हरिद्वार जिले के रुड़की में एक स्कूल ऐसा भी है, जो बच्चों से फीस नहीं लेता है। इतना ही नहीं स्कूल बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्च भी स्वयं वहन कर रहा है।
रुड़की: बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए हर अभिभावक फीस के रूप में सालाना मोटी रकम स्कूल-कॉलेज में जमा कराते हैं। लेकिन शिक्षानगरी में एक ऐसा स्कूल भी है जो अपने विद्यार्थियों से फीस लेने की बजाए उनकी लिखाई-पढ़ाई का खर्चा भी स्वयं वहन करता है।
ऐसा संभव हो पाया दूसरों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाले सुधीर कुमार शर्मा के प्रयासों की बदौलत। पिछले आठ साल से वे आर्थिक रूप से कमजोर, अनाथ व दिव्यांग बच्चों के लिए इस निश्शुल्क विद्यालय का संचालन कर रहे हैं।शहर के अंबर तालाब में चलाए जा रहे डिवाइन स्कूल के संस्थापक 32 वर्षीय सुधीर कुमार शर्मा उन बच्चों के लिए किसी देवदूत से कम नहीं, जो शिक्षा तो पाना चाहते हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इसकी अनुमति नहीं देती। इस समय डिवाइन स्कूल में प्री फस्र्ट से लेकर बारहवीं कक्षा तक के 172 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनमें लगभग समान संख्या में छात्र व छात्राएं हैं। स्कूल में लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई आदि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इसके अलावा गरीब परिवार की लड़की शादी होने पर उसकी आर्थिक मदद भी की जाती है। आदर्श नगर निवासी सुधीर बताते हैं कि उनके स्कूल में जो बच्चा आर्थिक रूप से सबसे अधिक संपन्न है, उसके माता-पिता बुध बाजार में स्टाल लगाते हैं। इसके अलावा झुग्गी-झोपड़ी, कूड़ा बीनने वाले, दिव्यांग और अनाथ बच्चे विद्यालय में पढ़ते हैं। हां, विद्यालय में दाखिला पाने के लिए एक शर्त जरूर है कि बच्चे को वास्तव में पढऩे का इच्छुक होना चाहिए। बताया कि प्रत्येक वर्ष वे 20 बच्चों को विद्यालय में दाखिला देते हैं।
सुधीर बताते हैं कि उनका चार भाइयों का संयुक्त परिवार है। परिवार में कोई शिक्षक है, कोई आइआइटी रुड़की में सेवा दे रहा तो कोई एनआइएच रुड़की में। परिवार की मदद और कई समाजसेवी संस्थाओं व दानदाताओं के सहयोग से वे इस स्कूल का संचालन कर रहे हैं। यहां दाखिला लेने वाले बच्चों को दो-दो ड्रेस, कॉपी-किताब, मोजे, स्वेटर आदि स्कूल से ही उपलब्ध करवाए जाते हैं।
सेवा में समर्पित कमाई
सुधीर सुबह स्कूल को समय देते हैं तो शाम के वक्त क्लीनिक चलाते हैं। उन्होंने रैकी थेरेपी में प्राणिक हीलिंग, थॉट्स थेरेपी आदि में कई कोर्स किए हैं। बताते हैं कि शिक्षकों के वेतन और नौनिहालों के खर्चे के लिए उन्हें हर माह लगभग 80 हजार रुपये की जरूरत होती है। ऐसे में कई बार उन्हें खुद की कमाई का सौ फीसद स्कूल पर खर्च करना पड़ता है। लेकिन, इसका उन्हें कोई अफसोस नहीं है। बल्कि इससे उन्हें आत्मसंतुष्टि ही होती है।
30 बच्चों से शुरू किया था स्कूल
सुधीर ने वर्ष 2008 में उन्होंने दो कमरों में 30 बच्चों से स्कूल की शुरूआत की थी। आज स्कूल में 17 कमरों के अलावा एक कंप्यूटर लैब भी है। वर्तमान में उनके पास प्रिंसिपल के अलावा 12 शिक्षकों का स्टाफ है।