कैसा हो इन सर्दियों में आपका खाना?
शरद ऋतु में वायु से होने वाली बीमारियां कम होती हैं पर पित्त के विकारग्रस्त होने के कारण पित्त से होने वाली बीमारियां सर्दी के मौसम में काफी बढ़ जाती हैं। पित्त विकारों में विभिन्न ज्वर, पाचन तंत्र के रोग, यकृत, पित्ताशय, मूत्र, वमन, पीलिया आदि मुख्य रोग शामिल।
आंतों के रोग भी पित्तजन्य होते हैं। इस मौसम में पित्त नाशक और शामक आहार-विहार व दिनचर्या में सावधानी बरतें तो स्वस्थ रहेंगे।
क्या करेें?
कड़वे स्वाद वाले पदार्थ कसैले और मधुर पदार्थों का भोजन में ज्यादा प्रयोग करें। भूरे पुराने चावल, गेहूं, जौ, मूंग, शक्कर, शहद, परवल, आंवला, अनार, नीबू, अंगूर व मुनक्का, कच्ची मूली, तुरई, टिंडा, लौकी, धनिया, अदरक, टमाटर, पेठा, गाय का दूध, मट्ठा, घी, हल्का, ताजा गर्म भोजन, अरहर की दाल, तरह-तरह के रायते का सेवन स्वास्थ्य रक्षक है।
कैसे पाऐं पित्त से निजात
पित्त को शांत करने के लिए सर्वश्रेष्ठ भारतीय नस्ल की गायों का घी, मक्खन व बढ़े हुए पित्त को नष्ट करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय विरेचन औषधियां (जुलाब-दस्तावर दवाएं) हैं। जुलाब लेने से पहले तीन दिन तक घी डाली चावल-मूंग की खिचड़ी और दूध लेंं। फिर तीसरे दिन रात को व्यक्ति के जैसा अनुकूल रहता हो, पित्त प्रकृति का हल्का, कफ प्रकृति को मध्यम स्तर का तथा वात प्रकृति कठोर कोष्ठी को तीव्र जुलाब दें। यह क्रम तीन दिन के अंतर से तीन बार दोहरावें।
पानी से मिल सकती है राहत
पीने का पानी भी उबालकर ठंडा किया हुआ या छत से वर्षा जल संरक्षण पद्धति से एकत्रित किया गया पानी रातभर ढककर छत पर रखें। उसे गाढ़े दोहरे कपड़े से छानकर पीएं। तांबे के बर्तन जीवाणु नाशक है। पीने का पानी तांबे के बर्तनों में भरकर ढककर रखें व छानकर वही पीएं। जो यह नहीं कर सके वे नागरमोथा, पित्त पापड़ा, खस की जड़, लाल चंदन, सुगंध बाला और सोंठ का मोटा-मोटा सम मात्रा में बनाया गया चूर्ण जो षडंग पानीय कहा जाता है, पानी के बर्तन में डालें। इसे निथाकरकर या छानकर पीएं। इससे पित्त के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।
इस ऋतु में आधी रात तक चांदनी में घूमें बाद में ओस पड़ती है उससे बचें। इस ऋतु में सभी को रक्तमोक्षण (नस को खुलवाकर रक्तस्राव) करवाना चाहिए। अब यह रक्तदान के रूप में भी अपनाना हितकर है। सुगंधित श्वेतकमल, रजनीगंधा, रातरानी, मोगरा, चंपा, चमेली, गुलाब, जूही, रायबेल आदि सफेद फूलों की माला, इत्र का प्रयोग करें। चंदन अवश्य लगाएं।
हल्के स्वच्छ सफेद रंग के सूती पूरी बांहों के कपड़े कुर्ता-पायजामा, पैंट-शर्ट पहनें, मांस, तेज नशीली शराब, तेल, मिर्च मसाले व चटपटे आहार, भरपेट खाना, दिन में सोना, ओस में रहना, हवा में रहना, धूप सेंकना, क्षार(सोडा आदि) पदार्थ और दही-चर्बी वाले भारी भोजन, दही व करेला इस मौसम में हानिप्रद है।
जल्दी सोयें और उठें
रात में जल्दी सो जाएं व सुबह पांच-साढ़े पांच बजे उठकर शौच से निवृत्त हो सैर करें। थकान शुरू होने व सांस फूलकर पसीना आना शुरू होने तक व्यायाम करें। स्नान के बाद चाय नाश्ते से पहले सूर्य को अध्र्य, सूर्य नमस्कार, योगासन, ध्यान, विभिन्न प्राणायाम और ऊँ का लंबी देर तक उच्चारण करें। शयन कक्षों में मक्खी मच्छर निरोधक जालियां वाले किवाड़ हो व दिन में मक्खी, पिस्सू रोधक व रात को मच्छर, तिलचट्टे, झींगुर रोधक उपाय करें।
इस मौसम में अधिक सहवास, बार-बार खाना, ज्यादा चाय, कॉफी व बोतल बंद शीतल पेय बाजार के फ्रूट जूस हानिप्रद हैं। पीत्जा-बर्गर, फास्ट फूड व जंक फूड, नूडल्स व ठेले व खोमचे आदि का भोजन न करें। कटे या दागदार फल, बिना शुद्ध किया पानी वर्जित है। शौच के बाद व भोजन से पहले हाथों की सफाई का खयाल रखें।
दूसरों से रोग न मिले इसके लिए बढिय़ा शीशों वाला गॉगल, मुंह व नाक को ढककर रखने वाली पट्टी व हाथ मिलाने की बजाय नमस्कार ही उपयोगी है। सावधानियों के बाद भी अगर कोई रोग हो ही जाए तो अनिवार्यत एक से तीन दिन का अन्नाहार तथा चिकित्सक के परामर्श से दवाइयां लें।