एक खूबसूरत लड़की की वजह से डॉक्टर्स की 30 साल की मेहनत पर फिर गया पानी
दुनिया के पहले हेड ट्रांसप्लांट यानी एक जिंदा इंसान के सिर को एक दूसरे शरीर में लगाने का एक्सपेरिमेंट फिलहाल रद्द हो गया है। इसके पीछे की वजह भी बेहद अजीब है। जिस शख्स का सिर उसके निर्जीव शरीर से निकालकर दूसरे शरीर में लगाया जाना था उसने ऑपरेशन के लिए इनकार कर दिया। इनकार के पीछे की वजह बताते हुए इस शख्स ने कहा कि उसे एक लड़की से प्यार हो गया और वो फिलहाल अपने पुराने शरीर के साथ ही जीना चाहता है। 30 साल की मेहनत पर फिरा पानी?
दरअसल इटली के जानेमाने न्यूरोसर्जन सर्गियो कैनावेरो इस ऐतिहासिक हेड ट्रांसप्लांट को अंजाम देने वाले थे। उनका दावा था कि उन्होंने 30 साल इस पर रिसर्च की है और अब मेडिकल साइंस की मदद से वो दुनिया का पहला ह्यूमन हेड ट्रांसप्लांट करने के लिए तैयार हैं।
ये ट्रांसप्लांट रूस के रहने वाले 33 साल के वालेरी स्पिरीडोनोव पर होना था। वालेरी एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं और उनका निचला शरीर किसी काम का नहीं बचा था। उन्होंने इस ट्रांसप्लांट में वॉलंटियर बनने के लिए सहमति दी थी।
वालेरी स्पिरीडोनोव ने सोशल मीडिया पर फोटो डालकर बताया कि वो अमेरिका आ गए हैं। उन्हें अनास्तासिया नाम की लड़की से प्यार हो गया है। दोनों ने एक बच्चे को जन्म भी दिया है, जिसके बाद वो अब हेड ट्रांसप्लांट में हिस्सा नहीं लेना चाहते। इसके बाद न्यूरोसर्जन सर्गियो एक चीनी आदमी के साथ ये एक्सपेरिमेंट पूरा करने की बात कर रहे हैं।
ट्रांसप्लांट में वालेरी का सिर काटकर उनकी बॉडी से अलग किया जाना था और उनकी ही कद काठी और दूसरी अनुकूल विशेषताओं वाले किसी ब्रेन डेड व्यक्ति की बॉडी में लगाया जाना था। डॉ. सर्गियो ने ह्यूमन हेड ट्रांसप्लांट के इस पूरे प्रोसीजर को दो भागों में बांटा था। पहले प्रोसीजर को उन्होंने नाम दिया हेवन HEAVEN (HEad Anastomosis VENture) और उसके बाद के प्रोसीजर का नाम था GEMINI (जिसमें स्पाइनल कॉर्ड को ट्रांसप्लांट किया जाता)
इस बेहद रेयर ट्रांसप्लांट को पूरा करने के लिए दो टीम बनाई जानी थीं, जो डोनर और रिसीवर पर एक साथ काम करतीं। दोनों पेशेंट की गर्दन में गहरा चीरा लगाकर आर्टरीज, नसें और स्पाइन को बाहर निकाला जाता। जिस तरह बिजली के तारों को जोड़ा जाता है उसी तरह मसल्स को लिंक करने के लिए कलर कोड बनाए जाते। पेशेंट्स की गर्दन काटने के लिए एक करोड़ 30 लाख रुपए की कीमत वाली डायमंड नैनोब्लेड का इस्तेमाल किया जाना था। यह नैनोब्लेड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस ने बनाई थी। दोनों पेशेंट की गर्दन कट जाने के घंटे भर के अंदर ही वॉलंटियर की गर्दन को डोनर के धड़ में जोड़ने की प्रोसेस शुरु की जाती।
जब डोनर का धड़ शरीर से अलग रहता उसे आर्टिफिशियल तरीक से खून पंप किया जाता। खून कितना पंप करना है ये बॉडी के बीपी पर आधारित रहता। इससे सिर शरीर से हटने के बाद भी जिंदा रहता। इसके बाद प्लास्टिक सर्जन की टीमें स्किन को सिलने और जोड़ने का काम करतीं। ऑपरेशन पूरा होने के बाद नए शरीर को 3 दिन तक सर्वाइकल कॉलर लगाकर आईसीयू में रखा जाता।
साल के अंत में होने वाले इस ऑपरेशन काे तीन दिन में होना था। जबकि इसपर संभावित खर्च करीब 135 करोड़ रु था। इसके लिए 150 लोगों की टीम बनाई जानी थी, जिसमें डॉक्टर्स, नर्सेस, टेक्नीशियन्स, सायकोलॉजिस्ट्स और वर्चुअल रिएलिटी इंजीनियर्स शामिल होते। अगर ये ऑपरेशन होता और सफल होता तो ये मेडिकल साइंस के क्षेत्र में किसी चमत्कार से कम नहीं होता। ये ठीक उस तरह होता जिस तरह हमारे पुराणों में भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर प्लांट करने की बात कही जाती है। इससे कई लोगों को नया जीवन मिलता। हालांकि, न्यूरोसर्जन सर्गियो इसे जल्द ही पूरा करने का दावा कर रहे हैं।