इस झील की परिक्रमा करने से ही कैलाश की परिक्रमा हो जाती है
हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला में रावी घाटी में स्थित मणिमहेश का निवास है और इसे ‘छोटा कैलाश’ भी कहते हैं। पौराणिक दंतकथाओं के अनुसार सतयुग काल से ही यह भगवान शंकर एवं पार्वती की क्रीड़ा स्थली रहा है। सम्पूर्ण हिमाचल को ही शिव का निवास माना जाता है मगर तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर, हिमाचल में मणिमहेश (छोटा कैलाश) और कश्मीर में श्री अमरनाथ धाम भगवान शिव के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धाम माने जाते हैं।
प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी को छोटा स्नान, जिसे पहाड़ी भाषा में ‘योत्र न्हौन’ कहते हैं के दिन से इस यात्रा का शुभारंभ होता है तथा दो सप्ताह बाद राधाष्टमी के दिन बड़े स्नान के साथ ही यात्रा सम्पन्न हो जाती है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार किसी बात पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने श्री कृष्ण को वरदान दिया कि हर साल आपके जन्मोत्सव पर साधु, योगी आदि मणि महेश पहुंच कर मेरी पवित्र डल (झील) में स्नान करेंगे और भावना अनुसार उनके मनोरथ सिद्ध होंगे। वरदान देते समय राधा जी भी उपस्थित थीं। उन्होंने शिव से कहा, ‘‘श्री कृष्ण को तो सारा जग जानता है। लोक कल्याण के लिए मुझे भी कोई वरदान दें।’’
तब भगवान शिव ने कहा कि राधा अष्टमी के दिन समाज के दूसरे वर्ग के लोग जैसे गृहस्थ आदि प्रतिवर्ष मेरे डल में मनोरथ सिद्धि के लिए स्नान करेंगे। ऐसी मान्यता भी है कि जब भगवान शिव का विवाह पार्वती जी के साथ हुआ था तो भोले नाथ शादी के बाद हिमालय पुत्री एवं तमाम बारातियों के साथ यहीं आए थे तथा यहीं से उन्होंने देवताओं को विदा किया था।
मान्यताओं के अनुसार छठी शताब्दी में जब चम्बा नगर अभी बसा नहीं था, तब आज का भरमौर जिसे उस काल में ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था, एक समृद्ध राज्य था। राजा मेरू बर्मन भरमौर का राजा था तथा सिद्ध योगी चरपट नाथ राजा के गुरु थे। योगी चरपट नाथ एक बार जंगलों में घूमने निकले तो उन्होंने इस स्थान का पता लगाया। तभी से साधु संत इस दुर्गम पर्वतीय स्थान की यात्रा पर जाने लगे।
मणिमहेश झील के ठीक सामने छोटा कैलाश पर्वत के शिखर पर बर्फ के विशाल साम्राज्य के मध्य काले पत्थर की एक पिंडी (शिला) के दर्शन होते हैं। इसे शिव का आसन माना जाता है। मान्यता है कि कैलाश शिखर भगवान शिव का शरीर है और इस पर चढऩा अशुभ माना जाता है। भोर के समय एक प्रकाश कैलाश पर प्रकट होता है जोकि धीरे-धीरे मणिमहेश झील की ओर बढ़ता है और उसी में विलीन हो जाता है। इस प्रकाश की तुलना लोग शिव के गले में पड़े रहने वाले शेषनाग की मणि से करते हैं। प्रकाश का होना इस बात का प्रतीक है कि शिव कैलाश पर आ गए हैं। पर्वत के शिखर पर स्वत: बनी यह झील एक किलोमीटर में फैली हुई है।
मान्यता है कि इस झील की परिक्रमा करने से ही कैलाश की परिक्रमा हो जाती है। झील के पास ही खुले आकाश में बने शिव मंदिर में श्रद्धालुगण पूजा-अर्चना करते हैं। वसंत ऋतु के आरंभ से और वर्षा ऋतु के अंत तक छ: महीने भगवान शिव सपरिवार कैलाश पर निवास करते हैं और उसके बाद शरद ऋतु से वसंत ऋतु तक छ: महीने कैलाश से नीचे उतर कर पातालपुर में निवास करते हैं। श्री राधाष्टमी पर मणिमहेश झील पर अंतिम स्नान इस बात का प्रतीक माना जाता है कि अब शिव कैलाश छोड़ कर नीचे पातालपुर के लिए प्रस्थान करेंगे।
मणिमहेश यात्रा मार्ग
पंजाब के पठानकोट से होते हुए यात्रीगण हिमाचल में चम्बा पहुंचते हैं। पठानकोट से वाया डल्हौजी होते हुए चम्बा की दूरी 120 किलोमीटर है। चम्बा से फिर भरमौर जाना पड़ता है। चम्बा से भरमौर 65 किलोमीटर है। भरमौर से 15 किलोमीटर का सफर तय करके हड़सर नामक गांव जाना पड़ता है। यह मणिमहेश यात्रा का मुख्य आधार शिविर है। यहां से पैदल चढ़ाई आरंभ होती है। यात्रीगण 16-17 किलोमीटर की कठिन यात्रा पैदल या खच्चर से तय करते हैं। यह मार्ग एक ही दिन में तय किया जा सकता है। यात्रियों को चाहिए कि वे अपने साथ स्वैटर, जैकेट, टोपी, रेन कोट आदि जरूर साथ लेकर जाएं। दवाइयां व टार्च साथ रखना भी जरूरी है