दिवाली का समय खुशियां मनाने का होता है। ये मौका है बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने का, सगे-संबंधियों के साथ मिठाईयां बांटकर भविष्य के लिए नए सपने संजोने का। वैसे तो हमारा वित्तीय वर्ष अप्रैल में शुरू होता है। बावजूद इसके हम साल की शुरूआत दिवाली पर बहीखातों की पूजा करके करते हैं। यह त्योहार अच्छे व्यवसाय और बेहतर जीवन के लिए नई उम्मीदों का त्योहार है।
दिवाली रावण पर विजय पाने के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी का प्रतीक भी है। यह त्योहार प्रतीक है कि कि अच्छाई की हमेशा बुराई पर जीत होती है। एक अच्छे राजा होने के बावजूद रावण बुराई को दर्शाता है। हालांकि वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। वह विद्वान होने के साथ एक अच्छा शासक भी था। जबकि भगवान राम मर्यादा पुरूषोत्तम हैं – ‘एक उत्तम पुरूष’। इसलिए उन्हें भगवान कहते हैं। मगर रावण कुछ हद तक ‘मानव’ था, हम जैसे साधारण मनुष्यों की तरह । जिसमें अच्छाई और बुराई दोनों चीजें शामिल हैं।
मुझे यकीन है कि कई लोग मेरी इस बात को पसंद नहीं करेंगे । कुछ लोग कहेंगे कि मेरे भीतर रावण जैसे गुण नहीं हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई हमें रावण कहने की? मैं आपको बता दूं कि यहां मेरा मतलब उस अच्छाई और बुराई से है जो हम सबके अंदर होती हैं। अब यह परिस्थितियों, जगह और समय पर निर्भर करता है कि हमारे भीतर की बुराई या अच्छाई कब उभरकर सामने आएगी। लेकिन वह कुछ न कुछ मात्रा में हम सबमें होती अवश्य है।
हमारे माता-पिता, शिक्षक, गुरुओं ने हमें सिखाया है कि हमें अपनी जिंदगी कैसे जीनी चाहिए और यही गुरुमंत्र हमने अपनी आगे की पीढ़ी को भी दिया है। जिंदगी कैसे जीनी है ये हमे पुराण ने भी सिखाया है। उदाहरण के लिए पतंजलि योग सूत्र में 5 तरह के यम के बारे में बताया गया है – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्र्मचर्य और अपरिग्रह। अस्तेय अर्थात अचौर्य। दूसरे की वस्तु को पाने की लालसा न होना। अपरिग्रह यानी एक सीमा से ज्यादा संग्रह न करना। हममें से बहुत लोग ये सूत्र समझते होंगे। लेकिन क्या हमने कभी एक पल के लिए भी ईमानदारी से बैठकर ये सोचा है कि क्या हम इन सभी यमों का पूरी तरह से पालन कर रहे हैं?
पहला यम है सत्य। क्या हम सत्य के करीब हैं? हमारे पास बोलने के लिए सफेद झूठ होता है। हम बड़ी कूटनीतिक चतुराई से झूठ को छिपा ले जाते हैं। अहिंसा तो हमारे भीतर एक हद तक जन्मजात होती ही है। कौन है जिसे कभी गुस्सा नहीं आया? क्या हम कभी चोरी नहीं करते? हो सकता है हमने कभी किसी दुकान से कोई चीज न उठाई हो लेकिन क्या हमने कभी विचारों की चोरी नहीं कि ? क्या हम हमेशा किसी विचार के लिए उस विचार के मूल विचारक को श्रेय देते हैं? रही बात आवश्यकता से अधिक संग्रहण की तो गुरु अयंगर ने एक बार कहा था, लालच और जरूरत में अंतर होता है लेकिन अनजाने में हमें नहीं पता होता कि कब हम उस सीमा को पार कर देते हैं। हो सकता है कि हम कालाबाजारी के लिए जमाखोरी न करते हों लेकिन क्या रोजमर्रा की खरीदारी में भी जरुरत से ज्यादा तो चीजें नहीं ले लेते? ब्रह्मचर्य का भी कितना पालन हम कर पाते हैं?
