दस्तक-विशेष

उम्मीद की गेंद से खेलेगी हाकी टीम

ओम प्रकाश शर्मा
hockey teamहाकी के मैदान पर भारतीय टीम जब मुकाबले के लिए मैदान में उतरती है तो देश के खेलप्रमियों के दिमाग में दो बातें रहती हैं। एक हम पदक तालिका में किस पायदान पर रहेंगे और दूसरा यह कि पाकिस्तान के साथ मैच में क्या हम इस पड़ोसी मुल्क की हाकी टीम को शिकस्त दे पाएंगे? यह सवाल इसलिए उठने लगे हैं कि भारतीय हाकी टीम अब किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में पहले तीन स्थान तक भी नहीं पहुंच पाती है। लेकिन बीते जून महीने में लंदन में चौंपियन्स ट्रॉफी में रजत पदक जीतने के कारण भारतीय पुरुष हॉकी टीम एफआईएच की ताजा विश्व रैंकिंग में दो पायदान ऊपर पांचवें स्थान पर पहुंच गयी है। भारतीय टीम ने टूर्नामेंट में शानदार हॉकी का प्रदर्शन किया जिससे वह बेल्जियम और अर्जेंटीना को पीछे छोड़कर विश्व में शीर्ष पांच देशों में पहुंच गयी है। विश्व कप चौंपियन और चैंपियन्स ट्राफी विजेता ऑस्ट्रेलिया पुरुष रैंकिंग में शीर्ष पर बना हुआ है जबकि ओलंपिक और विश्व चौंपियन नीदरलैंड महिला वर्ग में चोटी पर है। पुरुषों में चोटी के तीन स्थलों में कोई बदलाव नहीं आया है। इसमें नीदरलैंड दूसरे और जर्मनी तीसरे स्थान पर है। इंग्लैंड चौथे स्थान पर बना हुआ है। महिला रैंकिंग में अर्जेंटीना चौंपियन्स ट्रॉफी में जीत के दम पर दूसरे स्थान पर बना हुआ है और उसने नीदरलैंड से अंतर भी कम कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर बने हुए हैं लेकिन अमेरिका अब चौथे स्थान पर काबिज हो गया है।
भारतीय महिला हॉकी टीम की रैंकिंग में कोई बदलाव नहीं हुआ है और वह अपने 13वें स्थान पर कायम है। एफआईएच विश्व रैंकिंग का अगला अपडेट ओलंपिक खेल 2016 के समापन के बाद जारी किया जाएगा। किसने सोचा था कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोई मुकाबला पेनाल्टी शूट आउट तक जाएगा। यह टीम तो हमें बड़े-बड़े अंतर से हराती रही है लेकिन चौंपियंस ट्रॉफी का फाइनल ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐसा मुकाबला लेकर आया, जिसकी उम्मीद भारतीय हॉकी के बड़े से बड़े समर्थक ने नहीं की थी। भले ही मुकाबला हारा, लेकिन पहली बार चौंपियंस ट्रॉफी का रजत पदक जीतना हर लिहाज से बहुत बड़ी उपलब्धि है। अब दुआ यही है कि कोई अचानक यह सवाल न उठा दे कि ऑस्ट्रेलिया तो बेस्ट टीम के साथ आई ही नहीं थी। भारतीय हॉकी टीम जिस दिन अपने से बेहतर रैंकिंग वाली टीम को हराती है, मेरी नजरें सोशल मीडिया पर होती हैं। एक सवाल आने की उम्मीद होती है- क्या सामने वाली टीम अपनी बेस्ट टीम लेकर नहीं आई? चैंपियंस ट्रॉफी में भारत ने जर्मनी से पहला मैच ड्रॉ खेला और दूसरे में ब्रिटेन को हरा दिया। सोशल मीडिया पर सवाल- क्या सामने वाली टीमें अपने बेस्ट प्लेयर्स के साथ आई हैं? फाइनल की सुबह नींद से उठते ही पहला फोन सुना। सवाल वही -बाकी टीमें तो बेस्ट खिलाड़ियों के साथ नहीं आईं ना? हम भरोसा नहीं कर पाते कि हमारी टीम बेस्ट खिलाड़ियों के साथ आई टीमों को हरा सकती है। कुछेक और सवाल हॉकी से जुड़े होते हैं। हमारी टीम फिटनेस में कब यूरोपियन टीमों के बराबर पहुंचेगी? हम तो आखिरी मिनट में थक जाते हैं, कब सुधरेंगे? अभी चौंपियंस ट्रॉफी में सिल्वर जीता है। ऐसे में शायद अभी लोग फिटनेस पर सवाल न करें लेकिन बाकी बातें जैसे भारतीय हॉकी के साथ जुड़ चुकी हैं। 36 साल बाद किसी बड़े टूर्नामेंट का फाइनल खेलने और 34 साल बाद चौंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीतने की खुशी पर बात करने से पहले उन सवालों को देख लेते हैं। वे सवाल, जो हमेशा टीम इंडिया के साथ रहे हैं।
