अद्धयात्म

इस जगह 60 हजार वर्ष तक समाधिस्थ होकर महादेव ने किया था विष की ज्वाला को शांत

आदिकाल में समुद्र मंथन के पश्चात प्राप्त 14 रत्नों के साथ विष भी निकला था।  विष की भयंकर लपटों से देवी-देवता, जलचर आदि सभी प्राणी व्याकुल हो उठे थे। भगवान ब्रह्मा, विष्णु आदि के आग्रह पर भगवान शंकर ने विष का पान कर जीव-जगत को इस विपदा से मुक्ति दिलाई थी, जिससे भोलेनाथ का कंठ नीलवर्ण का हो गया। कालकूट विष की ज्वाला को शांत करने के लिए भोलेनाथ कैलाश पर्वत छोड़ एकांत और शीतल स्थान की तलाश में निकल पड़े।
इस जगह 60 हजार वर्ष तक समाधिस्थ होकर महादेव ने किया था विष की ज्वाला को शांत
 हिमालय में विचरण करते हुए महादेव मणिकूट पर्वत पर पहुंचे। यहां भगवान शिव ने मधुमति और पंकजा जलधाराओं के संगम अज्ञातवास में 60 हजार वर्ष तक समाधिस्थ होकर विष की ज्वाला को शांत किया। कालांतर में यही स्थान पौड़ी जनपद के यमकेश्वर विकासखंड में श्री नीलकंठ महादेव के नाम से विख्यात है।  स्कंदपुराण, केदारखंड और शिवपुराण आदि धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख है।

ऐसे पहुंचें श्री नीलकंठ

प्राचीन नीलकंठ धाम शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है। श्रावण महीने में आयोजित होने वाली कांवड़ यात्रा में यहां देशभर से लाखों भक्त उमड़ते हैं। प्राचीन शिवालय की कष्टकारी यात्रा कर और शिवलिंग पर जलाभिषेक कर श्रद्धालु मनवांचित फल की प्राप्ति करते हैं। पौराणिक धाम की लगातार बढ़ती ख्याति के चलते यहां साल दर साल श्रावण यात्रा में कांवड़ियों की आमद में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। 

दिल्ली से सिद्धपीठ श्री नीलकंठ महादेव मंदिर की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। दिल्ली से तीर्थनगरी ऋषिकेश तक सड़क, रेल और हवाई तीनों सेवाएं उपलब्ध हैं। ऋषिकेश से सड़क मार्ग से नीलकंठ महादेव मंदिर की दूरी करीब 25 किमी. जबकि लक्ष्मणझूला से नीलकंठ की दूरी 20 किमी. है। स्वर्गाश्रम से नीलकंठ धाम के लिए करीब 10 किमी. का पैदल मार्ग भी है।
    
उत्तराखंड में सर्वाधिक श्रद्धालुओं आते हैं धाम
प्राचीन नीलकंठ शिवालय उत्तराखंड के मठ-मंदिरों में दर्शनार्थियों की आमद के लिहाज से पहला धाम है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो यहां अकेले श्रावण मास की कांवड़ यात्रा में लगभग 60 लाख शिवभक्त दर्शन व जलार्पण के लिए उमड़ते हैं। इस लिहाज से वर्ष भर में पौराणिक नीलकंठ धाम के दर्शन को करीब सवा करोड़ शिव भक्त आते हैं।  

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