इस अन्न के बिना अधूरी होती है किसी भी देवी-देवता की पूजा, इसे चढ़ाने से मिलता है परमात्मा का आशीर्वाद…
सभी देवी-देवताओं की पूजा में चावल का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, इसके बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। किसी भी पूजा में गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम के साथ ही अक्षत भी चढ़ाए जाते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए पूजा में चावल क्यों जरूरी माने हैं…
पूजन में अक्षत इस मंत्र के साथ भगवान को चढ़ाए जाते हैं-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥
इस मंत्र का अर्थ यह है कि हे भगवान, कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित हैं, कृपया आप इन्हें स्वीकार करें। इसका यही भाव है कि अन्न में अक्षत यानी चावल श्रेष्ठ माना जाता है। इसे देवान्न भी कहा गया है। देवताओं का प्रिय अन्न है चावल। इसीलिए इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ आपको अर्पित कर रहे हैं। इसे ग्रहण करें, आप भक्त की भावना को स्वीकार करें।
चावल से जुड़ी खास बातें
पूजन कर्म में देवी-देवता को चावल चढ़ाए जाते हैं, साथ ही किसी व्यक्ति को जब तिलक लगाया जाता है, तब भी अक्षत का उपयोग किया जाता है।
अक्षत पूर्णता का प्रतीक है यानी यह टूटा हुआ नहीं होता है। पूजा में अक्षत चढ़ाने का भाव यह है कि हमारा पूजन भी अक्षत की तरह पूर्ण हो, इसमें कोई बाधा न आए, पूजा बीच में टूटे नहीं यानी अधूरी न रहे। इसी प्रार्थना के साथ भगवान को चावल चढ़ाए जाते हैं।
चावल को अन्न में श्रेष्ठ माना गया है। इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है। चावल चढ़ाकर भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हमारे सभी कार्य की पूर्णता चावल की तरह हो, हमें जीवन में शांति मिले।
भगवान को चावल चढ़ाते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए न हों। अक्षत पूर्णता का प्रतीक है अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए। चावल साफ और स्वच्छ होने चाहिए।