कैलाश के अलावा इस जगह पर भी मौजूद हैं भगवान शिव, भक्तों को देते हैं दर्शन
नीलकंठ का ये अद्भुत स्थान हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में मौजूद है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव आज भी वास करते हैं। इतना ही नहीं भक्तों को भगवान शिव साक्षात दर्शन भी देते हैं। इस पर्वत श्रेणी को मणिमहेश के नाम से जानते हैं। मगर कई लोग इसे चंबा कैलाश के नाम से भी जानते हैं। बताया जाता है कि इस पर्वत पर भगवान शिव एक शेषनाग मणि के रूप में विराजमान हैं। यहां वो देवी पार्वती के साथ विराजमान हैं।
भारत में भगवान पर लोगों का अटूट विश्वास रहता है। उनके इस विश्वास का प्रमाण समय—समय पर कई धार्मिक स्थानों में होने वाले चमत्कार से मिलता रहता है। एक ऐसा ही चमत्कार मणिमहेश पर्वत पर भी देखने को मिलती है। मणिमहेश पर्वत पर विराजमान भोलेनाथ शाम व रात के मध्यकाल में भक्तों को दर्शन देते हैं। उनकी ये महिमा सूर्यास्त के समय देखी जा सकती है। उस वक्त सूर्य की किरणों के पर्वत पर पड़ने से महादेव की छवि बनती है।
मणिमहेश नामक पर्वत शिखर का शाब्दिक अर्थ है महेश के मुकुट में जड़ा नगीना। विद्वानों के अनुसार इस पर्वत पर शिव शेषनाग मणि के रूप में विराजमान है। स्थानीय लोगों के अनुसार पर्वत की चोटी से एक मणि की तरह प्रकाश निकलता हुआ दिखाई देता है। भगवान के इस चमत्कारी कार्य के दर्शन करने मात्र से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यूं तो मणिमहेश पर्वत की चोटी हमेशा बर्फ और बादलों से ढकी रहती है। मगर मान्यता है कि भोलेनाथ जिस भक्त से प्रसन्न होते हैं, वो उन्हें दर्शन जरूर देते हैं। भक्तों का कहना है कि उन्होंने पर्वत पर शिव जी की छवि देखी है। साथ ही एक मणि की तरह प्रकाश निकलता हुआ दिखता है।
मणिमहेश को लेकर कुछ कथा प्रचलन में है जिसके तहत कई साल पहले एक गड़रिया अपने कुछ भेड़ों के साथ पर्वत पर चढ़ रहा था। तभी वो अचानक पत्थर के बन गए। आज भी पर्वत पर ऐसे ही पत्थर देखने को मिलते हैं। जिसके तहत एक सांप ने भी पर्वत के शिखर पर पहुंचने की कोशिश की थी, वो भी पत्थर का बन गया था। इस पर्वत पर चढ़ना भी काफी मुश्किल है। माना जाता है कि भगवान शिव एक अदृश्य शक्ति बनकर लोगों को चढ़ने से रोकते हैं।
मणिमहेश पर्वत की कुल ऊंचाई कितनी है इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। कुछ शोध के अनुसार इसकी ऊंचाई 18 हजार 564 फुट है। इसकी ऊंचाई ज्यादा न होते हुए भी इसके शिखर तक पहुंचना असंभव है। क्योंकि साल 1968 में इंडो-जापनीस की एक टीम ने जिसका नेतृत्व नंदिनी पटेल कर रहीं थी इस पर चढ़ाई की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहे थे।