देहरादून : शिवालिक की पहाड़ी पर बसे रानीखेत के उच्च हिमालयी इलाके में भगवान शिव के प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल के अंकुर फूटे हैं। इस अभिनव प्रयोग को अंजाम दिया है वन अनुसंधान केंद्र कालिका (रानीखेत) के शोध अधिकारियों ने। तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर केदारनाथ, तुंगनाथ, वेदिनी बुग्याल आदि से एकत्र बीज पहले बदरीनाथ फिर 1800 मीटर की ऊंचाई पर कालिका रेंज में बोए गए। यह बीज अब अंकुरित होकर छोटे पौधों की शक्ल ले चुके हैं। इस सफल प्रयोग के बाद शोध अधिकारी इन नन्हे पौधों की नियमित निगरानी और उच्च हिमालय सरीखा वातावरण देने में जुट गए हैं। ताकि शिवालिक की गोद में बदरीनाथ की तरह ‘ब्रह्मवाटिका’ विकसित कर विलुप्त हो रहे उत्तराखंड के राज्यपुष्प ब्रह्मकमल (साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा) के वजूद को बचाने में अहम भूमिका निभाई जा सके। बीज लगाने के अलावा शोध अधिकारी राजेंद्र प्रसाद जोशी ने फूलों की घाटी से ब्रह्मकमल के पौधे की जड़ (राइजोम) लाकर कालिका में लगाई। इसमें नई कलियां और सात आठ गुच्छे बनने से माना जा रहा कि राज्य पुष्प के लिए रानीखेत की आबोहवा माकूल है। करीब डेढ़ वर्ष तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों और रानीखेत की मिट्टी, जलवायु, मौसम और तापक्रम का गहन अध्ययन के बाद रेंज में अभिनव प्रयोग का निर्णय लिया।
बदरीनाथ में इसके 400 बीज बोए गए थे। जो कि अब पौधे के रूप में तैयार हैं। अक्टूबर में कालिका बीज रेंज के राय स्टेट स्थित पौधालय में प्रयोग के तौर पर 10 बीज लगाए गए। डेढ़ दो महीने के भीतर इन अंकुरित बीजों ने भी पौधे का रूप ले लिया है। इसे बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा। उत्तराखंड में बदरीनाथ धाम, फूलों की घाटी जोशीमठ, केदारनाथ, तुंगनाथ, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदिनी बुग्याल, पिंडारी आदि जगहों पर साल में एक बार यह पुष्प खिलता है। वैश्विक तापवृद्धि की तपिश कहें या नकारात्मक मानवीय गतिविधियों से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ रहा प्रदूषण, साल दर साल तेजी से पिघलते ग्लेशियर और जलवायु परिवर्तन से ब्रह्मकमल के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जानकार बताते हैं कि बद्रीनाथ धाम मंदिर समिति ब्रह्मकमल के संरक्षण की मांग लगातार उठा रही है। बुग्यालों में आवाजाही पर रोक जरूर लगी है, लेकिन आस्था के नाम पर बेहिसाब दोहन न रुकने से राज्य पुष्प संकट में है। राजेंद्र प्रसाद जोशी, (प्रभारी बीज अनुसंधान रेंज कालिका) का कहना है कि इस प्रयोग ने हमें उत्साहित तो किया है, लेकिन सालभर तक उच्च हिमालयी वातावरण देकर ब्रह्मकमल के पौधों को जिंदा रखना हमारे लिए बड़ी कामयाबी होगी।