ऐसी होती हैं स्मार्ट सिटी
स्मार्ट सिटी का मतलब सिर्फ चमचमाती, चौड़ी-सड़कें, साफ-सुथरी गलियां, सुंदर-सुंदर इमारतें वह भी सुविधाओं से लैस होने तक ही नहीं है। स्मार्ट सिटी वो कहलाती है जहां आपकी छोटी-बड़ी सभी जरूरतें पूरी हो जाएं। सिर्फ साफ-सफाई के दम पर कोई सिटी स्मार्ट सिटी नहीं बनती। एक स्मार्ट सिटी में बेसिक जरूरतों के साथ-साथ आधुनिक सुविधाएं भी मौजूद होनी चाहिए। फिर चाहे वो सड़कें हो, बिजली हो,टेक्नोलॉजी हो अथवा तकनीक के साथ बनीं इमारतें हों। स्मार्ट सिटी में पब्लिक इंफोर्मेशन, इलेक्ट्रॉनिक सर्विस, जनसुविधाएं, बेहतर वाटर ट्रीटमेंट, पार्किंग, ग्रीन बिल्डिंग, स्मार्ट मीटर और मैंनेजमेंट की सुविधा होनी चाहिए। किसी शहर में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किस हद तक और किसके लिए किया जा रहा है, स्मार्ट सिटी में इस बात का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। शहर की इमारतें नियम के तहत बनी हैं या नहीं, उनमें जरूरी सुविधाएं सुलभ हैं या नहीं। इसे देखकर ही स्मार्ट सिटी का चुनाव किया जाता है। स्मार्ट शहर में जनता के लिए सार्वजनिक सुविधाएं हैं या नहीं इस बात को तो देखा ही जाता है इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उनका स्तर कैसा है। स्मार्ट सिटी को इस कसौटी पर ही परखा जाता है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखा जाता है कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कितनी असरदार है। स्मार्ट शहर में रोजगार के कितने अवसर मौजूद हैं यह भी महत्व रखता है। ऐसी ही तमाम बातें स्मार्ट सिटी का चुनाव करते समय ध्यान में रखी जाती है। किसी स्मार्ट सिटी में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर कैसा है, यह देखना भी बहुत जरूरी होता है।
विश्व के दसआधुनिक शहर
विश्व के दस सबसे स्मार्ट सिटी की बात की जाए तो इसमें भारत का कोई भी शहर शामिल नहीं है। आधुनिकता के मामले में यूरोपीय देशों के शहर सबसे आगे हंै। न्यूयार्क, टोक्यो, बार्सिलोना ,हांगकांग, बर्लिन, लंदन, पैरिस, टोरंटो, वियाना और कोपेनहेगन शहर का नाम विश्व की सबसे स्मार्ट सिटी की लिस्ट में टॉप पर है।
शहर जो स्मार्ट बनेंगे
पूरे देश में जो शहर स्मार्ट सिटी बनाए जाएंगे, उसमें पोर्ट ब्लेयर, विशाखापट्टनम, तिरुपति, काकीनाडा, पासीघाट, गुवाहाटी, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, बिहारशरीफ, चंडीगढ़, रायपुर, बिलासपुर, दिउ, सिलवासा, एनडीएमसी, पणजी, गांधीनगर, अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट, दाहोद, करनाल ,फरीदाबाद , धर्मशाला, रांची, मंगलुरु ,बेलागावी, शिवामोगा, हुबली-धारवाड़, तुमकुरू, देवेनगिरी, कोच्चि, कावारत्ती, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, सतना, उज्जैन, नवी मुंबई, नासिक, ठाणे, ग्रेटर मुंबई, अमरावती, सोलापुर, नागपुर, कल्याण-डोंबीवली, औरंगाबाद, पुणे, इंफाल, शिलांग, आइजोल, कोहिमा, भुवनेश्वर, राउरकेला, आउलगारेत, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, जयपुर, उदयपुर, कोटा, अजमेर, नामची, तिरुचिरापल्ली, तिरुनेलवेली, दिंदीगुल, तांजावुर, तिरुप्पुर, सालेम, वेल्लोर, कोयंबटूर, मदुरै, इरोड, थूटुकुडी, चेन्नई, ग्रेटर हैदराबाद, ग्रेटर वारंगल, अगरतला, मुरादाबाद, अलीगढ़, सहारनपुर, बरेली, झांसी, कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, आगरा, रामपुर, देहरादून, न्यू टाउन कोलकाता, बिधाननगर, दुर्गापुर और हल्दिया शामिल हैं।
केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद और ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का कहना था कि देशभर में ग्रामीण-शहरी अंतर मिटाने को 2019-20 तक 300 ग्रामीण क्लस्टर बनाए जाएंगे। इस मिशन का लक्ष्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विकास क्षमताओं का उपयोग करना है। इससे पूरे क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी। इन कलस्टरों से आर्थिक गतिविधियों, कौशल विकास, स्थानीय उद्यमिता के साथ ही कई सुविधाएं मिलेंगी ताकि स्मार्ट गांवों का एक क्लस्टर बन सके। इस योजना के तहत राज्य सरकारें ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वयन के लिए तैयार रूपरेखा के अनुरूप क्लस्टरों की पहचान करेगी। स्मार्ट गांव की कल्पना के तहत मिशन को मंजूरी दी गई है। पहले चरण में सभी राज्यों में कम से कम एक कलस्टर होगा। बडे़ राज्यों में आबादी के अनुसार क्लस्टर बनाए जाएंगे।
उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली सपा नेता और नगर विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री मोहम्मद आजम खान ने स्मार्ट सिटी की बजाय ‘स्मार्ट गांवों’ के विकास पर ज्यादा जोर देने की जरूरत बताते हुए कहा कि स्मार्ट शहर परियोजना से गांवों से नगरों की तरफ लोगों का पलायन बढ़ेगा। इससे कानून-व्यवस्था खराब होने, बिजली की किल्लत के साथ-साथ सम्पत्ति की कीमतें और किराये की दरों में बेइंतहा बढ़ोत्तरी जैसी दिक्कतें पैदा होंगी।’’ऐसा लगता है आजम खान कम से कम एक मुद्दे पर तो केन्द्र की मोदी सरकार से सहमत ही होंगे कि उसने स्मार्ट गांव बनाने की भी पहल कर दी है।
दी सरकार ‘स्मार्ट सिटी’ और ‘स्मार्ट गांव’ को लेकर काफी सुर्खियां बटोर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि पूरी दुनिया की तरह हिन्दुस्तान में भी कुछ शहरों और गांवों को भी स्मार्ट सिटी-स्मार्ट गांव की तर्ज पर विकसित किया जाए। चीन-जापान की तरह भारत में भी बुलेट ट्रेन दौड़े। अपना देश ‘मेड इन इंडिया’ कहलाए। ‘डिजिटल भारत’ का निर्माण हो । अपने ऐसी ही तमाम ख्यालों को साकार करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आधुनिक भारत के निर्माण का सपना देख रहे हैं। यहां हम स्मार्ट सिटी और स्मार्ट गांव पर चर्चा करेंगे। पीएम मोदी को लगता है कि एक बार 100 स्मार्ट सिटी और गांवों के 300 सौ क्लस्टरों का विकास हो गया तो इसी के आधार पर अन्य शहर और गांव भी अपना कायाकल्प करके स्मार्ट सिटी या स्मार्ट गांव बन जाएंगे। पीएम मोदी के शब्दों में, ‘स्मार्ट सिटी किसी भी विकसित यूरोपीय शहर जैसी बेहतर क्वालिटी वाला जीवन लोगों को दे पाने में सक्षम होगी।’भारत में सौ स्मार्ट सिटी बनाने का कोई विशेष मॉडल नहीं तैयार किया गया है। दृष्टिकोण ‘वन साइज-फिट्स ऑल’ का नहीं है। प्रत्येक शहर स्मार्ट सिटी बनने के लिए अपनी संकल्पना, दर्शन, मिशन और योजना (प्रस्ताव) तैयार करेगा, जो उसकी स्थानीय परिस्थितियों, संसाधनों और महत्वाकांक्षाओं के स्तरों के अनुकूल होगा। भारत में स्मार्ट सिटी का अर्थ यूरोप की स्मार्ट सिटी के मानकों से अलग होगा।