आप सोच रहे होंगे कि यह दिवाली का समय है -खुशियों और आशाओं का समय, तो हम सबके अंदर व्याप्त नकारात्मकता के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? इसका योग के साथ क्या संबंध है? आखिरकार, यह योग का कॉलम है।योग गुरु बीकेएस अयंगर ने एक बार अपने छात्रों से पूछा, “क्या आपने कभी यम शब्द के बारे में सुना है?” यम मृत्यु का स्वामी है और अष्टांग योग का पहला ‘अंग’ भी यम है। क्या इसमें कोई संबंध है या ये कोई संयोग है। हालांकि योग के विद्वानों का कहना है कि योग की यात्रा शुरू करने से पहले हमें यम और नियम का अभ्यास करना होगा। तथ्य यह है कि जितना हम लोग यम के मार्ग का पूरी तरह पालन करने का प्रयास करेंगे, उतना ही उससे भटकने की संभावना बढ़ेगी। यह कहना आसान है कि “यम का पालन करें” लेकिन पूरी तरह से यम का पालन करना इतना आसान नहीं है!
योग गुरु बीकेएस अयंगर बहुत ही व्यावहारिक इंसान थे। उन्होंने कभी भी अपने किसी शिष्य को यम का अभ्यास करने के लिए नहीं कहा। वह जानते थे कि किसी भी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन उसकी खुद की सोच की वजह से आता है। उसके अंदर से आता है न कि उसकी बाहरी मौजूदगी से। उन्होंने स्वीकारा कि आखिरकार हम इंसान हैं इसलिए हम सभी के भीतर कुछेक अयमिक’ गुण जरूर मौजूद होते हैं। उनका कहना है कि आसन और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से इंसान के स्वभाव में बदलाव किया जा सकता है और अयम को कम किया जा सकता है।
गुरू अयंगर की शिक्षाओं को सिद्ध करने के लिए कई उदाहरण हैं जैसे कि उन्होंने कभी अपने छात्रों को नहीं कहा कि वो क्या खाएं और क्या नहीं, उन्होंने कभी भी अपने छात्रों को मांसाहारी भोजन न करने की सलाह नहीं दी। बता दें कि उनके छात्र दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आते थे जहां भोजन में मांस खाना उनकी संस्कृति या दैनिक जीवन का हिस्सा था। लेकिन सच यह भी है कि कई वर्षों के अभ्यास के बाद उनके कई छात्रों ने मांस खाना छोड़ दिया। इतना ही नहीं कई शाकाहारी लोगों ने तो ‘सात्विक आहार’ को अपना लिया। जब इन छात्रों से पूछा गया कि उन्होंने अचानक मांस खाना क्यों बंद कर दिया तो उनका कहना था कि यह धीरे-धीरे अपने आप ही हो गया उन्होंने ऐसा सोच समझकर नहीं किया। उन्हें लगने लगा कि उनका शरीर अब इस तरह का भोजन नहीं करना चाहता। बता दें इसी बदलाव को व्यक्ति के भीतर अयम के लक्षणों का अंत कहते है।
दिवाली और इस दिन ज्यादा खाने के टॉपिक पर वापस आते हैं। आज मैं आपको बताने वाला हूं कि कैसे वीरासन योग करते हैं। यह आसन दिन के किसी भी समय किया जा सकता है। यहां तक कि भोजन करने के बाद भी इस आसन को करने से कोई नुकसान नहीं होता है। यह पाचन क्रिया को अच्छा करने के साथ शरीर को कई अन्य लाभ भी पहुंचाता है।
दिवाली और इस दिन ज्यादा खाने के टॉपिक पर वापस आते हैं। आज मैं आपको बताने वाला हूं कि कैसे वीरासन योग करते हैं। यह आसन दिन के किसी भी समय किया जा सकता है। यहां तक कि भोजन करने के बाद भी इस आसन को करने से कोई नुकसान नहीं होता है। यह पाचन क्रिया को अच्छा करने के साथ शरीर को कई अन्य लाभ भी पहुंचाता है।
अगर आप इस आसन को करते समय अपने टखनों में दर्द महसूस करने की वजह से पैरों को नहीं मोड़ पा रहे हो तो मैट को मोड़कर अपने टखनों के नीचे रख लें। ऐसा करने से पैरों में दर्द नहीं होगा।
अगर ऐसा करने के बाद भी आपके घुटनों में दर्द हो रहा है तो आप घुटनों के नीचे एक गद्दा रख सकते हैं। मैट की जगह आप इस गद्दे पर बैठकर आसन करें। इसके अलावा एक पतली दरी को मोड़कर अपनी जांघों के नीचे दबाकर रख लें।