कॉन्डोम पर ज़ीरो टैक्स के बावजूद जीएसटी से देश के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक जुलाई से जम्मू-कश्मीर छोड़ पूरे देश में लागू हो गया। जीएसटी लागू होने के बाद बाजार पर पड़ने वाले असर को लेकर तमाम बहसों के बीच एक जगह ऐसी है जहां जीएसटी की कड़ी मार पड़ी है लेकिन उसकी चर्चा नहीं है। हम बात कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के लालबत्ती इलाकों की। केंद्र सरकार ने कॉन्डोम पर शून्य प्रतिशत टैक्स रखा है लेकिन सैनेटरी पैड पर 18 प्रतिशत टैक्स रखा गया है। देश के सबसे बड़े लालबत्ती इलाके सोनागाछी में चलने वाला उषा सहकारी बैंक सोसाइटी लिमिटेड अपनी तरह का एशिया का सबसे बड़ा सहकारी बैंक है। इस बैंक में 30,222 सदस्य हैं। सोनागाछी समेत अन्य लालबत्ती इलाके की महिलाएं भी इसकी सदस्य हैं। ये बैंक दरबार महिला समन्वय कमेटी का हिस्सा है।उषा सहकारी बैंक फाइनेंस मैनेजर शांतनु चटर्जी बताते हैं, “इस बैंक का अहम काम है सैनेटरी पैड का सोशल मार्केटिंग करना और कॉन्डोम पर छूट देना है। हम यौनकर्मियों को सैनेटरी पैड पर छूट देते हैं…अब इस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लग गया है। पहले जो कंपनियां हमें विशेष छूट देती थीं उन्होंने अब इससे मना कर दिया है इसलिए यौनकर्मियों को दिए जाने वाले पैड की कीमत भी बढ़ जाएगी।” उषा सहकारी बैं के अधिकारियों के अनुसार बैंक 3.33 रुपये में सैनेटरी पैड खरीदकर उसे यौनकर्मियों को 63 पैसे में बेचता था। जीएसटी लगने के बाद बैंक को एक सैनेटरी पैड आठ रुपये में मिल रहा है।
दरबार कमेटी और बैंक के प्रणेता डॉक्टर समरजीत जाना कहते हैं, “पिछले कुछ सालों में हम एचआईवी एड्स की दर 5-6 प्रतिशत (साल 2000 में) से दो प्रतिशत पर लाने में कामयाब रहे हैं। हम साल 2025 तक इसे शून्य प्रतिशत करना चाहते हैं।” डॉक्टर जाना ने कॉन्डोम पर शून्य टैक्स का स्वागत करते हुए कहा, “लेकिन जीएसटी ने हमें झटका भी दिया है। पिछले कुछ सालों में हमने यौनकर्मियों को सैनेटरी पैड इस्तेमाल करने को प्रेरित किया था। गरीब यौनकर्मी सैनेटरी पैड पर मिलने वाली छूट पर निर्भर होती हैं। लेकिन अब शायद वो सैनेटरी पैड न इस्तेमाल करें जो उनकी सेहत के लिए जोखिम भरा होगा। सरकार ऐसी वस्तुओं को टैक्स फ्री या पांच प्रतिशत टैक्स वाली श्रेणी में रख सकती थी।”
सोनागाछी में करीब 15 हजार यौनकर्मी रहते हैं। पश्चिम बंगाल में करीब 28 लालबत्ती इलाके हैं और सभी कॉन्डोम और सैनेटरी पैड पर मिलने वाली छूट पर निर्भर रहे हैं। चटर्जी कहते हैं, “हम यौनकर्मियों को ये सामान आपूर्ति करने वाली सबसे बड़ी संस्था हैं। हम हर महीने करीब 200 कार्टून या 65 हजार सैनेटरी पैड यौनकर्मियों को देते हैं। कुछ महीनों में ये संख्या 80 हजार पार कर जाती है।” दरबार संस्था की पूर्व सचिव भारती डे कहती हैं कि केवल गिनी-चुनी ए-ग्रेड यौनकर्मी ही ग्राहकों से दो हजार रुपये से ज्यादा लेती हैं। उन्हें सहकारी बैंकों से सैनेटरी पैड खरीदने की जरूरत नहीं होती। लेकिन ग्रेड-बी की यौनकर्मियों को एक ग्राहक से करीब 500 रुपये मिलते हैं। वहीं ग्रेड-सी की यौनकर्मियों को एक ग्राहक से 100-200 रुपये मिलते हैं। इन दोनों वर्गों की यौनकर्मियों के लिए छूट वाले सैनेटरी पैड अहम हैं।