मोदी की स्मार्ट सिटी योजना को लेकर जहां समाज का एक बड़ा तबका उत्साहित है, वहीं मन में कई जिज्ञासाएं भी पाले हुए है। बीजेपी सरकार और नेता भले ही स्मार्ट सिटी और स्मार्ट विलेज को लेकर अपने को सही ठहराने में लगे हों लेकिन उनके राजनैतिक विरोधी और कुछ बुद्धिजीवियों का स्मार्ट सिटी को लेकर नजरिया बिल्कुल नकारात्मक है। दोनों ही पक्षों की तरफ से पक्ष और विपक्ष में तर्क गढ़े जा रहे हैं। किसी को लगता है कि जिस देश में करोड़ों लोगों के पास शौचालय तक नहीं है वहां स्मार्ट सिटी पर पैसे की बर्बादी क्यों? वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जिनको लगता है कि स्मार्ट सिटी और कुछ नहीं औद्योगिक घरानों को ओबलाइज करने का तरीका है। मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में औद्योगिक घरानों ने विशेष योगदान दिया था, अब मोदी उनका कर्ज उतार रहे हैं। स्मार्ट सिटी की मुखालफत करने वाले कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार को स्मार्ट सिटी की कल्पना साकार करने से पहले गरीबी, खेती-किसानी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, काला धन जैसे ज्वलंत समस्याओं से जनता को छुटकारा दिलाना चाहिए। भले ही हिन्दुस्तान में स्मार्ट सिटी को पीएम नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना से जोड़ कर देखा जा रहा हो, लेकिन दुनिया के कई मुल्क अपने यहां बिना विवाद के स्मार्ट सिटी का सपना साकार कर चुके हैं।
बहरहाल, अपने देश में स्मार्ट सिटी के पक्ष और विपक्ष दोनों के ही तर्कों को खारिज करना मुश्किल हैं। स्मार्ट सिटी के विरोध में तर्क देने वालों का कहना है कि भारतीय शहरों को ‘स्मार्ट सिटी’ बना पाना आसान काम नहीं है। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि हमारे ज्यादातर पुराने शहर अनियोजित तरीके से बसे हैं, उनकी सही मैपिंग उपलब्ध नहीं है। शहरों की 70 से 80 फीसदी आबादी अनियोजित इलाकों में रहती है। इन इलाकों में लगातार आवाजाही होती रही है। ऐसे में काम की शुरुआत कैसे हो पाएगी। स्मार्ट सिटी का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे आसान तो होता कि नए शहर ही बसा दिये जाते। जहां हर चीज कि प्लानिंग पहले की जाती। हमारा देश कई मामलों में दुनिया के तमाम देशों से अलग है। खैर, यह कहना गलत नहीं होगा कि लोकतंत्र में इस तरह के विरोध को खारिज करने की बजाय पूरा सम्मान देना चाहिए, लेकिन तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच अच्छी बात यह है कि स्मार्ट सिटी को लेकर जितनी तेजी मोदी सरकार दिखा रही हैं, उतनी ही तत्परता राज्य सरकारों की तरफ से भी देखने को मिल रही है। इससे भी बड़ी बात यह है कि देश की नौकरशाही (जिसके बारे में आम धारणा यही है कि वह अपना काम ईमानदारी और मेहनत से नहीं करती है) वह भी प्रधानमंत्री की स्मार्ट सिटी योजना का काम तेजी से आगे बढ़ाने में पूरी तरह गंभीर है। आईआईटी, पुरातत्व, आर्टिटेक्ट्स आदि विभागों की टीमें इसमें लगी हुई है।
स्मार्ट सिटी को लेकर जितना मोदी सरकार गंभीर है उतना ही उतावलापन जनता में भी है। स्मार्ट सिटी का रुतबा हासिल करने के लिये जब जब किसी शहर की जनता आंदोलन पर उतर आये तो यह समझा जा सकता है कि दशकों से जातिवादी राजनीति में उलझे देशवासियों के मन में भी विकास की ललक दिखाई पड़ने लगी है। जनता में विकास की ललक किसने जगाई। इस पर विवाद हो सकता है। विकास को लेकर तमाम दल अपनी-अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं, लेकिन विकास समय की मांग है। यह बात अनदेखी नहीं की जा सकती है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ को स्मार्ट सिटी का हक मिल जाये इसको लेकर वहां की जनता आंदोलन पर उतर आई। मेरठ को स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल करने की मांग पर 15 सितंबर 2015 को शहर के कारोबारी सड़क पर उतर आए। बंद के एलान का असर सभी प्रमुख बाजारों पर दिखा। बंद में पार्टी लाइन से ऊपर उठकर भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल, मेयर हरिकांत अहलूवालिया और संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष नवीन गुप्त समेत अन्य पदाधिकारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सभी ने एक सुर में बस यही कहा कि उनकी लड़ाई किसी से नहीं है उन्हें बस स्मार्ट सिटी चाहिए। यह मेरठ का हक है और वह उसे लेकर रहेंगे।
