किसी को भरोसा नहीं, सभी को याद है पांच साल का कठोर इस्लामी राज
दोहा: दो दशक बाद सत्ता में वापसी कर रहा तालिबान कैमरों के सामने अपना बदला चेहरा पेश करने की कोशिश कर रहा है। खासतौर पर महिला और अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा की बात दोहरा रहा है। उसका कहना है कि उसके शासन में इस्लामी अमीरात बनने वाला अफगानिस्तान किसी भी देश के लिए खतरा साबित नहीं होगा। लेकिन, खुद अफगानों समेत राजनीतिक और सामरिक विशेषज्ञ उस पर भरोसा नहीं कर रहे हैं।
उन्हें तालिबान की कथनी के इतनी आसानी से करनी बनने पर संदेह है। विशेषज्ञों का मानना है कि मानवाधिकार और न्याय को लेकर कठोर-रूढ़िवादी रुख रखने वाला आतंकी संगठन शायद ही अपने वादे पूरे करेगा। 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शरिया राज थोपने वाले तालिबान ने उन पांच वर्षों के दौरान सख्त इस्लामी कानून के मुताबिक कठोर न्याय व्यवस्था लागू रखी। हत्या के दोषियों को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाने से लेकर चोरी के आरोपियों के अंग-भंग करने जैसा नजारा देखने को मिलता था। पुरुषों को दाढ़ी रखना अनिवार्य कर दिया था, तो महिलाओं को पूरा शरीर बुर्के में ढककर रखना होता था।
तालिबान नाम की पुस्तक में पाकिस्तानी पत्रकार अहमद राशिद ने लिखा है कि इस आतंकी संगठन ने अफगानियों टीवी, संगीत और सिनेमा समेत मनोरंजन के साधनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। 10 साल से ऊपर की बच्चियों को स्कूल जाने से रोक दिया गया। साथ ही, लोगों के मानवाधिकार का सरेआम उल्लंघन और अल्पसंख्यकों का सांस्कृतिक शोषण होता था।
काबुल पर कब्जे के बाद पहली प्रेस वार्ता में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, जल्द ही देश में एक इस्लामी सरकार बनाई जाएगी। साथ ही, किसी से बदला नहीं लिया जाएगा। जब पूछा गया कि 90 के दशक और 2021 के तालिबान में क्या फर्क है तो साफ जवाब आया कि विचारधारा और मान्यताएं वही हैं, लेकिन अनुभव के आधार पर कुछ बदलाव आए हैं। अमेरिकी विद्वान माइकल कुगलमैन का कहना है, तालिबान भले ही लोगों से न डरने की बात कह रहा हो, लेकिन उसने खुद कभी हिंसक रास्ता नहीं छोड़ा है। आज भी उसका कई वैश्विक आतंकवादियों की ओर झुकाव है। वाशिंगटन में मध्य पूर्व इंस्टीट्यूट से जुड़े मोह्म्मद सोलिमन मानते हैं कि तालिबान के वादों में काफी अस्पष्टता है। जमीनी हकीकत उसकी कथनी से मेल नहीं खाती।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने कहा कि काबुल से अमेरिका जाने वाले विमानों से विदेश जा रहे नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित जाने देने के लिए तालिबान राजी हो गया है। उधर, पेंटागन ने कहा, अमेरिकी सेना पिछले 24 घंटे में 18 विमानों में 325 अमेरिकी समेत 2,000 लोगों को काबुल से निकाल चुकी है।
पश्चिमी देशों ने भी 2,200 से ज्यादा राजनयिकों व अन्य नागरिकों को यहां से निकाल लिया है। राष्ट्रपति जो बाइडन के एनएसके जेक सुलिवन ने उन खबरों का जिक्र किया जिनमें काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचने की कोशिश करते हुए कुछ नागरिकों को रोका गया और पीटकर वापस भेजा गया। नीदरलैंड्स ने अपने 35 नागरिकों को निकाला है और करीब 1000 को निकालने की तैयारी कर ली है। पोलैंड ने भी 50 नागरिकों को निकाला है।
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि काबुल के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर बुधवार को उनके सैनिकों की संख्या बढ़कर 4500 हो गई है। एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि एयरपोर्ट पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए आने वाले दिनों में सैनिकों की संख्या बढ़ाकर 6000 की जाएगी।
काबुल में अमेरिकी सैन्य कमांडर जनरल फ्रैंक मैक्केंजी ने काबुल की अघोषित यात्रा कर दोहा में रविवार को तालिबानी नेताओं के साथ नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के समझौते पर वार्ता की। यह पूछे जाने पर कि क्या बाइडन प्रशासन तालिबान को अफगानिस्तान के वैध शासक की मान्यता देता है, इस पर सुलिवन ने कहा कि यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी। तालिबान का मानवाधिकार रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है।