इस बार अर्द्धकुंभ प्रयागराज में 15 जनवरी से शुरू होकर 4 मार्च तक है। मान्यता है कि कुंभ में स्नान करने से अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है। माना जाता है कि कुंभ में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ऊर्जा नदियों में गिरती हैं। इस कारण स्नान से अलग ऊर्जा और आनंद की अनुभूति होती है। पंडित केए दुबे पद्मेश और आचार्य आदित्य पांडेय ने बताया कि कुंभ मेला हर तीन साल में मनाया जाता है। अर्द्धकुंभ हर छह साल में मनाया जाता है। यह हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। पूर्ण कुंभ 12 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में मनाया जाता है। 12 कुंभ पूरे होने (144 साल) पर महाकुंभ मनाया जाता है।
इसलिए अर्द्धकुंभ
जब देव गुरु बृहस्पति मेष अथवा वृष राशि में होते हैं और सूर्य एवं चंद्रमा मकर राशि में होते हैं तब पूर्ण कुंभ प्रयागराज में मनाया जाता है। इस बार देव गुरु बृहस्पति वृश्चिक राशि में हैं तथा चंद्रमा एवं सूर्य मकर राशि में 15 जनवरी से होंगे। इसलिए इसे अर्द्धकुंभ कहा गया है।
ऐसे शुरू हुआ कुंभ
देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इनमें विष भी निकला था, जिसको भगवान शिव ने धारण कर मानव जाति और प्रकृति की रक्षा की थी। इसके बाद अमृत निकला। अमृत के लिए सुर और असुर दोनों में युद्ध होने लगा। तब इंद्र के पुत्र जयंत को अमृत कलश दिया गया और उसकी सुरक्षा का दायित्व सूर्य, चंद्रमा व बृहस्पति को सौंपा गया। कलश ले जाते समय उसकी कुछ बूंदे हरिद्वार में छलकीं। इसलिए पहला कुंभ हरिद्वार में मनाया गया। इसके बाद कुछ बूंदे प्रयागराज में छलकी तब दूसरा कुंभ इलाहाबाद में हुआ। इसके बाद महाकालेश्वर उज्जैन में कुछ बूंदे छलकीं तो तीसरा कुंभ यहां मनाया गया। इसी तरह चौथा कुंभ नासिक में मनाया गया। कुंभ में स्नान नहीं कर सकते तो माघ मास में पवित्र कुंड में करें स्नान
एक राशि में बृहस्पति को दोबारा आने में 12 साल लगते हैं। इसलिए कुंभ 12 साल बाद होता है। लेकिन धर्माचार्यों ने अर्द्धकुंभ की व्यवस्था दो स्थानों पर की है। हरिद्वार और प्रयागराज में। माना यह जाता है कि इन मुहूर्तों में जब आप कुंभ में स्नान करते हैं तो एक अतिरिक्त ऊर्जा सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति से इन नदियों में गिरती है। इसलिए कुंभ में स्नान और दर्शन अवश्य करना चाहिए। यदि आप कुंभ में स्नान करने की स्थिति में नहीं हैं तो माघ मास में नियमित रूप से पवित्र सरोवर में स्नान करें। तिल, ऊनी वस्त्र का दान करें। पद्म पुराण में यहां तक कहा गया कि माघ मास में अर्द्धकुंभ में स्नान करने से ऋणात्मक ऊर्जा का क्षय होता है। यही कारण है कि माघ के महीने में कायाकल्प के लिए स्नान करते हैं।
राजा हर्षवर्द्धन सब कुछ कर दिया था दान
कुंभ का आयोजन तो सदियों पूर्व से हो रहा है परंतु वर्ष 617 में राजा हर्षवर्द्धन ने प्रयागराज में हुए कुंभ में भाग लिया था और अपना सब कुछ दान कर दिया था। वर्ष 2012-13 में प्रयागराज में पूर्ण कुंभ हुआ था। अगला पूर्ण कुंभ प्रयागराज में वर्ष 2025 में पड़ेगा।
राशियों के परिवर्तन पर होता है कुंभ
हरिद्वार में कुंभ राशि पर बृहस्पति और मेष में जब सूर्य होता है तो कुंभ पड़ता है। प्रयागराज में मकर राशि पर सूर्य और वृष राशि में बृहस्पति होता है तो कुंभ होता है। जब वृश्चिक में बृहस्पति होता है तो अर्द्धकुंभ होता है। इसमें तीनों स्नान का महत्व है। उज्जैन में सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य होता है तो कुंभ पड़ता है। नासिक में वृश्चिक राशि में बृहस्पति हो तो कुंभ होता है।
मुख्य स्नानः-
15 जनवरी-पहला शाही स्नान मकर संक्रांति को
21 जनवरी-पौष की पूर्णिमा का स्नान
31 जनवरी-पौष की एकादशी का स्नान
4 फरवरी-दूसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या को (मुख्य शाही स्नान)
10 फरवरी-तीसरा शाही स्नान बसंत पंचमी को
16 फरवरी-माघी एकादशी का स्नान
19 फरवरी-माघी पूर्णिमा का स्नान
4 मार्च-महाशिवरात्रि