दरअसल, यह विवाद इसलिये है कि क्योंकि पूरे देश में मात्र सौ स्मार्ट सिटी बनना हैं। कौन से सौ शहर स्मार्ट सिटी बनेंगे, इसका चयन करने के लिये देशभर के तमाम शहरों को तय मानकों की कसौटी पर कसा गया। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से 13 शहरों को स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया। 12 शहरों का तो चुनाव आसानी से हो गया, लेकिन 13 वें शहर के लिये रायबरेली और मेरठ के बीच पेंच फंस गया। दोनों ही जिले 75-75 अंक लेकर बराबरी पर रहे थे। बीजेपी मेरठ को 13वां स्मार्ट शहर बनाने और कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के रायबरेली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र को यह दर्जा देने की मांग कर रही थी। केंद्र सरकार ने विवाद बढ़ता देख कूटनीतिक तरीके से 13 वें शहर के चयन का अधिकार अखिलेश सरकार को दे दिया। केंद्र की मंशा भांपने में अखिलेश सरकार को देर नहीं लगी। उसने भी केन्द्र के ‘नहले पर दहला’ चलते हुए दोनों ही शहरों को इस योजना में शामिल किए जाने की सिफारिश के साथ एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया। अखिलेश सरकार ने केंद्र से मांग की है कि राज्य में स्मार्ट शहरों की संख्या 13 से बढ़ाकर 14 कर दी जाये। यह पत्र प्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन केंद्रीय योजना के माध्यम से भेजा गया है जो राज्य के शहरों के चयन के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष हैं।
बात स्मार्ट गांव की करें तो स्मार्ट सिटी की तर्ज पर ही स्मार्ट गांव विकसित करने का काफी दबाव मोदी सरकार पर था, विरोधी उनकी सरकार पर निशाना साध रहे थे। इस पर सियासत और तेज होती, इससे पहले ही केन्द्र ने पहला अहम कदम उठाते हुए स्मार्ट गांव के लिए भी धन आवंटित कर दिया है। मोटे तौर पर इस योजना का उद्देश्य गांवों को शहरों जैसी सुविधाएं प्रदान करना और साथ ही वहां रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराना है। यह पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम की पुरा नामक योजना का संशोधित-परिवर्तित रूप है। केंद्र सरकार ने स्मार्ट गांव के लिये 5142 करोड़ रुपये के श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन को मंजूरी दे दी है। इसका मकसद गांव को स्मार्ट गांव में बदलना, स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार, महानगरों की ओर पलायन रोकना और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देना है। केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद और ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के अनुसार देशभर में ग्रामीण-शहरी अंतर मिटाने को 2019-20 तक 300 ग्रामीण क्लस्टर बनाए जाएंगे। इस मिशन का लक्ष्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विकास क्षमताओं का उपयोग करना है। इससे पूरे क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी। इन क्लस्टरों से आर्थिक गतिविधियों, कौशल विकास, स्थानीय उद्यमिता के साथ ही कई सुविधाएं मिलेंगी ताकि स्मार्ट गांवों का एक क्लस्टर बन सके। इस योजना के तहत राज्य सरकारें ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वयन के लिए तैयार रूपरेखा के अनुरूप क्लस्टरों की पहचान करेगी। स्मार्ट गांव की कल्पना के तहत मिशन को मंजूरी दी गई है। पहले चरण में सभी राज्यों में कम से कम एक क्लस्टर होगा। बडे़ राज्यों में आबादी के अनुसार क्लस्टर बनाए जाएंगे।
