…और शौकत बनीं शबाना आजमी के आंसू बह निकले
दस्तक टाइम्स एजेंसी/नई दिल्ली: शबाना आजमी मंच पर एक चरित्र को कुछ इस तरह जी रही थीं कि उनके चेहरे पर कभी मोहब्बत का जादू बिखरा, कभी वक्त के दिए गए जख्म उभरकर आंसू बन गए। दूसरी तरफ जावेद अख्तर, जो कि अभिनेता नहीं हैं, हमेशा से शायर और लेखक ही रहे हैं, का भी मंच पर अंदाजे बयां किसी एक्टर से कम नहीं था। उर्दू को समर्पित उत्सव ‘जश्न-ए-रेख्ता’ की शुक्रवार को पहली शाम मशहूर शायर कैफी आजमी और उनकी बीवी शौकत की मोहब्बत के नाम रही। इस दास्तान-ए-इश्क ‘कैफी और मैं’ को मंच पर जीवंत किया शबाना आजमी और जावेद अख्तर ने।
‘कैफी और मैं’ से जश्न का आगाज
‘कैफी और मैं’ एक ऐसा नाटक है जो नाटक से हटकर पृथक नाटकीय अनुभव देता है। शौकत की किताब ‘याद की रहगुजर’, कैफी आजमी के अलग-अलग इंटरव्यू और इन दोनों के एक-दूसरे को लिखे गए पत्रों के आधार पर यह प्रेम कहानी रची गई है। यह प्रेमी जोड़े का संवाद है, जिसमें वे कभी रूबरू हैं, कभी चिट्ठियों के जरिए बात कर रहे हैं और कभी उनके एकाकीपन के अनुभव अभिव्यक्त हो रहे हैं। यह कुछ मंचीय नाटक और रेडियो नाटक के बीच का है जिसमें वाचिक अभिनय और फेस एक्सप्रेशन हैं। साथ में शायरी और मधुर संगीत है।
इश्क के साथ सामाजिक प्रतिबद्धता
नाटक में मंच पर एक कोने में दो टेबल-कुर्सियों पर शबाना आजमी शौकत के रूप में और जावेद अख्तर बतौर कैफी आजमी बैठे होते हैं। दूसरी तरफ के कोने में गायक जसविंदर सिंह और उनका आर्केस्ट्रा होता है। इश्क की इस सच्ची कहानी को कुछ इस तरह रचा गया है कि इसमें संवादों के साथ शायरी और उस सिचुएशन से जुड़ी कैफी की गजलें, नज्म और गीत आते हैं। यह संगीतमय ड्रामा प्यार के मधुर अहसासों से पूरी तरह भरा है लेकिन इसमें कैफी और शौकत की समाज के प्रति प्रतिबद्धताएं, खुशहाल दुनिया बनाने के ख्वाब भी शामिल हैं। यह नाटक भले ही दो प्रेमियों की कहानी है लेकिन इसमें उनके समय का समाज, आजादी को लेकर छटपटाहट और सामाजिक समानता की चाहत भी दिखाई देती है।
रोमांटिक कहानी और मधुर संगीत
अपनी मां शौकत का चरित्र अभिनीत करते हुए नाटक के अंत में शबाना आजमी की आंखों से देर तक आंसू बहते रहे। दूसरी तरफ जावेद अख्तर के संवाद और शायरी में कैफी आजमी का दृढ़ चरित्र उभरा। बीच-बीच में कैफी के गीत ‘मेरी आवाज सुनो…’ , ‘तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम…’, ‘तुम जो मिल गए हो…’, ‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम…’ और ‘देखी जमाने की यारी…’ की प्रस्तुति प्रभावी थी।
नजीब जंग ने किया शुभारंभ
रेख्ता फाउंडेशन की ओर से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित किए जा रहे उर्दू के इस तीन दिवसीय उत्सव ‘जश्न-ए-रेख्ता’ का शुभारंभ उप राज्यपाल नजीब जंग ने शमां जलाकर किया। उद्घाटन समारोह में प्रख्यात गीतकार गुलजार, भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित, अभिनेता इरफान सहित साहित्य की कई हस्तियां मौजूद थीं। समारोह के प्रारंभ में रेख्ता फाउंडेशन के संजीव सराफ ने स्वागत भाषण देते हुए दुनिया के सबसे बड़े उर्दू शायरी के ऑनलाइन संग्रह रेख्ता के बारे में विस्तार से जानकारी दी और उपलब्धियां भी गिनाईं।
समारोह में श्रोताओं में बैठे गीतकार और फिल्मकार गुलजार।
‘उबलती हांडियां और इतने सारे…’
जश्न-ए-रेख्ता के दूसरे दिन शनिवार को गुलजार ‘ये कैसा इश्क है उर्दू जबान का’ के तहत श्रोताओं से रूबरू हुए। इस कार्यक्रम में गुलजार बड़ी संख्या में मौजूद लोगों को देखकर कह उठे – ‘उबलती हांडियां और इतने सारे, सभी ने जिंदगी चूल्हे पर रक्खी है, न पकती है, न गलती है..।’ उन्होंने उर्दू के प्रति समर्पण को लेकर रेख्ता फाउंडेशन की तारीफ की। इसके अलावा शनिवार को टाम आल्टर द्वारा अभिनीत नाटक ‘गालिब के खत’, साबरी ब्रदर्स की कव्वाली, मुशायरा ‘बज्मे सुखन’ सहित अनेक कार्यक्रम हुए।
श्रोताओं को संबोधित करते हुए रेख्ता फाउंडेशन के संजीव सराफ।
आज समापन
रविवार को इस उत्सव का समापन होगा। समापन दिवस पर जावेद अख्तर, कौसर मुनीर, मुनव्वर राणा, कुमार विश्वास, ऋचा अनिरुद्ध, इम्तियाज अली सहित कई दिग्गज हस्तियां श्रोताओं से रूबरू होंगी। कार्यक्रम सुबह 11 बजे से रात 10 बजे तक आयोजित किए जा रहे हैं।