लू जिले का भुंतर हवाई अड्डा यहां का सबसे नजदीक का हवाई अड्डा है, जो मण्डी से 60 किमी. की दूरी पर स्थित है।

 

Related Articles

Back to top button