स्मार्ट सिटी प्लानिंग का स्वरूप
स्मार्ट सिटी के लिए चार तरह की प्लानिंग है। इसमें नंबर एक में पांच सौ एकड़ व पहाड़ी क्षेत्र में 250 एकड़ क्षेत्र को नए सिरे से विकसित करना। नंबर दो पर री-डेवलपमेंट के तहत पूरे पुराने शहर के भवनों को हटाकर नए सिरे से निर्माण करना। तीसरा ग्रीन फील्ड में सिटी निर्माण। चौथा स्मार्ट सिटी के तौर पर पूरे शहर व आसपास के लिए चल रही योजनाओं को बेहतर बनाना शामिल है। इन चार में से कोई भी योजना को चुना जा सकता है। स्मार्ट सिटी में वर्ष 2019-20 तक पांच साल में 1000 करोड़ रुपये मिलेंगे। इस दौरान विभिन्न सुविधाओं व सेवाओं को लेकर पब्लिक प्राइवेट निवेश को आमंत्रित किया जाएगा।
स्मार्ट सिटी के लिए बनना होगा स्मार्ट
सरकार स्मार्ट सिटी तो दे सकती है,लेकिन सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या अपने देश की जनता इस लायक है कि वह स्मार्ट सिटी की कसौटी पर खरी उतरे। खासकर सफाई के मामले में तो हिन्दुस्तानी बेहद लापरवाह हैं। सार्वजनिक और धार्मिक स्थलों को कैसे साफ रखा जाये। ऐतिहासिक धरोहरों को कैसे सुरक्षित रखा जाये। पर्यावरण को कैसे बचाया जाये,नदियों को कैसे स्वच्छ रखा जाये। ऐसी तमाम बातों पर आम हिन्दुस्तानी का ध्यान कम ही जाता है। अन्य देशों में ऐसा नहीं है। अगर वहां इसके लिये कानून सख्त है तो लोगों में भी जागरूकता है। सरकारी और गैर सरकारी कवायदों के बावजूद साफ-सफाई आज भी हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं बन पाई है। न सिर्फ हमारे घर-मोहल्ले और सड़कें बल्कि धर्मस्थल तक बेहद गंदे हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि न्यायपालिका को यह अहसास कराना पड़ता है कि ज्यादा कुछ नहीं तो हम अपने धार्मिक स्थल तो साफ रख ही सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी भले ही दिल्ली के एक मंदिर के आसपास की गंदगी पर गहरा एतराज जताते हुए सामने आई हो, लेकिन कमोवेश यह हाल पूरे देश के धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों का है। हां, यह सच्चाई है कि अगर हम देवालय ही नहीं साफ रख सकते हैं तो अन्य जगहों के बारे में तो हमारी सोच और भी ज्यादा पिछड़ी हुई होगी।
हमें हमेशा इस बात का अहसास रखना होगा कि स्वच्छ भारत की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की नहीं हम सबकी है। दरअसल, भारतीय जनमानस में सफाई को लेकर एक बुनियादी उलझन है। कहीं न कहीं हमारे अवचेतन में यह भी बैठा हुआ है कि सफाई हमारा नहीं किसी और का काम है। इससे पहले कि अपनी ही गंदगी में घुटकर इस देश का दम निकल जाए, यहां के आम लोगों में सिविक सेंस की चिंगारी जगाने के लिए देश के बड़े लोगों को गांधी की तरह सच्चे दिल से सफाई की मुहिम चलाने की एक और कोशिश करनी चाहिए। वर्ना स्मार्ट सिटी हो या स्वच्छ भारत हमारे लिये सभी बेईमानी होंगे। हर समस्या का समाधान सरकार नहीं कर सकती है। इसमें से एक सफाई का मसला भी है। गंदगी को जब तक अभिशाप नहीं समझा जाएगा,तब तक स्वच्छ भारत की लड़ाई अधूरी ही रहेगी। स्मार्ट सिटी में रहने के लिए हमें भी स्मार्ट बनना होगा। ल्ल