हम भारतीयों को आंकड़ों में बड़ी रुचि होती है इसलिए आंकड़ों के जरिए ही बात की जाए। दिसंबर 2014 में चौंपियंस ट्रॉफी हुई थी भुवनेश्वर में। उसके बाद अब लंदन में हुई है। हम इन दोनों सीरिज में टीमों की तुलना कर लेते हैं। यह चौंपियंस ट्रॉफी की वे पांच टीमें हैं, जो ओलिपिंक खेलेंगी। अकेले भारतीय टीम है जिसका प्रति खिलाड़ी मैच पिछली बार से कम है। जर्मनी के अलावा अकेली यही टीम है जिसमें सबसे ज्यादा नए खिलाड़ी हैं। लेकिन जर्मनी पिछली बार कई अनुभवी खिलाड़ियों के बगैर आई थी, जो इस बार हैं। जबकि कई अहम खिलाड़ी हमारी टीम में नहीं हैं इसलिए अब उस मानसिकता से बाहर निकलने का वक्त है, जिसमें भारत की जीत के लिए दूसरों को श्रेय दिया जाता था। सवाल यह है कि इस जीत को कितनी अहमियत दी जाए। यकीनन ओलिंपिक से ठीक पहले ज्यादातर टीमें अपना बेस्ट नहीं खेलतीं लेकिन यब बात तो भारत के भी साथ है। ऐसे में चौंपियंस ट्रॉफी अपने साथ यह संदेश लाई है कि अब ऑस्ट्रेलिया के अलावा बाकी टीमों को हराने की क्षमता भारत रखता है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी हमने दूरी कम की है। 2014 में नौ मैचों में तीन जीते, छह हारे। पिछले साल पांच मैचों में दो जीत और दो हार रहीं। बेहतर है, लेकिन फर्क अब भी काफी ज्यादा है। बाकी टीमों से कम हुई दूरी पिछले सात-आठ साल की मेहनत का नतीजा है। दरअसल, बेहतरी का सिलसिला होजे ब्रासा के समय शुरू हुआ। उनके जाने के बाद माइकल नॉब्स कमजोर कोच थे लेकिन फिटनेस ट्रेनर डेविड जॉन ने बेहतरीन काम किया। उस समय के बाद जितने लोग मानते हैं कि फिटनेस में भारतीय टीम बहुत पीछे है, वह शायद 80 और 90 के दशक की हॉकी से बाहर नहीं आए हैं। माइकल नॉब्स के ही कार्यकाल के दौरान रोलंट ओल्टमंस हाय परफॉर्मेंस डायरेक्टर के तौर पर आ गए थे फिर चीफ कोच नॉब्स की जगह टेरी वॉल्श आए, टीम और सुधरी। पॉल वान आस को ज्यादा समय नहीं मिला। उनके जाने के बाद ओल्टमंस ने पूरी तरह टीम की कमान संभाल ली, वही चीफ कोच हो गए। ऐसे में वह सिस्टम नहीं बिगड़ा, जो नए कोच आने से कई बार बिखर जाता है।
टीम को एक्सपोजर मिला। फेडरेशन का साथ मिला। हॉकी इंडिया लीग का फायदा मिला। इन सबने आज भारतीय टीम को वहां पहुंचाया है, जहां कम से कम एशियाई टीमें उससे बहुत पीछे दिखती हैं। ऑस्ट्रेलिया के अलावा दुनिया की बाकी शक्तिशाली टीमों के वह आसपास नजर आती है। चौंपियंस ट्रॉफी का पदक इसी मेहनत का नतीजा है। लेकिन इस कामयाबी का मतलब यह नहीं है कि हमारा ओलिंपिक में पदक जीतना पक्का हो गया है। अभी टीम को बहुत काम करना है। उम्मीद है कि इस टूर्नामेंट में नहीं खेले सरदार सिंह और अनफिट बीरेंद्र लाकड़ा के आने से मिड फील्ड सुधरेगा। डिफेंस ने अच्छा खेल दिखाया है। हालांकि यहां भी पेनाल्टी कॉर्नर देने में हमने जो उदारता दिखाई है, उसे सुधारने की जरूरत है। श्रीजेश पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता भारी पड़ सकती है। फॉरवर्ड लाइन ने कमजोरी दिखाई है। हमें जीतने के लिए गोल करना जरूरी है। साथ ही, पेनाल्टी कॉर्नर भी लेना जरूरी है। इन दोनों मामलों में कमी दिखाई दी है। यहां सुधार करके ही ओलिंपिक में पदक आएगा।
रियो ओलंपिक में बाकी सभी टीमें चैंपियंस ट्रॉफी के मुकाबले बेहतर खेलेंगी। लंदन के मुकाबले रियो में टीमों का प्रदर्शन काफी कुछ अलग होगा। ऐसे में चैंपियंस ट्रॉफी की कामयाबी रियो में मेडल की गारंटी नहीं है। यह सिर्फ वो प्रक्रिया है, जो कुछ साल पहले शुरू हुई थी जिसके तहत 2014 में 16 साल बाद हमने एशियाड का स्वर्ण जीता। 2015 में वल्र्ड हॉकी लीग में कांस्य के साथ 33 साल बाद किसी एफआईएच टूर्नामेंट में पदक जीता। और अब, चौंपियंस ट्रॉफी के इतिहास में पहली बार रजत जीता। इसे फ्लूक या दूसरों के कमजोर होने की वजह से मिली कामयाबी न बताएं। यह कामयाबी बड़ी मेहनत से आई है। अरसे बाद आयी है। ल्ल

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