उत्तर प्रदेश में योगी का एक साल: पर प्रदेश को नहीं मिला फायदा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के नतीजों में बीजेपी को 403 में से 312 सीटों पर जीत के साथ प्रचंड बहुमत मिला. लंबे अर्से के बाद किसी पार्टी को इतना बहुमत मिला. वह भी ऐसी पार्टी को जो केंद्र में सत्तारूढ़ है. ऐसी स्थिति में आर्थिक विकास की दिशा में अन्य राज्यों से पिछड़ चुके उत्तर प्रदेश को तेज रफ्तार दौड़ने से रोकने वाली सभी राजनीतिक बाधाएं दूर हो गईं.
इस प्रचंड बहुमत के बाद बीजेपी ने राज्य के तीव्र विकास के लिए थ्री सीएम (1 मुख्यमंत्री और 2 उपमुख्यमंत्री) का फार्मूला तय किया. योगी आदित्यनाथ को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया और केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा उपमुख्यमंत्री बने. इस थ्री सीएम वाली सरकार को एक साल पूरा हो रहा है लिहाजा यह जायजा लेने का सही वक्त है कि बीजेपी का ये फॉर्मूला कितना कारगर साबित हुआ.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के थ्री सीएम एक्सपेरिमेंट को इसलिए भी खास माना गया कि जहां देश के सबसे बड़े राज्य में प्रशासनिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह फार्मूला बेहद कारगर होगा. वहीं तीन मुख्यमंत्रियों के फॉर्मूले से बीजेपी राज्य में जातीय गणित को भी बैलेंस कर सकेगी.
केशव प्रसाद मौर्य अन्य पिछड़ी जातियों को साधकर रखेंगे तो दिनेश शर्मा से राज्य में ब्राह्मणों को साधने की उम्मीद रखी गई. वहीं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जाति के आधार पर बीजेपी के दूसरे क्षत्रिय नेता बने जिसने राज्य की कमान संभाली, लेकिन उन्हें जाति से परे रखते हुए राज्य में हिंदुत्व का संदेश देने की उम्मीद उनसे रखी गई.
राज्य में जातीय समीकरण को संभालने में थ्री सीएम फॉर्मूला कितना कारगर रहा यह तो अगले साल होने वाले लोकसभा उपचुनावों के नतीजों से तय होगा. लेकिन राज्य में अच्छे दिन लाने में योगी सरकार कितनी सफल हुई है इसका आकलन किया जा सकता है.
हाल में उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के बाद लखनऊ में संघ की एक महत्वपूर्ण बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल की समीक्षा बैठक हुई. मुख्यमंत्री आवास पर हुई इस बैठक में योगी और उनके दोनों उपमुख्यमंत्रियों के साथ-साथ राज्य पार्टी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय और आरएसएस से दत्तात्रेय होसबोले और कृष्णा गोपाल शरीक हुए.
सत्ता के गलियारों में यह भी दावा है कि एक साल के दौरान उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कार्यालय राज्य में सुचारू व्यवस्था के लिए अपनी टीम का गठन पूरा नहीं कर पाया है. इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि जुलाई 2017 में राज्य में लागू जीएसटी लागू करने की जिम्मेदारी खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के जिम्मे रही. लेकिन इस काम के लिए लगे विभाग में योगी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद कोई फेरबदल नहीं किया है. लिहाजा इस विभाग का कामकाज एक साल बीतने के बाद भी उन्हीं अधिकारियों के जिम्मे है जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में नियुक्त किया गया था.
संघ की बैठक के दौरान दूसरा अहम मुद्दा अफसरशाही का रहा. प्रदेश के प्रशासनिक हल्कों में भी दावा किया जाता है कि योगी राज में दरअसल आईएएस राज चल रहा है. जहां शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को जातीय बैलेंस और सुचारू प्रशासन के नाम पर पृथककर पेश किया गया है. वहीं वास्तविकता यह भी है कि राज्य में मुख्यमंत्री योगी सर्वोपरि हैं और सुचारू प्रशासन में थ्री सीएम फॉर्मूले का कोई योगदान नहीं है. यह इसी वास्तविकता का असर है कि सरकार में पार्टी की कोई सुनवाई नहीं है, मंत्रालयों में अफसरों का वर्चस्व है और संघ तक लगातार इस गतिरोध की रिपोर्ट पहुंच रही है.
लिहाजा, ऐसा स्थिति में कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में थ्री सीएम फॉर्मूला यदि सुचारू प्रशासन के लिए लाया गया है तो फिलहाल तो ये अपने मकसद में कामयाब नहीं होता दिख रहा है.