एड़ी में दर्द न करें नजरअंदाज, भुगतना पड़ सकता है बड़ा खमियाजा
अक्सर हम पैरों में लगी हल्की-फुल्की चोट या दर्द को सामान्य मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसा करना कई बार गंभीर भी हो सकता है क्योंकि कुछ मामलों में पैरों का दर्द बढ़कर घुटनों व कमर को भी प्रभावित कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हड्डियों की परेशानियों में से 25-30 प्रतिशत समस्याएं केवल पैरों व एडिय़ों की होती हैं।
पैर या एड़ी मेंं फे्रक्चर, दर्द, लिगामेंट इंजरी, पैरों की विकृति और फ्लैट फुट आदि। डायबिटीज, स्पोंडिलाइटिस, आर्थराइटिस, ओस्टियोपोरोसिस और पोलियो से पीडि़त मरीजों को पैर व एड़ी की समस्याएं अधिक होती हैं। पैरों और एडिय़ों की ज्यादातर समस्याएं चोट के कारण होती हैं। इन परेशानियों से जुड़े कुल मामलों में लगभग 50 प्रतिशत फे्रक्चर व लिगामेंट इंजरी के होते हैं।
आर्थराइटिस
पैर की अंगुलियों की हड्डियां काफी छोटी होती हैं। आर्थराइटिस होने पर इनमें दर्द अधिक होता है जिससे चलने-फिरने में दिक्कत होती है। ऐसे में पैर व एडिय़ों की चोट की बिल्कुल अनदेखी न करें।
वजन नियंत्रित रखें, जूते-चप्पल खरीदते समय गुणवत्ता का खयाल रखें। अधिक टाइट या लूज फुटवियर न पहनें। डायबिटीज में शुगर लेवल को नियंत्रित रखें। आर्थराइटिस की समस्या है तो समय से दवाएं लें। तकलीफ होने पर विशेषज्ञ से संपर्क करें।
डायबिटीज
पैरों व एडिय़ों की तकलीफ में डायबिटीज भी बड़ा खतरा है। इन मरीजों को पैर या एड़ी में चोट/ जलने/ कटने पर फौरन डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसके अलावा अधिक ठंडे या गर्म पानी का प्रयोग पैरों और एडिय़ों पर करने से बचें क्योंकि डायबिटीज में इन अंगों में संवदेना कम हो जाती है जिससे जलने या सूजन की आशंका रहती है।
फ्लैट फुट
यह तकलीफ दो कारणों से होती है। एक, जन्मजात और दूसरी, वयस्क होने पर किसी बीमारी या चोट के कारण। इससे पैरों में दर्द रहता है और जूते पहनने में दिक्कत होती है, चलने में संतुलन नहीं बन पाता व गिरने की आशंका रहती है।
उपचार
पैरों या एड़ी की समस्या का इलाज दो तरह से होता है। सबसे पहले दवाएं, फिजियोथैरेपी और सप्लीमेंट्री डाइट देकर इलाज किया जाता है। आराम न मिलने या समस्या गंभीर होने की स्थिति में सर्जरी की जाती है। खराब हो चुकी एड़ी को कृत्रिम अंग लगाकर प्रत्यारोपित भी किया जाता है।
24 घंटे में 24 मिनट व्यायाम करें
व्यायाम तन-मन दोनों को स्वस्थ रखता है। इसमें हड्डियां भी शामिल हैं। अगर आप युवावस्था से ही व्यायाम करते हैं तो 24 घंटे में 24 मिनट या आधा घंटा भी ठीक है। लेकिन आप 50 वर्ष के बाद व्यायाम शुरू करते हैं तो रोजाना इसे कम से कम एक घंटे का समय दें। इसमें योग, एरोबिक्स, टहलना और वेट लिफ्टिंग आदि शामिल हो सकती है। योग और एरोबिक्स से जोड़ों में लचीलापन, टहलने से हृदय व फेफड़े स्वस्थ रहते हैं जबकि वेट लिफ्टिंग से मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
पेंसिल हील पहनने से बचें
पेंंसिल हील से पंजे, एड़ी और घुटने में दर्द होने लगता है। गिरने की आशंका भी ज्यादा रहती है। लड़कियां दो इंच हील वाली सैंडिल, स्लिपर या शूज पहन सकती हैं। लेकिन उसका पॉइंटर बड़ा और आगे का हिस्सा चौड़ा होना चाहिए। वैसे जहां तक संभव हो पेंसिल हील के प्रयोग से बचें। हड्डियों की मजबूती के लिए नियमित रूप से दूध, हरी-पत्तेदार सब्जियां और ताजे फल लेने चाहिए। अधिक उम्र होने पर दूध और प्रोटीन युक्तआहार की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए क्योंकि इसमें कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है।