एक बालक की मिट्टी व फूस के कच्चे घर से शिक्षा जगत की ऊचाइयों पर पहुँचने की कहानी
बालक जगदीश का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के ग्राम बरसौली में एक गरीब खेतिहर किसान परिवार में 10 नवम्बर 1936 को हुआ। उनकी माता स्व. श्रीमती बासमती देवी एक धर्म परायण महिला थीं। उनके पिता स्व0 श्री फूलचन्द्र अग्रवाल जी गाँव के लेखपाल थे। बच्चे के सिर से माँ का साया बहुत कम उम्र में उठ गया। इस बालक को सर्वप्रथम समाज सेवा की शिक्षा अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चाचा श्री प्रभुदयाल जी से मिली। चाचाजी महात्मा गांधी के परम अनुयायी थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्होंने अनेक बार जेल यात्रायें की। उन दिनों जगदीश अन्य बच्चों को लेकर आजादी के नारे लगाते हुए और आजादी के गीत गाते हुए अपने गाँव में प्रभात फेरियां निकाला करते थे। महात्मा गांधी की हत्या से व्याकुल होकर इस कक्षा 6 के बालक ने अपना नाम जगदीश प्रसाद अग्रवाल से जगदीश गांधी करने का प्रार्थना पत्र अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को दिया। साथ ही इस बालक ने जीवन पर्यन्त गांधी जी की शिक्षाओं पर चलने का संकल्प लिया। स्कूली अवस्था में इस किशोर बालक ने ‘अच्छे विद्यार्थी बनो’ आन्दोलन सफलतापूर्वक चलाया। युवकों में जोश भरने के लिए ‘उठो जवानो’ अखबार निकाला।
इस युवक जगदीश ने दहेज तथा सादगी से भरा विवाह लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा भारती से किया। दहेज में कन्या पक्ष से गीता की पुस्तक स्वीकार की। 300 रूपये उधार लेकर अपनी विचारशील एवं शिक्षित धर्मपत्नी के साथ मिलकर सिटी मोन्टेसरी स्कूल की स्थापना लखनऊ में 5 बच्चों से छोटी सी किराये की जगह पर की। इस अत्यधिक जुनूनी तथा उत्साही युवक जगदीश गांधी ने वर्ष 1974 में लंदन में आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बहाई धर्म स्वीकार किया। बहाई धर्म के अनुयायी का जीवन अपनी आत्मा के विकास, मानव मात्र की सेवा तथा हृदयों की एकता के लिए होता है। बहाई धर्म का अनुयायी जिस देश में वास करता है उसकी सरकार के प्रति वफादार होता है। बहाई धर्म के अनुयायी को राजनीति चर्चाओं में भाग लेने की मनाही है। बहाई धर्म अपनाने के बाद इस युवक ने राजनीति से संन्यास सदैव के लिए लेकर अपना पूरा चिन्तन बच्चों की शिक्षा में लगा दिया।
वर्तमान में देश का सबसे सर्वश्रेष्ठ परीक्षाफल देने वाले इस सिटी मोन्टेसरी स्कूल में 3000 टीचर्स/कार्यकर्ता पूरे मनोयोग से 55,000 बच्चों की शिक्षा का कार्य कर रहे हैं। विश्व में प्रसिद्ध शिक्षाविद् तथा विश्व एकता प्रबल समर्थक के रूप विख्यात डा. जगदीश गांधी के वर्तमान में देश में सर्वाधिक 15 टीवी चैनलों पर शिक्षा एवं अध्यात्म विषय पर व्याख्यान रोजाना प्रातः 5.30 बजे से लेकर रात्रि 10.00 बजे तक प्रसारित होते हैं। आपके नेतृत्व में विश्व के बच्चों के लिए प्रतिवर्ष 30 अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक आयोजन लखनऊ में होते हैं। इन आयोजनों के द्वारा विश्व के प्रतिभागी बच्चों के दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाने के साथ विश्व एकता तथा विश्व शान्ति के विचारों को सारे विश्व में फैलाया जा रहा है। आपके संयोजन में लखनऊ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर 18वां मुख्य न्यायाधीशों का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 10 से 14 नवम्बर 2017 तक लखनऊ में आयोजित होगा। मुख्य न्यायाधीशों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से विश्व के राजनैतिज्ञ नेत्त्व के लिए ऐसी सीढ़ी अर्थात जनमत तैयार कर रहे हैं जिस पर चढ़कर संसार के दो अरब चालीस करोड़ बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए संसार के राजनैतिज्ञियों द्वारा एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व संसद, विश्व सरकार तथा वर्ल्ड कोर्ट ऑफ जस्टिस का गठन समय रहते किया जा सके। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं?
अप्रैल 2017 के प्रथम सप्ताह में घोषित अपनी सम्पत्ति के विवरण में आप दोनों डा. गांधी तथा श्रीमती गांधी ने यह घोषित किया है कि:-1. हमारे पास कोई व्यक्तिगत भूखण्ड या निजी घर नहीं है। मैं 12 स्टेशन रोड के किराये के आवास में अपने परिवार के साथ विगत 56 वर्षों से निवास कर रहा हूँ।2. मेरे पास कोई विदेशी मुद्रा, सोना, चांदी, जेवरात तथा लॉकर कहीं भी नहीं है।3. मेरा कोई चालू खाता किसी बैंक में नहीं है। न ही कोई फिक्स डिपाजिट ही है और न ही कभी रहा है। आपने उत्तर प्रदेश की पांच वर्षों तक विधायक रहकर भी जन सेवा व समाज सेवा की है। इस अवधि में या इसके पहले या बाद में भी आपने कभी भी भारत सरकार या प्रदेश सरकार से कोई आर्थिक सहायता या अन्य लाभ प्राप्त नहीं किया। आपने सदैव बच्चों की शिक्षा के माध्यम से ही समाज की सेवा के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया। आप पूरी कृतज्ञता से इस बात को स्वीकार करते हैं कि आपके आशीर्वाद एवं सहयोग के कारण ही हम संस्था को इन ऊँचाइयों तक लाने में सफल रहे हैं।
इस बालक आज के डा. जगदीश गांधी के हौसले के लाजवाब जज्बे को नीचे दी शायरियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जा सकता है:-
लाजवाब है मेरी जिंदगी का फसाना, कोई सीखे मुझसे हर पल मुसकराना।
पर कोई मेरी हंसी को नजर न लगाना, बहुत दर्द सहकर सीखा है हम ने मुसकराना।
ये जिंदगी किसी मंजिल पे रूक नहीं सकती, हर इक मकाम से आगे कदम बढ़ा के जियो।
डर मुझे भी लगता है फांसला देखकर, पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर।
खुद ब खुद मेरे नजदीक आती गई, मेरी मंजिल मेरा हौंसला देख कर।।
खुद यकीं होता नहीं जिनको अपनी मंजिल का, उनको राह के पत्थर कभी रास्ता नहीं देते।
– जय जगत –
(प्रस्तुति: प्रदीप कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकार )